देश के प्रमुख तीर्थस्थलों में से भगवान जगन्नाथ का अपना एक अलग ही महत्व है। इस मंदिर में कई अनुष्ठान और परंपराएं ऐसी है जो अपनी भव्यता के लिए विश्व विख्यात है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा इन्हीं परंपराओं में से एक है जिसमें भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर बाहर निकलते हैं।
रथ यात्रा को लोग एक बड़े त्यौहार के तौर पर मनाते हैं। हर साल यह रथ यात्रा आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। इस दौरान न सिर्फ देश बल्कि विदेश से भी हजारों श्रद्धालु रथ यात्रा में हिस्सा लेने पहुंचते हैं।
परंपरा के अनुसार देवी- देवताओं को रथ यात्रा की वापसी के बाद वाले दिन सोने के आभूषणों से सजाया जाता है और इस दौरान वह श्री जगन्नाथ मंदिर के सिंह द्वार के सामने अपने-अपने रथ में आसीन रहते हैं।
श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजीटीए) के विशेष अधिकारी भास्कर मिश्रा ने कहा, 'देवी-देवताओं को करीब 208 किलोग्राम सोने के आभूषणों से सजाया गया।' मंदिर की परंपरा के अनुसार देवी-देवताओं को साल में पांच बार सोने से सजाया जाता है। ऐसे चार समारोह मंदिर के अंदर होते हैं जबकि केवल ‘सुना बेशा’ अनुष्ठान 12वीं सदी के मंदिर के बाहर होता है।