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होली आ गई है और देवर खासे सक्रिय हैं। उनकी फुर्ती देखते ही बनती है इन दिनों। हमारे मोहल्ले में भी ऐसे ही कई देवर हैं, जिनकी उम्र का किसी को पता नहीं। वे कब जवान हुए, कब अधेड़ यह भी कम ही लोग जानते हैं, लेकिन वे रहते सदा नौजवान जैसे हैं। खासकर जब इर्द-गिर्द महिलाएं हों, तो उन बांके जवानों का रूप टी-शर्ट फाड़-फाड़ कर बाहर आने को मचलने लगता है। वे एक शाश्वत देवर टाइप के व्यक्ति हैं। हर भाभी के देवर। चिर देवर। उनमें देवर बनने की उत्कट कामना है। वे एक आदर्श देवर हैं।
भाभियों का हर हुक्म बजा लाने को हर पल तत्पर। इसके लिए खासा किस्म का काइयांपन और धैर्य चाहिए होता है, जो उनमें कूट-कूटकर भरा हुआ है। भाभियों की आड़ी तिरछी कैसी भी फरमाइश पूरी करने में वे सिद्धहस्त हैं। जटिल से जटिल मसाले लेकर भाभियों की खासी सनक भरे डिमांड चार्ट वे पूरा करने में अपने को धन्य मानते हैं। सो देवर तैयार है। ये देवर दीवाना कम है सयाना ज्यादा है। कम लागत में अधिक मुनाफे का सौदा करता है। ऐसे देवर कमोबेश हर मोहल्ले, हर आफिस और परिवारों में पाए जाते हैं। सृष्टि का कारोबार ही ऐसे सुघड़ देवरों के भरोसे चल रहा है।
आपको अपनी कोई विपदा का हरण कराना है, तुरंत इन देवर महाशय से संपर्क करें। ये आधुनिक युग के संकटमोचन हैं। लच्छेदार बातों और भाव भंगिमाओं के ज्ञाता। भाभी के भावार्थ से लेकर गूढ़ार्थ को समझने वाले। कुशल देवर, भाभी की पीड़ा को ही नहीं, उसकी इच्छाओं और मनोदशा का अपूर्व अध्येता होता है। उसे स्त्री मनोविज्ञान की गहरी समझ होती है। भावुकता और अवसर के उचित तालमेल से वह इच्छानुसार रेसिपी बनाकर चटखारे लेना जानता है।
ऐसे देवर आपको फागुन के त्योहार पर अपने होने की सार्थकता को सिद्ध करने में लग जाते हैं। क्योंकि यही तो उनकी मनोकामनाओं के पूर्ण होने का महत्वपूर्ण दिन है। वे मौके की तलाश में हैं कि कब अवसर मिले और रंगों की बहती गंगा में हाथ धो लें। वर्जित क्षेत्रों में घुसपैठ की प्रबल आकांक्षा लिए बरसों से बैठे हैं। हाथ में पिचक्के धरे, मन में कामना के गुब्बारे फोड़ते और लोभ के गंदले जल में डुबकी लगाते उतराते। भाभी के नैकट्य के सुख पाने का अपूर्व अवसर हाथ से जाने नहीं देना