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कुछ समस्याएं भारत में जरूरत से ज्यादा आम हैं, इनमें से एक है सड़कों पर लगने वाला लंबा-लंबा जाम। भारत के लगभग हर शहर में जाम की समस्या बनी रहती हैं। कहीं सड़कों पर गड्ढे ज्यादा हैं तो कहीं सड़कों पर कारों की संख्या आसमान छू रही है। जाम का नाम आते ही मन खिन्न होने लगता है। इसी खिन्नता को सिंगापुर की सरकार ने समझा और एक जोरदार फैसला सुना डाला। सिंगापुर सरकार ने फैसला किया है कि साल 2018 के बाद कोई भी व्यक्ति निजी वाहन नहीं खरीद सकेगा।
सरकार ने सड़कों पर गाड़ियों की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए ये कदम उठाया है। पर्सनल गाड़ियों की बिक्री रोकने के साथ ही सरकार अब पब्लिक ट्रांस्पोर्ट को बढ़ावा देने पर काम करेगी। अगर फरवरी 2018 के बाद कोई नागरिक अपना वाहन खरीदना चाहेगा तो उसे उससे पहले एक पात्रता प्रमाण पत्र खरीदना होगा। इसकी कीमत है 2.40 लाख रुपये और ये 10 सालों तक वैध होगा। यानी गाड़ियों के दाम एकाएक 2.40 लाख रुपये बढ़ जाएंगे। वैसे भी सिंगापुर गाड़ियों के लिहाज से सबसे महंगा देश है। उदाहरण के तौर पर समझिए सिंगापुर में एल्टिस कोरोला कार का दाम 53 लाख रुपये है, मतलब ये कार वहां अमेरिका से 4 गुना ज्यादा में बिकती है।
इतना बड़ा फैसला लेकर सिंगापुर ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खीचा है। दरअसल सिंगापुर की आबादी है 56 लाख, और वहां सड़क पर मौजूद वाहनों की संख्या है 6 लाख। सिंगापुर के द लैंड अथॉर्टी का कहना है कि अब सरकार अपना फोकस पब्लिक ट्रांस्पोर्ट को सुधारने में करेगी।
इस फैसले को लेने से पहले सिंगापुर की सरकार ने लंबी तैयारी की है। द लैंड ट्रांस्पोर्ट अथॉरिटी के अनुसार वहां की सरकार ने पिछले 6 सालो में ट्रेनों के नेटवर्क को 30 फीसदी तक बढ़ाया, जिसमें 41 नए स्टेशंस को जोड़ा गया है। इसके अलावा उनका कहना है कि बस आधुनिकीकरण के लिए 1 बिलियन डॉलर का निवेश किया जा चुका है और अगले 5 सालों में 20 बिलियन डॉलर रेल के नेटवर्क पर खर्च करेंगे। और इससे अलग 4 बिलियन डॉलर खर्च करके पब्लिक ट्रांस्पोर्ट के दूसरे मीडियम को बढ़ाया जाएगा।
हालांकि भारत और सिंगापुर आकार और प्रकार अलग-अलग है। क्षेत्रफल और आबादी में वो हमसे छोटा है। इसलिए हमारे यहां इस तरह के फैसलों को लेना आसान नहीं होगा। लेकिन अगर सरकार कुछ और तरीके से पब्लिक ट्रांस्पोर्ट को बढ़ावा दे सके तो भारत के लिए बड़ा परिवर्तन होगा। लेकिन इसके लिए हमे राजनीति को किनारे रखकर सोचना होगा। वरना पिछले कई फैसले सिर्फ राजनीति में ही उलझ कर रह गए। जिसको जहां से मौका मिला वहां से इसका तोड़ निकाल लिया।