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Holi 2019: फेसबुक वॉल के शोधार्थी का होली संदेश

शरद उपाध्याय Published by: Pankhuri Singh Updated Wed, 20 Mar 2019 01:00 PM IST
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Holi 2019 message from researcher of Facebook wall make satire writer sad due to language disrespect
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विस्तार

प्रिये, आज तुम्हारा होली का संदेश मिला। तुमने मुझे संदेश लिखा। यह एक अच्छी बात है, किंतु संबोधन थोड़ा ठीक नहीं लगा। तुमने लिखा, ''प्रिय बंधु। प्रिय से जो आशा के दीप जले थे, वो बंधु से बुझ गए।'' मैं जानता हूं कि तुम्हारी हिंदी, तुम्हारे ही शब्दों में पुअर होने के कारण ऐसी दुर्घटना घट गई। तुम्हारा प्रेम भरा संदेश एक एेतिहासिक क्षण है, क्योंकि ऐसा अवसर सदियों में कभी-कभार ही आ पाता है। लेखक का जीवन तो उजाड़ मरुस्थल के समान है। वहां तो अपनी सेल्फ बीवी ही साहित्य कर्म को व्यर्थ काले कागज करने के उपेक्षित भाव से देखती है।

तुम्हें फेसबुक पर डाले गए मेरे व्यंग्य अच्छे लगते हैं। जब तुम्हें लगते हैं, तो अवश्य अच्छे होंगे। अच्छे होने के प्रमाण के लिए तुम्हारा लगना ही पर्याप्त है। तुम्हें मेरे व्यंग्य अच्छे लगे, पर सच कहूं, मुझे अपने व्यंग्यों से तुम्हारा प्रेम भरा होली का संदेश अधिक पसंद आया। हे प्रशंसिके, तुम्हारे प्रेम भरे संदेश ने तो मुझे पागल ही कर दिया है। तुम अपने साहित्य ज्ञान से मुझे अवगत कराना। तुम्हें क्या अच्छा लगता है? कहानी, व्यंग्य या कविताएं। जो तुमको हो पंसद वही साहित्य सृजन करूंगा।
मैं व्यंग्य त्यागकर वही विधा ग्रहण कर लूंगा। हां, यदि तुम्हें साहित्य से ही एलर्जी हो, तो मुझे निःसंकोच बताना। मैं तुम्हारे लिए साहित्य छोड़ने को भी तैयार हूं। वैसे भी साहित्य में आजकल दम कहां रह गया है। मुए, दिन-रात लड़ते ही रहते हैं। तुम्हारे होली मैसेज में मिठाई की ईमोजी देखकर मन बहुत ही आह्लादित हो गया, पर उम्र के साथ बढ़ती शुगर देखकर थोड़ा सहम जाता हूं। तुमने फेसबुक पर गुलाल लगा चेहरा चिपकाया, क्या मेरा मन नहीं करता, पर दमे की वजह से मैं पीछे हट जाता हूं।
हे प्रशंसिके, होली के फाग भरे संदेश के बाद तो तुम बहुत ही अपनी लगने लगी हो। बस तुम्हारी फेसबुक वॉल का शोधार्थी हो गया हूं। सुनो, तुमसे कुछ कहना था। तुम मेरी फेसबुक पोस्ट की प्रशंसा करती हो, यह शाश्वत सदकर्म है। लेकिन, तुम दूसरों की वॉल पर प्रशंसा और लाइक के तीर चलाती हो, ये सीधे मेरे दिल में चुभ जाते हैं। तुम जिनकी वॉल पर प्रशंसा के फूल डालती हो, ये सब मेरे सिखाए गए चेले-चपाटी हैं। शिक्षा संस्कार में केवल गुरु महिमा गान को ही श्रेष्ठ संस्कार बताया गया है।
शिष्य प्रशंसा को वर्जित बताया गया है। देखो, तुम ऐसा मत किया करो। इससे मेरे स्टंटमय दिल को बहुत चोट पहुंचती है। अब और क्या लिखूं। बस अब तो तुम्हारी प्रशंसा से लेखन कर्म अनवरत चलता रहेगा। व्यंग्य, अरे पगली, अब प्रेम भरे फागमय संदेश के बाद कहां मन व्यंग्य लिख पाएगा। अब तो बस प्रेम महाकाव्यों का सृजन होगा। कहां बस तुम्हारी वॉल पर, तुम्हारे मैसेज बाॅक्स में, तुम्हारे वाट्सएप पर। कब, बस अगले ही पल। लो शुरू करता हूं।
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