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हिंदी सीरियल क्यों विदेशी सीरियल से मुकाबला नहीं कर पा रहे?

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Thu, 16 Mar 2017 04:15 PM IST
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s - फोटो : google
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आज आप किसी भी यंग लड़के या लड़की से पूछ लीजिए कि उसका पसंदीदा टीवी शो कौन सा है। अगर वो लड़का या लड़की अंग्रेज़ी समझते होंगे और इंटरनेट फ्रेंडली होंगे तो झट से उनके मुंह पर कुछ ऐसे नाम आ जाएंगे जो आज से कुछ साल पहले तक किसी ने नहीं सुने थे।

चाहे फिर वो फ्रेंड्स हो या गेम ऑफ़ थ्रोंस, शेर्लोक हो या ब्रेकिंग बैड, इन कुछ चुनिंदा टीवी सीरीज़ ने लोगों को अपना दीवाना बना रखा है। इनमें से कुछ सीरियल तो ऐसे हैं जो हॉलीवुड में टेलीकास्ट होकर बंद भी हो गए, लेकिन अक्सर ही लोग इनको लेकर बात करते हुए नज़र आते हैं।
 

आखिर क्या कारण है कि लोग इन धारावाहिकों को पसंद कर रहे हैं और हिंदी सीरियलों से दूर जा रहे हैं। इसकी सिर्फ़ एक वजह है और वो है कंटेंट। यानी अब हिंदी सीरियलों में देखने के लिए कुछ भी नहीं रहा। हिंदी सीरियल केवल सास-बहू तक ही सिमट के रह गए हैं और उन्हें हद से ज़्यादा घसीटा जाता है। कोई भी व्यक्ति आखिर प्यार-मुहब्बत, शादी और फिर लड़ाई, किस हद तक देख सकता है।

अगर कॉमेडी सीरियलों की बात करें तो कहीं न कहीं उसमें भी एक रसता आ गई है। तारक मेहता का उल्टा चश्मा जैसे धारावाहिक लगातार चलते ही चले जा रहे हैं। अब हास्य के नाम पर कई जगह बेहद बेवकूफ़ी दिखाई जाती है।
 

विदेशी धारावाहिकों में लोगों को कई जॉनर देखने को मिल जाते हैं। इनमें हास्य भी है, ड्रामा भी है, थ्रिल भी है, लव स्टोरीज भी हैं, क्राइम भी है, पॉलिटिक्स भी है। मतलब वहां हर रस के सीरियल बन रहे हैं जिनका यहां हिंदी पट्टी में भारी अभाव है। जहां लोग अपने जीवन से इतना परेशान हैं वहां भला कोई सास-बहू वाले सीरियल क्यों देखना चाहेगा?

ऐसा नहीं है कि हिंदी के धारावाहिकों में नयापन नहीं है। बहुत से सीरियल एक नए टॉपिक के साथ शुरू होते हैं। वो किसी सामाजिक मुद्दे पर बनाए जाते हैं लेकिन कुछ एपिसोड्स के बाद ही वहां भी घर-घर की कहानी शुरू हो जाती है। जो सीरियल सच में नए होते हैं वो कब आते हैं और कब चले जाते हैं किसी को पता ही नहीं चलता।
 

ऐसा ही एक धारावाहिक था सुमित संभाल लेगा। ये भी हर घर की खानी ही थी लेकिन इस बार इसमें एक पुरुष के नज़रिए से बातों को लोगों के सामने परोसा गया था। कैसे एक शादीशुदा मर्द अपनी मां और बीवी के बीच फंस जाता है। यहां से हास्य पैदा होता है और इस हास्य की तुलना हम किसी विदेशी सीरियल के हास्य से कर सकते हैं। लेकिन इसके कुछ ही एपिसोड आए और उसके बाद ये बंद हो गया। 

इसी तरह साराभाई वर्सेज़ साराभाई भी एक शानदार सीरियल था जिसे एक बार फिर वेब सीरीज़ के रूप में वापस लाया जा रहा है। इसके अलावा हास्य के मामले में तो टीवी हमेशा ही काफ़ी आगे रहा है। ये वही टेलीविज़न है जिसमें श्रीमान श्रीमती, हम पांच, तू तू मैं मैं जैसे सीरियल बने। ये सारे ही अपने प्लॉट और कहानी को लेकर काफ़ी कसे हुए थे और समय रहते ख़त्म भी हो गए। लेकिन उसके मुकाबले में आज के सीरियलों में वो बात नहीं।
 

वहीं अगर हम किसी अच्छे ड्रामा सीरीज़ की बात करें तो आज हमें ऐसा कोई धारावाहिक नहीं दिखता। हिंदी सीरियलों ने ड्रामा को मेलो ड्रामा में बदल दिया है। यही वजह है कि आज वेब सीरीज़ बहुत मशहूर हो रहे हैं और जो कंटेंट हमें यहां टीवी पर दिखना चाहिए वो हमें वहां मिल रहा है। चाहे पर्मानेंट रूममेट्स हो या पिचर्स इन वेब सीरीज़ ने हिंदी टीवी सीरियलों को फ़ेल कर दिया है।

अब जो व्यक्ति कोडिंग करके आ रहा है क्या वो किसी सीरियल की मेन लीड को मक्खी में परिवर्तित होते देखना चाहेगा? अब तो बॉलीवुड की तरह हिंदी धारावाहिकों में भी कुछ ऐसे सीन दिखाए जाते हैं जो हिंदी पट्टी के दर्शकों के गले से नीचे नहीं उतरते वहीं इन वेब सीरीज़ को इस स्तर तक नहीं गिरना पड़ा है क्योंकि अभी उनके पास बेहतर कंटेंट मौजूद है। दर्शकों को कंटेंट ही चाहिए। 

वैसे तो हिंदी धारावाहिकों का विदेशी सीरियलों से कोई मुकाबला नहीं है लेकिन अगर इन्हें रेस में बने रहना है तो साराभाई और सुमित संभाल लेगा जैसे सीरियल लाने होंगे। अब ये कहने से काम नहीं चलेगा कि गृहणियां यही सब देखना चाहती हैं। आज सभी के हाथ में स्मार्ट फ़ोन है। इंटरनेट फ्री में मिल रहा है। ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि टीवी अपनी बची-कुची ऑडियंस भी खो दे।
 

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