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चीन भले ही गीदड़ भबकी देता रहे लेकिन भारतीय सेना और सेना की ताकत से वह बखूबी वाकिफ है। वह जानता है कि भारतीय सेना में एक से वीर हैं जो मरने के बाद भी सेना और देश की सेवा में जुटे हुए हैं। ऐसे ही एक हमारे वीर नायक हैं जसवंत सिंह रावत। जिन्होंने 1962 की लड़ाई में चीनी सेना के छक्के छुड़ा कर रख दिए थे। आज भी जसवंत सिंह चीनी सेना और सैनिकों के ख्वाब में आते हैं।
चीन 1962 की लड़ाई में जीता था भारत से तो डर कैसा?
भाई डर ऐसा है कि चीन भले ही 1962 का युद्ध जीता था लेकिन वह भारतीय सैनिकों से डरता बहुत है। उसके सपने में हवलदार जसवंत सिंह रावत आज भी सपने में आते हैं। सपने में जसवंत सिंह आकर कहते हैं बस एक बार चढाई कर के दिखाओ तुमने मेरी गर्दन काटी थी हमारे सैनिक बैठे हैं तुम्हें नेस्तनाबूद करने के लिए।
जसवंत सिंह चीनी सैनिकों के सपने में कहते हैं चिड़ियों से मैं बाज तड़ाऊं, सवा लाख से एक लड़ाऊं, तभी गोबिंद सिहं नाम कहाऊं...और फिर चीनी सैनिकों की आंखें खुल जाती है और वो अपने बंकर से भागने लग जाते हैं। शहीद, वीर जसवंत सिंह का सपना ही चीन को हराने के लिए काफी है।
राइफल मैन जसवंत सिंह भारतीय सेना का वो सिपाही था जिसने 1962 में नूरारंग की लड़ाई में चीनीयों के छक्के छुड़ा दिए थे।
जसवंत सेला टॉप के पास की सड़क के मोड़ पर वह अपनी लाइट मशीन गन के साथ तैनात थे। चीनियों ने उनकी चौकी पर बार-बार हमले किए लेकिन उन्होंने पीछे हटना क़बूल नहीं किया।
1962 की ही बात है जब चीनी सेना जसवंत सिंह और उनके साथी लांसनायक त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल सिंह गोंसाईं के बंकर पर कहर बरपा रही थी, तब तीनों साथियों ने ठाना था कि हार नहीं मानेंगे और चीन को सबक सिखाएंगे। लेकिन चीनी सैनिकों के हमले में जसवंत के दोनो साथी मारे गए।
जसवंत ने फिर भी हार नहीं मानी और चीनी मीडियम मशीनगन को खींचते हुए वह भारत की चौकी पर ले आए और तीन सौ मीटर तक गन का मुंह चीनियों की तरफ मोड़ कर 72 घंटे तक चीनियों को धूल चटा दिया। चीनी सेनिक सोचते रहे कि भारतीय चौकी पर सैनिकों का बहुत बड़ा सेना का जखीरा है जबकि वहां अकेले जसवंत ने चीनीयों के छक्के छुड़ा रहे थे। और इस युद्ध में जसवंत की मदद कर रही थीं दो लड़कियां सेरा नूरा।
जसवंस सिंह अकेले हैं यह खबर किसी ने चीनी कमांडर मुखबिरों ने दी, वो इतना नाराज हुआ कि जसवंत की मौत के बाद उसके धड़ से अलग कर दिया और उनके सिर को चीन ले गया। जसवंत सिहं की बहादुरी से प्रभावित या यूं कहें सहमा चीन खुद जसवंत सिंह की प्रतिमा बनवाकर भारतीय सैनिकों को भेंट की जो आज भी बॉर्डर पर मौजूद हैं।
भारतीय आर्मी आज भी जसवंत सिंह को मरने के बाद प्रमोशन दे रहा है। पहले प्रमोशन देकर सेना ने उन्हें नायक की उपाधि दी फिर कैप्टन और फिर मेजर जनरल बनाया है। जसवंत सिंह उत्तराखंड से है। इसलिए साल में एक बार सेना उन्हें छुट्टी भी देती है। सेना ने अपने वीर सैनिक जसवंत की याद में मेमोरियल तक बनाया है। सेना के पांच जवान उनकी सेवा में जुटे रहते हैं। अब जब मरने के बाद जिस देश का सैनिक सरहद की रक्षा करता हो उस देश पर आंख उठाने से पहले चीन को कई कई बार डरना वाजिब है और उसे डरना ही चाहिए।