महाराणा प्रताप, जिनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। वह मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया और कई बार मुगलों की सेना को युद्ध में हराया। आज उस वीर राजपूत राजा महाराणा प्रताप की 479वीं जयंती है। इस मौके पर देशभर में तरह-तरह के आयोजन किये जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करते हुए महाराणा प्रताप को श्रद्धांजलि दी है।
इतिहास की किताबों में आपने हल्दीघाटी युद्ध के बारे में जरूर पढ़ा होगा। ये वो लड़ाई थी, जिसमें महाराणा प्रताप के महज 22 हजार सैनिकों ने मुगल सम्राट अकबर के दो लाख सैनिकों के दांत खट्टे कर दिये थे। यह एतिहासिक युद्ध साल 1576 में लड़ गया था।
कहते हैं कि हल्दीघाटी का युद्ध महज एक दिन ही लड़ा गया था, लेकिन इस लड़ाई में करीब 17 हजार सैनिक मारे गये थे। इस युद्ध में महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की भी मृत्यु हो गई थी। ये वही घोड़ा था, जो युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाया था। महाराणा प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस घोड़े का दाह-संस्कार किया था, जिसकी समाधि चित्तौड़ की हल्दी घाटी में बनी हुई है।
महाराणा प्रताप के बचपन का नाम कीका था। वह अपने माता-पिता की पहली संतान थे। राजमहल में पले-बढ़े महाराणा बचपन से ही बहादुर और अपने लक्ष्यों को पाने का हौसला रखते थे। जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते हैं, उस उम्र में वह हथियारों से खेलते थे।
महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु मुगल सम्राट अकबर था। हालांकि उनकी यह लड़ाई कोई व्यक्तिगत द्वेष का परिणाम नहीं थी बल्कि यह अपने-अपने सिद्धांतों और मूल्यों की लड़ाई थी। एक अकबर था जो अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था, जबकि एक तरफ महाराणा प्रताप थे जो अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे थे।
कहते हैं कि महाराणा प्रताप के डर से अकबर अपनी राजधानी लाहौर लेकर चला गया था। जब उनकी मृत्यु हुई, तभी वो अपनी राजधानी आगरा लेकर आया। महाराणा प्रताप को आज पूरी दुनिया एक वीर योद्धा के तौर पर जानती है, जो मुगलों से कभी नहीं हारा।