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झूठ के पोखर में ही स्नान करके बोलते हैं यहां लोग, वजह हो जाती है समझ से बाहर

अरविंद तिवारी Updated Sun, 23 Sep 2018 05:17 PM IST
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जब हमें अखबार पढ़ने की समझ आई, तब जाना कि हमारा देश हाथी जैसे खूबसूरत पशु को बतौर उपहार दूसरे देशों को भेजता है और बदले में शेर, बाघ जैसे हिंसक पशुओं को अपने देश में उपहार के रूप में स्वीकार करता है। अब की पता नहीं, पर उन दिनों देश में जितने भी अभ्यारण्य थे, उनमें हाथी सबसे ज्यादा थे। तब हाथी के बारे में हमें जितना भी ज्ञान हुआ, हमारे गांव के महबूब अली से हुआ था। वह किसी रईस व्यक्ति के हाथी के महावत थे। वह कभी-कभी हाथी को गांव में लाते थे, तब हम उनसे पूछते, "चाचा आप एक मन वजन के व्यक्ति हैं, तो इतने बड़े हाथी को कैसे काबू कर लेते हैं?"

उनका जवाब होता, "अंकुश के कारण।" वह हमें लोहे का अंकुश दिखाते और कहते कि हाथी अंकुश मानता है! आज महबूब अली दुनिया में नहीं हैं, पर जब देश में उपद्रव होते हैं और तंत्र नाकाम हो जाता है, तो उनके अंकुश की याद आती है। काश! ऐसा ही कोई अंकुश प्रशासन के पास होता। 

इन दिनों पशुओं से ज्यादा झूठों के अभ्यारण्य की चर्चा हो रही है। देश का मौसम झूठों की आबादी बढ़ा रहा है। गांवों से लेकर शहरों तक यह अभ्यारण्य फैला है। हालांकि, सियासत में सबसे ज्यादा झूठे पाए जाते हैं, पर दीगर इलाके भी इनसे अछूते नहीं हैं। सियासी झूठे जब मानवाधिकार पर बोलते हैं, तो उनकी आत्मा धिक्कार-धिक्कार कहती है, पर वे इस तरह बोलते हैं, जैसे- कोई बलात्कारी बाबा चेलियों के प्रेम को भगवान की भक्ति बताता है! ये लोग झूठ के पोखर में स्नान करके ही बोलते हैं। झूठे आंकड़ों के सहारे बोलते हैं। जब टीवी की बहस में जाते हैं, तो झूठ का शस्त्रागार इनके साथ होता है।

 
नौकरशाही में झूठों की कोई कमी नहीं है। ये झूठे हमेशा तनाव रहित रहते हैं, क्योंकि इनके सियासी आका हमेशा फलित होते हैं। चाहे शौचालयों का निर्माण हो या गरीबों के मकान, इनके कागजों पर झूठ आ विराजता है। झूठों के इस अभ्यारण्य में हिंदी साहित्य का योगदान उल्लेखनीय है। कुछ तो पुस्तकों पर फर्जी परिचय छपाए बैठे हैं, तो कुछ बड़े-बड़े साहित्यकारों के साथ फोटो खिंचाए बैठे हैं। जरूरत पर ये फोटो बहुत काम के होते हैं। कुछ लोग इक्कीस सौ रुपयों का पुरस्कार सभी विधाओं में देते हैं। एक अनार और सारी विधाएं बीमार! कम पैसों के इनाम की ज्यादा आलोचना भी नहीं होती। 

पारदर्शिता इतनी कि उनके यहां सर्वश्रेष्ठ चुटकुले पर दिया जाने वाला इक्यावन रुपये का पुरस्कार भी पक्षपात तरीके से ही दिया जाता है!
इधर तमाम बाबा इस अभ्यारण्य में चार चांद लगा रहे हैं। उनके झूठ को झूठ तभी साबित किया जा सकता है, जब कोर्ट हस्तक्षेप करता है। अब ऐसे में हमारी सरकार विदेश में बैठे झूठों को वापस लाना चाहती है। इंटरपोल की मदद ले रही है। सरकार को इतनी बात समझ में नहीं आती कि इस फील्ड के तमाम झूठे सागर लांघने को तैयार बैठे हैं। उनकी पूर्व सूचना इंटरपोल को दे दो, ताकि हम झूठों के अभ्यारण्य को सुरक्षित और संरक्षित रख सकें।                    
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