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'मी टू' कैपेंन : भारतीय समाज में पुरुष कहां रोए अपना दुखड़ा?

टीम फिरकी, नई दिल्ली Updated Tue, 09 Oct 2018 04:08 PM IST
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me too for men
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कुछ सवाल होते तो जायज हैं लेकिन समाज में खुलेआम तौर पर कह दिए जाएं तो वो नाजायज लगने लगते हैं। ऐसे सवालों की लिस्ट में एक सवाल हर किसी के जहन में होता है, लेकिन उसे कहने या पूछने की हिम्मत शायद ही कोई जुटा पाता हो।

वो सवाल है कि क्या समाज में सिर्फ महिलाओं का ही यौन उत्पीड़न किया जाता है, पुरुषों का नहीं। कभी न कभी, कहीं न कहीं पुरुषों को भी तो उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है, उनके साथ भी तो ऐसा कुछ हो जाता है जो वह न तो किसी से कह पाते हैं और न कुछ कर पाते हैं। 

वैसे तो अपनी सोसाइटी को हमने पुरुष प्रधान समाज का तमगा दे रखा है, हिम्मत वाले सारे काम पुरातन काल से ही मर्दों को दिए जाते रहे लेकिन आज बराबरी के दौर में यह पूरा का पूरा पुरुष समाज अपनी आवाज को उठाने के लिए किसी #MeToo कैंपेन शुरू किए जाने का इंतजार कर रहा है।  

 

हमारा देश पुरुष प्रधान की मानसिकता वाला है यानी चाहे कुछ भी हो गलती पहली नजर में हमेशा पुरुषों की ही मानी जाती है। अभी तक माना जाता था कि काम के स्थान पर सिर्फ महिलाएं यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं, लेकिन आज की तारीख में पुरुष भी ऐसी घटनाओं का शिकार हो रहे हैं। कुछ अध्ययनों से यह साबित भी हुआ है।

संसद में भी नेताओं ने महिला आयोग की तरह पुरुषों के लिए भी कोई संवैधानिक आयोग बनाने की मांग की थी। हालांकि सरकार देश में एक ऐसा अध्ययन कराने की योजना बना रही है, जिससे वर्कप्लेस पर पुरुषों के यौन उत्पीड़न की असल तस्वीर सामने आ सके। 

मेन्स राइट्स मूवमेंट भी उभर रहा 

महिला अधिकारों की लड़ाई के बीच देश में 'मेन्स राइट्स मूवमेंट' भी उभर रहा है। जहां पहले पुरुष अधिकारों की बात कहीं होती नहीं दिखती थी, वहीं अब कई शहरों में हर हफ्ते मेन्स राइट्स ऐक्टिविस्ट बैठक करने लगे हैं। कई बार वे सड़कों पर उतरकर अपने हकों की बात भी करते हैं।

मेन्स ऐक्टिविस्ट्स कहते हैं कि सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी पुरुषों के साथ कानून बराबरी का बर्ताव नहीं कर रहा। ऐसे में दूसरे देशों में भी लोग अब पुरुषों के हकों की लड़ाई लड़ने लगे हैं। इन संगठनों का कहना है कि हमें एंटी-मेल सोच से दिक्कत है।

इसलिए हम पुरुषों को जागरूक कर रहे हैं कि उन्हें अपने हक की आवाज उठानी होगी। इनका कहना है कि हमारे देश में महिलाओं के लिए तो महिला आयोग बना है लेकिन पुरुषों के लिए कुछ भी नहीं है, क्या हमें कभी कोई दिक्कत नहीं होती, हम कहां जाएं अपनी बात रखने। 
 

तमाम रिपोर्ट बताती हैं कि लाखों पुरुष महिलाओं के अत्याचारों से परेशान होकर आत्महत्या कर रहे हैं। महिलाओं के मुकाबले तीन गुना ज्यादा शादीशुदा पुरुष आत्महत्या कर रहे हैं, इससे उनके तानव के स्तर का पता चलता है। पिछले महीने लांसेट पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित ग्लोब बर्डन ऑफ डिसीज स्टडी 1990-2016 में बताया गया कि आत्महत्या के 63 प्रतिशत मामले भारत में सामने आए हैं।

आत्महत्या करने वाले लोग 15 से 39 आयु वर्ग के थे। केरल और छत्तीसगढ़ में पुरुषों के बीच आत्महत्या से होने वाली मृत्युदर अधिक रही थी। अध्ययन में कहा गया है कि विवाहित महिलाएं भारत में आत्महत्या की मौत के उच्च अनुपात के लिए जिम्मेदार हैं।

ऐसे हुई पुरुषों के अधिकारों का संगठन बनाने की शुरुआत 

करीब 10 साल पहले बड़े स्तर पर भारत में मेन्स राइट्स मूवमेंट की शुरुआत हुई। तब सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन (Save Indian Family Foundation) नाम से अंब्रेला संगठन बना और फिर इस संगठन के अलग-अलग राज्यों, अलग-अलग शहरों में चैप्टर बनाए गए। यह रजिस्टर्ड संगठन है और पुरुषों के हकों की लड़ाई लड़ने की बात करता है।

दिलचस्प यह है कि इस संगठन को बनाने का विचार भी जेल में ही 498ए (दहेज प्रताड़ना) के आरोप में बंद लोगों को आपस में बातचीत करके आया। सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन के संस्थापक राजेश वखारिया कहते हैं कि जब 498ए केस के शिकार हम कुछ लोगों ने मेन्स हेल्पलाइन नंबर सर्च किया तो पता चला कि ऐसा कोई नंबर है ही नहीं। तब पुरुषों के अधिकारों का संगठन बनाने की शुरुआत हुई। 

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