फांसी पर लटकाने से पहले कैदी के कान ये सब कहता है जल्लाद, ये हैं फांसी के नियम
टीम फिरकी, नई दिल्ली
Updated Sun, 25 Nov 2018 05:28 PM IST
फांसी देना और लेना कोई आसान काम नहीं होता है। किसी को फांसी देते समय कुछ नियम का पालन किया जाता है। इसमें फांसी का फंदा, फांसी देने का समय, फांसी की प्रक्रिया आदि शामिल है। आपको बता दें, किसी को फांसी देते समय कुछ नियमों का पालन करना जरूरी होता है, जिसके बिना फांसी की प्रक्रिया अधूरी मानी जाती है। बिना नियमों का पालन किए फांसी की प्रक्रिया पूरी नहीं की जाती है। आज हम आपको फांसी (Death Penalty) से जुड़े कुछ ऐसी जानकारी बता रहे हैं जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे।
सबसे पहले आपने फिल्मों में अक्सर देखा होगा कि फांसी की सजा सुनाते ही पेन की निब इसलिए तोड़ दी जाती है क्योंकि इस पेन से किसी का जीवन खत्म हुआ है तो इसका कभी दोबारा प्रयोग न हो। पेन की निब तोड़ना इस बात का प्रतीक होता है अब उस व्यक्ति का जीवन समाप्त हो गया है। पेन की निब तोड़ने को लेकर एक कारण यह भी है कि एक बार फैसला लिख दिए जाने और निब तोड़ देने के बाद खुद जज को भी यह अधिकार नहीं होता कि उस जजमेंट की समीक्षा कर सके या उस फैसले को बदल सके या पुनर्विचार की कोशिश कर सके।
फांसी देने से पहले कैदी को नहलाया जाता है और नए कपड़े पहनाए जाते हैं, जिसके बाद उसे फांसी के फंदे तक लाया जाता है। फांसी देते समय वहां जेल अधीक्षक, एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट, जल्लाद और डॉक्टर मौजूद रहते हैं, इनमें से यदि कोई भी एक न हो तो फांसी नहीं दी जा सकती है।
फांसी देना जेल अधिकारियों के लिए बहुत बड़ा काम होता है। सुबह होने से पहले ही हमेशा फांसी इसलिए दी जाती है ताकि सुबह जेल के दूसरे कैदियों का काम बाधित ना हो। एक नैतिक कारण ये भी है कि जिसको फांसी की सजा सुनाई गई हो उसे पूरा इंतजार कराना भी उचित नहीं है। वहीं रात में जेल के कैदी को फांसी देने के बाद परिवार वालों को सुबह अंतिम संस्कार करने के लिए समय भी मिल जाता है।
बता दें, फांसी देने से पहले सजा-ए-मौत के कैदी से उसकी आखिरी इच्छा पूछी जाती है। आखिरी इच्छा पूछे बगैर फांसी नहीं दी जा सकती है। कैदी की आखिरी इच्छा में परिवार वालों से मिलना, अच्छा खाना या कोई धर्म ग्रंथ पढ़ना आदि शामिल होता है, जो भी व्यक्ति अपनी जिंदगी खत्म करने से पहले करना चाहता है।
सबसे अहम और खास बात जिस अपराधी को फांसी दी जाती है उसके आखिरी वक्त में जल्लाद ही उसके साथ होता है। बता देंं, सबसे बड़ा और सबसे मुश्किल काम जल्लाद का ही होता है। फांसी से पहले पहले चेहरे को काले सूती कपड़े से ढक दिया जाता है और फिर जल्लाद अपराधी के कानों में कुछ बोलता है।
जल्लाद मुजरिम के कान में कहता है कि मुझे माफ कर दो, हिंदू हुआ तो राम-राम, मुस्लिम हुआ तो सलाम, हम क्या कर सकते हैं हम तो हैं हुकुम के गुलाम। जिसके बाद वह चबूतरे से जुड़ा लीवर खींच देता है। फांसी देने के बाद दस मिनट के लिए फांसी पर शव लटकता रहता है फिर डॉक्टर फांसी के फंदे में ही चेकअप करके बता देते हैं कि मृत है या नहीं। इसके बाद ही शव को फांसी के फंदे से उतारा जाता है।