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अपना-अपना भरना और पीना होता है राजनीति में

मनोहर श्याम जोशी, मशहूर साहित्यकार और व्यंग्यकार Published by: Pankhuri Singh Updated Wed, 20 Mar 2019 02:29 PM IST
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विस्तार

लयसन लम्बर वन यह कि राजनीत में कोई किसी का कुछ नहीं होता। आपकी किरपा से हम यह लयसन एइसा सीखे कि गुरुजी क्या, हम अपने बाप तक के सगे नहीं! समद्रस्ट से देखि रहे है सबको समझे! अरे जानिते है कि अपना-अपना भरना अउर पीना होता हय राजनीत में। बस वह क्या हय कि कभी-कभी ससुरा पूरा सुरा-सागरे दीख जाता हय पीने का। हम बैठे हुए कुछ लिख रहे थे कि नेताजी आ पहुंचे। बोले, "अरे आपके अपोज-सन ने भारत-बंद का आवाह्न किया हय अउर आपकी कलम-घिसाई ससुरी जारी हय धड़ल्ले से!"

"खाली बैठे थे, सोचा कुछ लिख लें।" हमने कहा। "नहीं, अच्छा हय। लिखना-उखना एइसा दुई-चार कामहि हय जो इनसान को जिनावर से अलग बनाता हय। अउर इम्पाटेंसी, जे हे ने से, परमानण्ट हय इसका। नेतागिरी अउर एइसे तमाम धंधों में मिलेगा मुकद्दरवाला मामला हय। आज हय कल नहीं। किलास फोरवाले ससुरो की नउकरी जियादा स्थर लग्नवाली हय, नेता की नेतागिरी के मुकाबले। अरे गउरी बाबू का हस्र नहीं देखा का? कल तक गाड़ी ससुरी मजे में दउड़ रही थी, आज डूबने को चुल्लू-बर पानी ल्हय! अंसुअन जल सींच रहे हैं गुरु अपने सिस्यों का संकरा सीना! उधर सियाबर बाबू एइसा खुस हय जइसा बरसाती पानी में कागज की नाब चलाता बच्चा। अउर अपने गुरुजी निछद्म के निछद्म!"  "हमे तुमसे हमदर्दी है! तुम्हारे गुरुजन पिट रहे हैं!"

"हमारे गुरुजन!" नेताजी हुचहुचाये, "क्या कहि रहे हैं आप! सुसरा सांसारक द्रस्टकोन आपको खाये जा रहा हय। अरे राजनीत एक प्रकार का सन्यास हय। माया-मोह से मुक्त व्यक्तहि इस छेत्र में आने का साहस कर सकता हय। चाहो उनहि से पूछ लो, जिन्हें हम गुरुजी कहिते है कि पहिला लयसन सिस्य को का दिये रहे। लयसन लम्बर वन यह कि राजनीत में कोई किसी का कुछ नहीं होता। आपकी किरपा से हम यह लयसन एइसा सीखे कि गुरुजी क्या, हम अपने बाप तक के सगे नहीं! समद्रस्ट से देखि रहे हैं सबको समझे! अरे जानिते है कि अपना-अपना भरना अउर पीना होता हय राजनीत में। बस वह क्या हय कि कभी-कभी ससुरा पूरा सुरा-सागरे दीख जाता हय पीने का। तब लाख दुह लाख लोग जुटाने पड़ते हैं। दल अउर गुट बनाना जरूरी हुई जाता हय। मगर उसमें भी विरक्ति भाव जरूर हय कि जो दल फूंके आपनो सो चले हमारी गइल!"

हम लिखते ही चले गए। अब नेताजी ने टिप्पणी की, "अच्छा हय लिखिए। इसी में रस हय, जुग-जुगान्तर तक का जस हय। मर जाइयेगा, पीछे रोने को साहित्त छोड़ जाइएगा ससुर। बाकी यह समझ लिया जाय कि सुरसती अउर लच्छमी में बहुत बइर हय। समझदारी इसी में हय कि सुरसती की साधना एइसे अस्टाइल से की जाय कि दुसाला नरियल मिलने का अस्कोप बनता रहे बीच-बीच में। भतीजा का आपकी सान के खिलाफ कुछ कहिना सोभा तो नहीं देता मगर कहिन पड़ रहा हय कि आप किर्रू हैं। किलास फोर हो, किलास वन, किर्रू इज किर्रू। किर्रू उसे कहिते हैं जो पहिली तारीख को तनखा अउर बीस तारीख को उधार लेने के लिए, समझे, अउर पहिली से इकत्तीस तारीख तक रोजाना किसन-किसी कतार में लगने के लिए पइदा हुआ हो। " "समझ गये! अब हमें लिखने दो।"

