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मंदिर-मंदिर द्वारे-द्वारे दरखास्त, वोट की आस 

दिलीप गुप्ते Published by: Pankhuri Singh Updated Fri, 22 Mar 2019 09:38 AM IST
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satire on Indian politics vote policy strategy
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चमचा लेटेस्ट खबर लाया था। हाल ही में चारों खाने चित्त हुई पार्टी के प्रमुख से सुना था, जिसे पढ़े लिखे लोगों की भाषा में 'हॉर्सेस माउथ' कहते हैं कि अब वोटर की फिक्र छोड़ो। भला तो ऊपर वाला करेगा। उसके दरबार में हाजिरी लगाओ। बस। तभी से भिया भिड़ गए हैं। मंदिर-मंदिर की यह यात्रा हर पार्टी के लिए सर्टिफिकेट का तो काम करेगी। न दे तू टिकट, दूसरी देगी।

लेकिन ऐसे ही मुंह उठाकर नहीं चल देते थे मंदिर। मंदिर जाने से पहले बाकायदा उसके बारे में जानकारी निकालते थे। कौन से देवता का मंदिर है, कब बना...आदि। यह देखना भी जरूरी था कि मंदिर का पुजारी किस तरह का तिलक लगाता है। यदि गलत तिलक लगाकर गए तो पुजारी ही भगा देगा। हर मंदिर का कलर कोड अलग होता है। लिहाजा हर रंग की धोतियां रखते हैं। पूजा के बाद सेल्फी लेना गवाही के लिए जरूरी होता है। अब लोगों को भी पता लगना चाहिए कि भिया मंदिर जा रहे हैं। बैंड बाजे के साथ दस लोग तो होने ही चाहिए। चुनाव के मौसम के पहले कमबख्त भीड़ भी बिना पाकिट खोले नहीं जुटती। भिया ने इसका भी इंतजाम किया है। बैंड वाले साथ चलते हैं और माहौल के हिसाब से धुन बजाते हैं।

जाने के पहले मंदिरों का इतिहास-भूगोल, प्रणाम करने का तरीका, पगड़ी का रंग और बांधने की रीत जानना जरूरी था। ऐसा थोड़े हो सकता है कि इस समाज के मंदिर गए और उस समाज का गुणगान कर आए। वोट तो गए ही गए, साथ ही मंदिर से बच निकलने की उम्मीद भी गई। अब देवताओं के हाथ पैर पड़ रहे हैं और देवियों के नहीं, तो कैसे चलेगा? वे नाराज न होंगी? जिसे सरस्वती समझे वह काली बन जाए। लक्ष्मी भी दुर्गा बन जाए। न बाबा। नहीं चलेगा। देवियों का क्रोध देवताओं के क्रोध से भारी पड़ता है, इसलिए देवियों के मंदिर भी जाते थे।

देवियों के साथ यह बात अच्छी है कि उनके मंदिर जाने के लिए ड्रेस कोड नहीं होता। वरना मुसीबत हो जाती। मंदिरों में जूते चोरी होना आम बात है। वह मंदिर ही क्या, जहां से जूते न चुराए गए हों, इसलिए साथ में एक जूतेदार रखते थे। ऐसे ही मंदिर यात्रा के दौरान एक बार भिया ने एक मंदिर देखा, तो जनेऊ ऊपर कर लिया।  भिया आर्थिक भार से बहुत परेशान रहे। "बस अब नहीं। समझ लो कि सब मंदिर हो गए। ईश्वर तो एक ही है। वो कोई वोटर तो है नहीं जो हरेक के पास जाएं। वो जानता है कि मैंने कितने मंदिरों के दर्शन किए हैं। वो मेरी भक्ति देखकर टिकट दिलवा देगा।" भिया ने चमचे से थककर कहा। और उनकी मंदिर यात्रा समाप्त हुई। 
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