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राजा विक्रमादित्य ने एक बार फिर बेताल का शव कंधे पर लादा और हमेशा की तरह अपनी राह पर चल पड़े। कुछ समय बाद बेताल ने कहा, “ राजन आज मैं तुम्हें एक किस्सा सुनाता हूं, सुनो। एक राज्य था। उस राज्य के राजा ने दद्दू की नैसर्गिक प्रतिभा को देखते हुए उन्हें सेंसर बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया। दद्दू कैंची चलाने में काफी प्रवीण थे। जब से दद्दू सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष बने हैं, तब से बोर्ड फिल्मों को सर्टिफिकेट देने से ज्यादा उन पर कैंची चलाने के लिए मशहूर हो गया है। कैंची की महिमा अपरंपार है।
दद्दू की कैंची के कारण पूरा फिल्म उद्योग और राज्य के सभी कला प्रेमी नाराज हैं। राजन, फिल्म के सीन बोल्ड हो या न हो लेकिन दद्दू की कैंची काफी बोल्ड है ”थोड़ी देर मौन रहने के बाद बेताल ने अपना मुंह फिर से खोला राजन, “मैं इस किस्से से संबंधित कुछ प्रश्न पूछूंगा, यदि मेरे प्रश्नों के उत्तर तुमने नहीं दिए तो तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे।
पहला प्रश्न है कि सेंसर बोर्ड हमेशा विवादों के केंद्र में क्यों रहा और सेंसर बोर्ड को कैंची चलाने का अधिकार नहीं है तो सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष दद्दू के हाथ में कैंची कैसे आई? मेरा दूसरा प्रश्न है कि सेंसर बोर्ड फिल्म के दृश्यों में कांट-छांट, कुछ दृश्यों को धुंधला, कुछ शब्दों को म्यूट, गीतों की पंक्तियों में फेरबदल, फिल्म के नाम और संवादों में अहम बदलाव करवा देता है तो टाकीज में फिल्म देखते समय और टाकीज से बाहर निकलने के बाद दर्शक क्या महसूस करते हैं?
मेरा तीसरा प्रश्न है कि आज के समय में इंटरनेट के कारण दुनिया के हर देश की कला का निर्बाध संचार हो रहा है, ऐसे में सेंसर बोर्ड का अब औचित्य नहीं है। क्या अब इसे हटा देना चाहिए? राजा विक्रमादित्य का उत्तर सुनते ही बेताल का शव फिर से उसी पेड़ पर लटक गया। राजा वापस गया और बेताल को लेकर चल दिया। बेताल बोला, “ राजन तुम बहुत हठी हो लेकिन सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष दद्दू से अधिक नहीं। ”