आपने अपने आस पास कई सारे आवारा कुत्ते को घूमते हुए देखा होगा कोई इनसे बचकर भाग रहा होता है तो वहीं उन्हें कोई पत्थर और डंडों से पीट रहा होता है। कुछ लोग तो इन बेजुबानों को तंग करने के लिए तरह-तरह हथकंडे अपनाते हैं। लोगों का फिर अगर जी भरता तो वो लोग आवारा कुत्ते की एनिमल वेलफेयर से शिकायत करते हैं, तो कर्मचारी आकर उन्हें पकड़कर ले जाते हैं और शेल्टर होम में डाल देते हैं, लेकिन उत्तराखंड पुलिस ने इन्हीं गलीयों में धूम रहे कुतों के साथ कुछ ऐसा किया जिसे सुनकर शायद आपका मन खुश हो जाएं।
इंसान के इस सबसे अच्छे दोस्त को एक जिम्मेदारी दे गई है। देश में पहली बार यह प्रयोग किया है उत्तराखंड पुलिस ने। सड़कों पर आवारा घूमने वाले डॉगी को पुलिस की ट्रेनिंग दी तो वह नामी नस्लों के लाखों रुपये के दाम वाले डॉगी से कहीं आगे निकला।
अब यह डॉगी उत्तराखंड पुलिस का सबसे फुर्तीला स्निफर डॉग है। उत्तराखंड पुलिस ने इसकी सूंघने की खूबी को अपनी ताकत बनाया और अपनी डॉग स्क्वाड का हिस्सा बना लिया। इस स्निफर डॉग का नाम ‘ठेंगा’ रखा गया है।
अब तक बेल्जियम, जर्मन शैफर्ड, लैबरा, गोल्डन रिटीवर आदि विदेशी नस्ल के कुत्तों को ही पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के श्वान दल का हिस्सा होते थे, जिन्हें 30 से लेकर 70 हजार रुपये में खरीदा जाता था। इनकी ट्रेनिंग में काफी खर्च आता है। ‘ठेंगा’ विदेशी और विलायती डॉगी को ही पुलिस में परंपरागत भर्ती के स्थापित नार्म्स को तोड़ता है। देश में पहली बार उत्तराखंड पुलिस ने गली के स्ट्रीट डॉग को श्वान दल में शामिल करने का प्रयोग किया है।
ठेंगा नाम रखने के पीछे एक पौराणिक कथा को प्रतीक में लिया है। ठेंगा उस कटे हुए एकलव्य के अंगूठे से है जो ऐसे समाज में जहां राजपरिवार या अर्जुन को अजेय और सर्वश्रेष्ठ बनाने की जिद में तार्किकता और न्याय का दम घोटा जाता है। जो कहीं न कहीं सामाजिक असमानता को पोषित करने का दोषी भी है।