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लिखास, छपास और दिखास का कीड़ा

ललित शौर्य Published by: Ayush Jha Updated Sun, 02 Jun 2019 04:59 PM IST
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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर - फोटो : social media
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विस्तार

कीड़े का काम कुलबुलाने का है। अलग-अलग लोगों का अलग-अलग टाइप के कीड़ों से टाइअप होता है। मनुष्य शरीर तो निमित्त मात्र है। प्रधान और प्रमुख तो कीड़ा है। व्यक्ति का नेचर इस छोटे से क्रीचर से डिसाइड होता है। जब यह कुलबुलाना शुरू करता है, तो व्यक्ति अधीर हो जाता है। मिसाल के तौर पर लिखास का कीड़ा बड़ा बिंदास टाइप का होता है। एक बार लग जाए जिंदगी भर नहीं छोड़ता।

इस कीड़े के कुलबुलाने से व्यक्ति लेखक बन जाता है और वह कुछ भी लिख बैठता है। कविता, कहानी, व्यंग्य और उपन्यास और न जाने क्या-क्या? लिखास का कीड़ा रात को सोने नहीं देता और दिन में कुछ करने नहीं देता। यहां तक कि नित्यकर्म करते वक्त भी यह कीड़ा कुलबुलाता रहता है और आदमी मोबाइल पर टीपियाता रहता है। छपास का कीड़ा, लिखास के जस्ट बगल वाले रूम में रहता है। लिखास के सारे कामों में छपास का पूरा दखल देखा जा सकता है। लिखास की प्यास छपास से ही बुझती है।
 
दरअसल छपास का कीड़ा हर उस व्यक्ति के अंदर होता है, जिसके अंदर लिखास का कीड़ा आलरेडी सेट है। लिखास और छपास की जबर्दस्त जुगलबंदी है। लिखास की परिणिति छपास का मूर्त रूप में आना ही है। जब किसी अखबार, पत्रिका या किताब में कुछ छपता है, तब लिखास अपने को धन्य समझती है। लिखास का ऑक्सीजन बोटल छपास अपने जेब में लिए घूमता है। छपास का कीड़ा बंदे को अखबार-अखबार, दफ्तर-दफ्तर चक्कर लगवाता है। इन सबके साथ लेटेस्ट ट्रेंड में दिखास का कीड़ा जोरों पर है।
बिना दिखास के लिखास और छपास का कोई अस्तित्व नहीं है। जो दिखता है, वही बिकता है। उसी की जयजयकार होती है। छपने के बाद अगर दिखाया न जाए, तो क्या औचित्य है लिखास और छपास का। लिखास और छपास के कीड़े को जब तक दिखास की पतवार नहीं मिलती तब तक तुम्हारी गिनती कहीं नहीं होगी। गिनती में आने के लिए अब तो ‘कुछ भी कर सोशल मीडिया पर डाल’ का ट्रेंड है। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, टीवी न्यूज चैनल ये सब दिखास के साधन हैं। आज के जमाने में इन सबको साधकर चलने में ही बुद्धिमानी है। अपनी लिखास के कीड़े को छपास के जल से तृप्त करते रहें और दिखास की पतवार से खेते रहें। अपनी लिखास को बढाइये, छपास को भडकाइये, दिखास को उचकाइये, सफलता पाइए।

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