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रैपिड मेट्रो: टिकट होते हुए भी बच्चों का हुलिया देख नहीं करने दिया सफर

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Thu, 04 May 2017 02:07 PM IST
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begger kids - फोटो : mid-day
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हमारे भारतीय समाज के दो चहरे हैं। ये चहरे, समय और स्थिति देखकर बदल-बदल कर हमारे सामने आते रहते हैं। एक तरफ लोग कहते हैं कि भाई हम तो अमीर-गरीब में कोई फर्क नहीं करते और सभी की बराबर इज्जत करते हैं और दूसरी तरफ तुरंत ही किसी मौके पर हम उन्हें दुत्कार देते हैं। कई बार उनका छू देना तक हमें बहुत बुरा लग जाता है। हम लोगों का ओहदा देखकर उन्हें इज्जत देते हैं और यह सिलसिला ऐसे ही चलता चला जाता है।

किसी भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करने का क्या नियम होता है? आप टिकट लीजिए और फिर चाहे आप कितने ही गरीब हों या अमीर हों आप सभी के साथ सफर कर सकते हैं। लेकिन शायद दिल्ली मेट्रो के अपने कुछ अलग नियम हैं। यही वजह है कि पिछले दिनों रैपिड मेट्रो में कुछ बच्चों को टिकट होने के बावजूद सफर करने से मना कर दिया गया। यह कहना है शिवान्या पांडेय का जिन्होंने अपनी एक आंखों-देखी घटना फेसबुक पर बयान की। इसको सुनकर आपको हैरानी भी होगी और गुस्सा भी आएगा क्योंकि शायद रैपिड मेट्रो ने यात्रियों के लिए एक ड्रेस कोड निर्धारित कर दिया है।

शिवान्या कहती हैं कि अभी इंडसइंड बैंक साइबर सिटी मेट्रो पर 4-6 बच्चों को सिर्फ इसलिए एंट्री नहीं मिली क्योंकि उन्होंने फटे-पुराने कपड़े पहन रखे थे और शायद वो भीख मांगते थे। वो अपना किराया देने के लिए तैयार थे लेकिन इसके बावजूद गार्ड्स ने उन्हें अंदर नहीं घुसने दिया। 
 


यह सुनने में बेहद खराब लगता है लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। अभी यह बात सामने नहीं आई है कि गार्ड्स इस बारे में क्या कहना चाहते हैं। क्या कारण था जो उन्होंने बच्चों को अंदर नहीं जाने दिया। वो बच्चे बहुत छोटे रहे होंगे और उनके साथ कोई था भी नहीं (जैसा शिवान्या ने बताया), ऐसे में हो सकता है कि गार्ड्स ने कुछ सोच कर ही यह फैसला लिया होगा।

हो सकता है कि उन्हें इस बात का भी डर हो कि कहीं ये बच्चे अंदर जाकर भीख न मांगे। इन सब बातों के बावजूद किसी की आर्थिक स्थिति और पहनावे की वजह से उसे मेट्रो में सफर करने से रोकना गलत है। डीएमआरसी को तुरंत ही इस मुद्दे की जांच करके यह साफ करना चाहिए कि ऐसा करने के पीछे की वजह क्या थी। 

अगर शिवान्या ने जो कारण बताए वही सच है तो यह बेहद दुख की बात है और यह साबित करता है कि कहीं न कहीं अब सब कुछ पैसा तय करने लगा है, जो कि बिल्कुल नहीं होना चाहिए। लेकिन यह भी सच है कि हमें तुरंत ही किसी मुद्दे पर अपनी एक राय नहीं बना लेनी चाहिए बल्कि पूरी बात का पता चलने पर ही अपनी बात रखनी चाहिए।
 

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