"अरे हम इस समय सांस्कृतिक दूत बनकर आये हैं गुरुजी के। आप जइसे राइटर लोगन का कल्यान हमारा व्रत हय अउर आप दुत्कार रहे हैं हमें। अस्कीम समझा जाय। वह एइसा हय कि गुरुजी का चित्त कहीं कोई डउल न बइठने से खराब हय मुदा वित्त उनका भगवान की दया से अब भी अच्छा हय। लिहाजा उन्होंने सांस्क्रतिक छेत्र में पइसा लगा के पालटिकल लायम-लायट में आय का फइसला किया हय। गुरुजी हमारे कवि अउर पत्रकार रहि चुके हैं राजनीत में आय से पहिले बेकारी के दउर में। 'जै सनि' पाच्छिक के लिटरेचरी अडिटर रहे, छह महीना, इनकी कविता का एक ठो पम-फलेट छपा रहा- 'क्रान्त की रणभेरी सुन लो।' अगर पत्ता गुरुजी ठीक से खेलें तो इन्फरमेशन ब्राडकास्टिन या एज्जुकेसन में डिप्टी मनस्टर का चानस मिलि सकता हय।"
"भूमिका मत बांधों!" हमने टोका। "अरे भूमकाहि की हम-आप खाय रहे है, आगे तो सबकी किताब कोरी हय!"नेताजी हिनहिनाये, "गुरुजी से हम कहा संस्था बनाओ, पत्रका निकालने की बात न सोचो। संस्था सु-विनियर ऊ खेल नफे का हय, जस भी उसमें जियादा हय। बोले काम कउन करेगा? हम घुरहू का सुझा दिये- अरे अपना बिमलेस जो लिटरेचरी जजमानी करि रहा हय जम के।"
 "साहित्य में जजमानी कैसे होती है?" हमने पूछा। "जइसे तीरथ में पण्डा, जजमान से पूछ के 51 से 501 रुपय्या में जजमान के पितरों का स्राद्ध-तरपन करा देता हय वइसे अउर उसी रेट से घुरहू जजमान की किताब के स्राद्ध की ब्यौस्था कराय देता हय-गोस्ठी-ओस्ठी कराके।"

"इक्यावन से पांच सौ एक तक की अलग-अलग रेट क्योंकर?" "सब डपेन करिता हय कई बातों पर समझे कक्का। जइसे ई कि गोस्ठी के अध्यच्छ पद के लिए लेखक जजमान एक ठो भारी हस्ती खुद लाई कि घुरहू के जुटाये का पड़ी? गोस्ठी का काड छपवाय के होई कि नाही, काड छपिहै तो कउन क्वालिटी के? बी. आय. पी. लाय के होई कि नाहीं? कहा न, बहूत- सा पाइण्ट पर डपेन प्रतस्ठान सम्मान देने के चक्कर चलायेगा। दुसाला, नरियल अउर रुपय्या एक हजार एक से लेकर दस हजार एक तक। जुबा लेखक- कवियों के लिए प्रतयोगताएं की जायेंगी। आकर्सक पुरस्कार। प्रथम पुरस्कार काठमाण्डु आने-जाने का हवाई टिकट, नउ रातें बिताने का खर्च अउर नउ सउ निनाबे रुपय्या जुआ खेलने के लिए। दुइती पुरस्कार ओही काठमाण्डू मगर पांचहि रात अउर जुआ का पांच सउ पचपन।

त्रती पुरस्कार ओही काठमान्डू मगर तीनाहि रात अउर जुआ का तीन सउ तइतीस रुपय्या। सान्तना पुरस्कार कलम, ब्रीफकेस आदि। अंतिम पुरस्कार तिनकोसवा जिला बहाराइच में तीन दिन अउर तीन बण्डल बीड़ी। कहिए जमती हय अस्कीम हमारी?" "तुम भी क्या घटिया काम सोचते हो!" हमने कहा। "नोट किया जाय जरा।" नेताजी बोले, "जब घटियापन का राज हो तब स्रेस्ठता के सपने देखना राजद्रोह हय। पहिले बुलबुल बनिए फिर रोइए कि उल्लू न हुए, ऊ सब घाटे का सउदा हय,समझे।" 

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