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बिहार वैसे भी बुद्धिजीवियों का राज्य रहा है। शुरू से अगर लालू और नितीश बिहार के साथ गिल्ली-डंडा नहीं खेलते तो शायद आज इसका हाल कुछ और ही होता। पर क्या करें उन्हें भी तो अपना घर चलाना है। हम बिहार को जानते हैं आईएएस-पीसीएस के लिए, यूपीएससी के लिए, आईआईटी के लिए, सुपर-30 के लिए। लगता है कि क्या खाकर पढ़ते हैं बिहारी लोग जो इतनी तेज़ दिमाग चलता है। बहुत मेहनती भी होते हैं सो आगे भी बढ़ते हैं। फिर भी 'बिहारी' एक गाली ही बनी हुई है।
ख़ैर, इस पर फिर कभी बहस करेंगे। कहना ये था कि इतनी अच्छाइयों के बावजूद हम अभी अगर बिहार को जानते हैं तो किसलिए? रूबी राय के लिए? सौरभ श्रेष्ठ के लिए? नाम ही खराब कर दिया है बिहार का! एक समय बिहार बोर्ड के 60% नम्बर भी जाने जाते थे। आज अगर किसी को मेहनत के बाद भी 85% मिले होंगे तो उसकी मेहनत पर यकीन करने में वक्त लगेगा। हमें तो गुस्सा आता ही है, पता नहीं बिहार के बंधुओं को कितना बुरा लगता होगा।
तो भईया आज हम आपको ये बताने आए थे कि बिहार में एक के बाद एक ऐसे होनहार लोग टॉपर कैसे बने इस राज़ से पर्दा उठ गया है। सारा खेल खत्म हो गया। दरअसल बिहार बोर्ड के चेयरमैन ने अपनी कारस्तानी कुबूल कर ली है। उनको पईसा कमाना था, सो कमा लिए। किसी का भविष्य बने न बने इसका ठेका थोड़ी न लिए हैं। सर जी ने कह दिया कि उन्होंने ही उन होनहारों को टॉपर बनाया था। वो भी 20-20 लाख रुपये लेकर।
दरअसल बच्चे कई तरह के होते हैं। एक वो जो पागलों की तरह पढ़ते हैं, जिन्हें देखकर आपके मां-बाप आपकी क्लास लगाते हैं और कई बार चप्पलियाते भी हैं। दूसरे वो जो पढ़ते हैं क्योंकि उन्हें यही बताया गया है कि पढ़ोगे तो ही किसी लायक हो पाओगे। तीसरे होते हैं वो बेचारे जिनकी खोपड़ी पर कितने भी लात-जूते-घूसे बरसाए जाएं पर वो पढ़ ही नहीं सकते। उनको पढ़ना ही नहीं है, आपको जो मन करे वो कर लो, नहीं पढ़ेंगे तो नहीं पढ़ेंगे।
इन बच्चों के लिए उनके मां-बाप ने पइसे फूंके थे, 20 लाख रुपये। बाप रे! इतने में तो हमारे अखिलेश जी नौकरी ही दे देते। तो बीस लाख रुपये फूंके गए इनकोे पास करवाने के लिए। अब 20 लाख हलुआ तो है नहीं, जो इतना देगा वो पास ही क्यों होगा? टॉपर न बनेगा? बच्चे का मन है भाई!
प्रॉडिकल साइंस पढ़ने वाले बच्चे हैं। सोडियम के बाहरी शेल में
2 इलेक्ट्रॉन भरने वाले बच्चे हैं। तो इन्हें टॉपर बना दिया गया, बस!
अरे-अरे! इन होनहारों के बीच मैं इनके मुखिया का नाम तो बताना ही भूल गई। बिहार बोर्ड के चेयरमान सर का नाम है - लालकेश्वर प्रसाद। जितना रोशन रूबी राय का नाम किया है उससे कम से कम 70% ज्यादा रोशन इनका नाम करना चाहिए। सबको पता चलना चाहिए यार! ऐसे थोड़ी न होता है। इतना बड़ा रिस्क लिया उन 20% वाले बच्चों को 90% तक पहुंचाने में, तो क्या 70% की मेहनत के लिए 70% एक्स्ट्रा फोकस नहीं पड़ना चाहिए सर पर?
नकल करवाने का एक रैकेट है - किंगपिन। इससे पईसा लिया था सर जी ने होनहारों को टॉपर बनाने के लिए। पटना के एसएसपी साहब तो ये भी कह रहे हैं कि सर जी ने 100 से अधिक कॉलेजों से 4-4 लाख रुपये लिए और उन्हें बिहार बोर्ड की मान्यता दे दी। पईसा अपने घर में आता है तो किसी को प्रॉब्लम नहीं होती है, सो इन्हें भी नहीं हुई।
देश का ठेका थोड़े न ले रखे हैं। सब आईएएस ही बन रहे हैं, क्या हुआ अगर कोई टॉपर क्लर्क भी न बन पाए तो? बैलेंस भी तो बनाना है न सोसाइटी में! वो इनकी गलती थोड़ी है कि चोरी पकड़ी गई। हम भी तो आंख मूंद कर किसी को कोई भी कुर्सी पकड़ा ही रहे हैं न। सेंसर बोर्ड से लेकर निफ्ट तक प्रतिभावान लोग ही बैठे हैं। इन बेचारों को भी अपना जौहर दिखाने का मौका मिल ही जाता, पर खेल पहले ही खत्म हो गया।
मां-बाप कितने अच्छे हैं जो पास करवाने के लिए इतने पईसे दे दिए। हमारे बाप तो खराब नम्बर सुनकर दो कंटाप धर देते और जो बेइज़्ज़ती करते सो अलग। गलती किसी की नहीं है। सिस्टम की भी नहीं और मम्मी-पापा की तो बिल्कुल भी नहीं। सबलोग मेहनत कर रहे थे ताकि बच्चे का भविष्य संवर जाए। ये बच्चे इसी प्रक्रिया से पढ़ते रहते तो एक दिन उन मुखिया जी की कुर्सी पर भी बैठ सकते थे, पर फ्यूचर बिगाड़ दिया उनका। उनकी कुर्सी पर बैठकर वो सबको बताते की पढ़ने-लिखने में कुछ नहीं रखा है। पैसा फेंक तमाशा देख।
सबने खूब मेहनत की, कई दूसरे लोग अभी मेहनत कर भी रहे होंगे। अतुल्य भारत का निर्माण ऐसी ही मेहनत से होना है।