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तीन तलाक को लेकर पूरे देश में मुद्दा गरम है। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है। इस मुद्दे को लेकर अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय है। हाल ही में कुछ मामले ऐसे भी सामने आए जब फोन और कंप्यूटर के जरिये तलाक दी गई। यहां तलाक और मुस्लिमों के अन्य रिवाजों से जुड़ी बहस से ताल्लुक रखने वाली कुछ खास बातें हम रखने की कोशिश कर रहे हैं।
तीन तलाक के बाद मर्द को अगर लगता है कि उसने फैसला जल्दबाजी में किया है और उसे फिर से अपनी पत्नी के साथ रहना है तो फिर एक ही सूरत बचती है... निकाह हलाला।
हलाला- अगर मर्द को लगता है कि उसने अपनी पत्नी को बगैर सोचे-समझे या गुस्से में तलाक दे दिया और उसके साथ वह दोबारा रहना चाहता है तो उसे निकाह हलाला की प्रक्रिया से गुजरना होगा। इसमें तलाकशुदा पत्नी को किसी दूसरे शख्स से शादी करनी होती है। फिर उससे तलाक लेने के बाद ही वह पहले पति के साथ निकाह कर सकती है।
बहुविवाह - इस्लाम में शरीयत के मुताबिक मर्द को चार शादियों की इजाजत है। और चारों बीवियों को एक साथ रखने की भी। लेकिन इस्लाम के मुताबिक मर्द चार शादियां तभी कर सकता है जब उसकी पहली बीवी इसकी इजाजत दे और पति चारों बीवियों का खर्च उठाने और पालन-पोषण करने में आर्थिक और सामाजिक रूप से सक्षम हो।
इस्लाम में तलाक
इस्लामी कानून के मुताबिक शादी औरत-मर्द के बीच सिविल करारनामा है, जो आपसी रजामंदी से होता है। कुरान के मुताबिक इस्लाम में आदर्श तलाक वह है जिसमें एक बार पति की ओर से तलाक बोलने के बाद तीन महीने की इद्दत का समय होता है। यह वक्त समझौते की कोशिश या बीच-बचाव के लिए होता है। इस दौरान दोनों पक्ष के एक-एक पंच सुलह कराने की कोशिश के लिए रखे जाते हैं। इस दौरान पति-पत्नी आपस में भी सुलह कर सकते हैं। हालांकि एक साथ रह नहीं सकते। ऐसा करने पर तलाक मान्य नहीं होगा। तीन महीनों के बाद सुलह-समझौते न होने की स्थिति में ही तलाक मान्य होगा।
अक्टूबर, 2015 में सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक की फूलवती नामक महिला के केस की सुनवाई केदौरान हिन्दू उत्तराधिकार कानून की चर्चा हुई । इस दौरान वादी प्रकाश के वकील ने कहा कि हिन्दू उत्तराधिकार कानून की बात तो हो रही है, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ में ऐसे कई प्रावधान हैं, जो महिला के हकों की अनदेखी करते हैं।
इस पर, जस्टिस अनिल दवे और जस्टिस एके गोयल ने मामले पर स्वत:संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका दायर (पीआइएल) करने का फैसला दे दिया। साथ ही, केंद्र सरकार को नोटिस देकर पक्ष रखने के आदेश भी दे दिए।
फरवरी, 2016 में उत्तराखंड की शायरो बानो अपने शौहर द्वारा तीन तलाक देने केखिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। उसकी मांग थी कि तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया जाए।
मुसलमानों की संस्था जमीअत-ए-उलमा-ए-हिंद भी सुप्रीम कोर्ट पहुंची कि पर्सनल लॉ से जुड़े इस मसले पर उनकी भी राय सुनी जाए। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने याचिका दायर की और उनका पक्ष सुनने की मांग की।
शायरा बानो के पक्ष में भारतीय मुस्लिम महिला मंच समेत कुछ सामाजिक संगठन भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 16 फरवरी को सारी अपील मंजूर करते हुए 30 मार्च तक अपना हलफनामा पेश करने को कहा।
30 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि 11 मई से संवैधानिक पीठ मामले की प्रतिदिन सुनवाई करेगी।
10 मई को सुप्रीम कोर्ट ने रोजाना सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुवाई में अलग-अलग धर्म केपांच जजों की संविधान पीठ का गठन किया।
याचिकाकर्ता
मुस्लिम विमेंस क्वेस्ट फॉर इक्वलिटी
कुरान सुन्नत सोसाइटी
शायरा बानो
आफरीन रहमान
गुलशन परवीन
इशरत जहां आतिया साबरी
प्रतिवादी
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
जमीयत -ए-उलमा हिंद
भारत सरकार
एमिकस क्यूरी - सुलमान खुर्शीद
याचिकाकर्ता मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि शरीयत की गलत व्याख्या से उनके अधिकारों का हनन हो रहा है। उन्हें उम्मीद है कि सर्वोच्च अदालत इस मामले में कोई ऐतिहासिक फैसला देगी, जिससे उनकी मर्यादा और अधिकारों की रक्षा हो सकेगी।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दलील
1. अगर ट्रिपल तलाक को अवैध करार दिया जाता है, तो इससे अल्लाह के आदेशों की अवमानना होगी। इसके चलते कुरान को बदलने की नौबत भी आ सकती है। इतना ही नहीं इससे मुसलमान पाप के भागी होंगे।
2. मुस्लिम पर्सनल लॉ केतहत तीन तलाक को संविधान की धारा 25 के तहत संरक्षण हासिल है। इस धारा के तहत नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने और प्रसारित करने का मूलभूत अधिकार प्राप्त है। संविधान अल्पसंख्यकों को पर्सनल लॉ अपनाने का अधिकार देता है।
इन बिंदुओं पर फैसला
एक बार तीन तलाक और निकाह हलाला इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं।
इन दोनों को महिलाओं के मौलिक अधिकारों से जोड़ा जा सकता है या नहीं।
कोर्ट तीन तलाक को मूल अधिकारों का उल्लंघन मान आदेश दे सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा -
हम तीन तलाक के मामले की समीक्षा करेंगे।
जरूरत पड़ी तो निकाह हलाला पर समीक्षा करेंगे।
बहुविवाह के मामले की समीक्षा नहीं करेंगे।
तीन तलाक पर पहले हुए फैसले
एक साथ तीन तलाक गैर संवैधानिक है। भारत का संविधान हर धर्म की महिला को सुरक्षा देता है। किसी भी शख्स को पर्सनल लॉ की आड़ में संविधान की भावनाओं के खिलाफ जाने का अधिकार नहीं है।
-आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल की लखनऊ बेंच का फैसला
पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं हो सकते। तीन तलाक संविधान का उल्लंघन है। तीन तलाक के नाम पर मुस्लिम महिलाओं समेत भारत के लोगों के मूल अधिकारों का हनन नहीं हो सकता। तीन तलाक को इजाजत देने से संविधान में मौजूद अनुच्छेद 14, 15 और 21 में उल्लिखित मूल अधिकारों का हनन होता है। जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता है उसे सिविलाइज्ड नहीं कहा जा सकता।
- इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला