धार्मिक नगरी वृन्दावन भारत के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। इसे भगवान श्रीकृष्ण की नगरी भी कहते हैं। यहीं पर स्थित है निधिवन, जो एक अत्यन्त ही पवित्र और रहस्यमयी धार्मिक स्थान है। कहा जाता है कि निधिवन में भगवान श्रीकृष्ण और उनकी प्रेयसी राधा आज भी अर्द्धरात्रि के बाद रास रचाने आते हैं। रास के बाद निधिवन परिसर में स्थापित रंग महल में शयन करते हैं। रंग महल में आज भी प्रसाद (माखन मिश्री) प्रतिदिन रखा जाता है। वहां रात में किसी को भी जाने की इजाजत नहीं है। सिर्फ यही नहीं, इस वन के आसपास रहने वाले लोगों के घरों में खिड़कियां भी नहीं हैं।
कहा जाता है कि रंग महल में सुबह बिस्तरों को देखने से प्रतीत होता है कि वहां निश्चित ही कोई रात में सोया था और प्रसाद भी ग्रहण किया था। लगभग दो ढ़ाई एकड़ क्षेत्रफल में फैले निधिवन के वृक्षों की खासियत यह है कि इनमें से किसी भी पेड़ के तने सीधे नहीं मिलेंगे और इन पेड़ों की डालियां नीचे की ओर झुकी हुई और आपस में गुंथी हुई प्रतीत होती हैं।
निधिवन परिसर में कई दर्शनीय स्थान हैं। निधिवन दर्शन के दौरान वृन्दावन के पंडे-पुजारी और गाईडों द्वारा निधिवन के बारे में जो जानकारी दी जाती है, उसके अनुसार निधिवन में प्रतिदिन रात में होने वाली श्रीकृष्ण की रासलीला को देखने वाला अंधा, गूंगा, बहरा, पागल और उन्मादी हो जाता है ताकि वह रासलीला के बारे में किसी को बता ना सके। इसी कारण रात 8 बजे के बाद पशु-पक्षी, परिसर में दिनभर दिखाई देने वाले बन्दर, भक्त, पुजारी इत्यादि सभी यहां से चले जाते हैं और परिसर के मुख्य द्वार पर ताला लगा दिया जाता है।
निधिवन दर्शन के दौरान गाईड बताते हैं कि यहां जो 16,000 पेड़ आपस में गुंथे हुए नजर आते हैं, वहीं रात में श्रीकृष्ण की 16,000 रानियां बनकर उनके साथ रास रचाती हैं। सुबह 5:30 बजे जब रंग महल का पट खोला जाता है, तो वहां श्रीकृष्ण के लिए रखी दातून गीली मिलती है और सामान बिखरा हुआ मिलता है, जैसे कि रात को कोई पलंग पर विश्राम करके गया हो।
वास्तु गुरु कुलदीप सालूजा बताते हैं कि सच तो यह है कि निधिवन का वास्तु ही कुछ ऐसा है, जिसके कारण यह स्थान रहस्यमय-सा लगता है और इस स्थिति का लाभ उठाते हुए अपने स्वार्थ की खातिर इस भ्रम और छल को फैलाने में वहां के पंडे-पुजारी और गाईड लगे हुए हैं। उनका कहना है कि गाइर्ड जो 16,000 वृक्ष होने की बात करते हैं, वह भी पूरी तरह झूठ है, क्योंकि परिसर का आकार इतना छोटा है कि वहां 1600 वृक्ष भी मुश्किल से ही होंगे और छतरी की तरह फैलाव लिए हुए कम ऊंचाई के वृक्षों की शाखाएं इतनी मोटी और मजबूत भी नहीं है कि दिन में दिखाई देने वाले बंदर रात में इन पर विश्राम कर सकें। इसी कारण वह रात होते ही यहां से चले जाते हैं।
कुलदीप सालूजा का कहना है कि रंगमहल के अंदर जो दातून गीली और सामान बिखरा हुआ मिलता है, यह भ्रम इस कारण फैला हुआ है कि रंग महल के नैऋत्य कोण में रंग महल के अनुपात में बड़े आकार का ललित कुण्ड है जिसे विशाखा कुण्ड भी कहते हैं। जिस स्थान पर नैऋत्य कोण में यह स्थिति होती है, वहां इस प्रकार का भ्रम और छल आसानी से निर्मित हो जाता है। इसके अलावा यहां जो वृक्ष आपस में गुंथे हुए हैं, इसी प्रकार के वृक्ष वृन्दावन में सेवाकुंज एवं यमुना के तटीय स्थानों पर भी देखने को मिलते हैं।