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पत्थरबाज़ी ही हमारी रोज़ी-रोटी है!

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Sat, 01 Apr 2017 04:20 PM IST
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stonepelters - फोटो : merinews
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हाल ही में एक बड़े न्यूज़ चैनल ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया जिसमें उसने कश्मीर के कई युवाओं से बात की जो पत्थरबाज़ी की घटनाओं में संलिप्त हैं। इस स्टिंग ऑपरेशन में कई चौंका देने वाले खुलासे हुए हैं जिससे एक बात तो साफ़ हो जाती है कि कश्मीर के ये पत्थर बाज़ कोई असल विद्रोही नहीं हैं बल्कि सिर्फ़ किराए के खिलाड़ी हैं।
 

कश्मीर के अलगाव वादी नेता हमेशा ही इस बात की तरफ़दारी करते हुए दिखाई देते हैं। वो पत्थर बाज़ी की इन घटनाओं को कश्मीरी युवाओं के गुस्से के रूप में बयान करते हैं। पुलिस, आर्मी या नेताओं पर हुए इन हमलों को ये नेता हमेशा कश्मीर की आज़ादी की लड़ाई से जोड़ देते हैं। जबकि इसके पीछे की सच्चाई कुछ और ही है।

इस स्टिंग ऑपरेशन में रिपोर्टर ने ज़ाकिर अहमद बट, फारुक अहमद लोन, वासिम अहमद खान, मुश्ताख वीरी और इब्राहिम खान से बात की। इन लड़कों ने कई खुलासे किये जिससे पत्थर बाज़ी की घटनाओं को समझना और अधिक आसान हो जाता है। इनमें से एक ने कहा कि ये पत्थर बाज़ी ही हमारी रोज़ी-रोटी है।
 

ये पत्थरबाज़ी से महीने भर में करीब 20,000 रुपए तक कमा लेते हैं। एक हट्टे-कट्टे लड़के को इस काम के लिए 7,000-7,500 रुपए तक मिल जाते हैं वहीं थोड़े कमज़ोर लड़कों को इस काम के लिए 5,000-6,000 रुपए मिलते हैं और 12 साल तक के बच्चों को करीब 4,000 रुपए हासिल हो जाते हैं। 

अलगावादी कहते हैं कि इन घटनाओं की वजह से कश्मीर के बच्चों की पढ़ाई पर असर हो रहा है। जब बिना पढ़े उत्पात मचा कर ही इन्हें इतना पैसा हासिल हो रहा है तो भला पढ़ने में अपना दिमाग कौन लगाना चाहेगा? जो बच्चे सही मायनों में पढना चाहते हैं वो पढ़ रहे हैं और कुछ बनकर आगे निकल रहे हैं।

भारत सरकार के विरोध में वो भी हैं लेकिन उनका विरोध करने का तरीका बिल्कुल अलग है। वो तर्क करना जानते हैं। वहीं दूसरे पत्थरबाज़ी को आसान तरीका मानते हैं।
 

बट ने बताया कि वो पेट्रोल बम बनाने में माहिर है। और इस काम के उन्हें 700 रुपए तक मिल जाते हैं। पेट्रोल बम बना इनके लिए किसी साइड बिज़नेस जैसा है जिससे कि ये ऊपरी कमाई करते हैं। घाटी में इस तरह की सारी गतिविधियां इंटरनेट के माध्यम से संचालित होती हैं। पत्थरबाज़ी कब और कहां करनी है ये व्हाट्सएप ग्रुप पर ही तय हो जाता है।

यही वजह है कि वहां आए दिन इंटरनेट की सुविधा को बंद कर दिया जाता है और इस वजह से दूसरे लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है। वजह ये है कि खाने-पीने की तरह इंटरनेट भी हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। रोज़मर्रा के कई काम हम इसकी मदद से करते हैं, ऐसे में इसका अच्छा और बुरा, दोनों तरह का प्रयोग करने वाले लोग समाज में मौजूद हैं।

कश्मीर समस्या भारत की स्वतंत्रता के समय से ही चली आ रही है लेकिन अब धीरे-धीरे यहां की राजनीति ने एक अलग मोड़ ले लिया है।
 

जब इन सभी युवाओं से ये पूछा गया कि इन सब का मास्टर माइंड कौन हैं तो उन्होंने उनका नाम लेने से तुरंत इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि मर जाएंगे लेकिन संबंधित व्यक्ति का नाम नहीं बताएंगे क्योंकि यही हमारी रोज़ी रोटी है। अब रोज़ी रोटी कमाने का इससे आसान तरीका भला और क्या हो सकता है।

ये वो लोग हैं जो पढ़ना नहीं चाहते और तर्क नहीं करना चाहते। विरोध जताने का हक भारत के संविधान ने सभी को दिया है लेकिन इस तरह की घटनाएं देश के संविधान को भी धता बता देती हैं। जब आर्मी या पुलिस इनका जवाब देते हैं तो इसे मानवाधिकारों का हनन बताया जाता है। ये अधिकार इंसानों के लिए हैं उत्पातियों के लिए नहीं।

कश्मीर समस्या को हथियारों से नहीं बात चीत से ही सुलझ सकती है और ये बात सबसे ज्यादा युवाओं को समझाने की ज़रूरत है!
 

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