अश्लीलता से अध्यात्म और योग से भोग तक परोसने में माहिर हैं चैनल, आपस में लड़ते हैं तीतर बटेर की तरह
डॉ. अतुल चतुर्वेदी
Updated Tue, 18 Sep 2018 05:56 PM IST
जैसे हर मनुष्य का अपना सत्य होता है, वैसे ही चैनलों के भी अपने-अपने सत्य होते हैं। आजकल चैनल समाचारों के काम कम आते हैं, वे अखाड़ों में तब्दील ज्यादा हो चुके हैं। जहां दो विरोधी पहलवानों को तीतर-बटेर की तरह लड़ाया जाता है। बीच-बीच में एंकर उनको चुग्गे डालते रहते हैं। कभी-कभी हालत हाथापाई तक आ पहुंचती है। यह किसी भी चैनल के लिए आदर्श स्थिति कहलाती है, जिससे उसकी टीआरपी बढ़ती है। कार्यक्रम प्रस्तोता का मार्केट उछाल मारता है। चैनल वैसे तो स्वयं को स्वतंत्र कहते हैं, लेकिन कुछ चैनल सदा भक्तिभाव की मुद्रा में रहते हैं, तो कुछ सदा विद्रोही मुद्रा में।
कुछ संतुलन साधने की कला में माहिर होते हैं, वे यदि एक खबर सरकार के विरुद्ध दिखाते हैं, तो पश्चाताप स्वरूप तुरंत दूसरी खबर सरकार के पक्ष में दिखा देते हैं। इससे उनको दूरगामी फायदे भी होते हैं और पापों का प्रक्षालन भी हो जाता है। चैनलों के सत्य सर्वथा अलहदा होते हैं। हर एक के अपने आराध्य देव होते हैं। चैनल उनकी छत्रछाया में ही पनपते हैं। उनके काले कारनामों पर परदे डालना, उनकी महात्वाकांक्षा को पंख लगाना ही इन माध्यमों का परम गुप्त उद्देश्य है।
प्रायः हर चैनल के पीछे किसी सफल उद्योगपति का हाथ होता है। ये चैनल जनता के हितों की आड़ में अपने मालिकों के हितों के लिए समर्पण भाव से काम करते हैं। कई बार इनको देखने से अहसास ही नहीं हो पाता कि सच क्या है और झूठ क्या? जिसे एक घोटाला बता रहा होता है, दूसरा उसे विकास का नाम दे रहा होता है।
एक बता रहा होता है कि सड़कों पर गड्ढे हैं और पानी भर जाता है, तो दूसरा उसी समय स्वच्छता के लिए उस शहर के नाम की चर्चा कर रहा होता है। दर्शक इस गोरखधंधे में उलझकर रह जाता है। पूरा सत्य कभी भी उसके सामने नहीं आ पाता। वह अर्द्ध सत्य के सहारे ही काम चलाता है। हर लोकप्रिय चैनल के मालिक की अंतिम ख्वाहिश होती है, राज्यसभा या लोकसभा तक पहुंचना। चैनल चलाने का यह अंतिम फलागम है। क्राइम खबरों का प्रस्तोता स्वयं किसी पुराने क्रिमिनल से कम नहीं लगता। उसकी डरावनी आवाज को टेप करके बच्चों को रात में जल्दी सुलाया जा सकता है।
हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में इन चैनलों का भारी योगदान है। अश्लीलता से लेकर अध्यात्म तक। योग से लेकर भोग तक। समाचार से लेकर अफवाह तक और सनसनी से लेकर ओपिनियन पोल तक वे सब कुछ एक कुशल रेस्तरां की तरह परोस रहे हैं। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप उससे हाजमा खराब करते हैं या पेट भरने का काम चलाते हैं। आप उसे नारदवाणी का मॉडर्न वर्जन मानते हैं या खालिस मनोरंजन का साधन।