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Holi 2019: बकरी, मुर्गी और फटी कमीजें

श्रीलाल शुक्ल, मशहूर व्यंग्यकार Published by: Pankhuri Singh Updated Wed, 20 Mar 2019 02:30 PM IST
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विस्तार

बस में जहां मैं बैठा था, वहां बकरी न थी, मेरे पास बैठे आदमी की गोद में सिर्फ मुर्गी थी। बकरियां पीछे थीं। उस भीड़-भक्कड़ में अगर कहीं कोई बकरी का बच्चा आदमी की गोद में था या कोई बकरी आदमी के घुटने पर थी, तो कुछ ऐसे आदमी भी थे, जिनके पांव बकरी के पेट के नीचे या पीठ के ऊपर थे और पीठ बस की पिछली दीवार से चिपकी थी। उसके सर कहां थे, कहना मुश्किल है, क्योंकि उनसे हाथ-दो-हाथ ऊपर भी कई सर दिख रहे थे। 

बस के रुकने पर समझने में देर नहीं लगी कि यहां उतरने में, चढ़ने के मुकाबले ज्यादा जीवट की जरूरत होगी। पर मेरा मुर्गीवाला साथी मुझसे ज्यादा उतावला था। अभिमन्यु की तरह भीड़ का चक्रव्यूह तोड़ता हुआ जब वह आगे बढ़ा, तो मैं भी उसके कुर्ते से झूलता हुआ वहां तक पहुंच गया, जहां दरवाजा होना चाहिए और उसके नीचे कूदते ही मैं भी उसी के साथ जमीन पर चू पड़ा। मेरे हाथ से झूलती अटैची किसी की टांगों में फंसी होगी, क्योंकि मेरे पीछे जो मुसाफिर कंधे के बल जमीन पर आया, उसकी एक टांग आसमान में थी और दूसरी की धोती मेरी अटैची के कुंडे से उलझी थी।
मेरे मुर्गीवाले साथी का कुर्ता पीछे से चीथड़ा बन चुका था, पर वह इससे बिल्कुल बेखबर था। उसे देखकर मुझे खबर हुई कि मैं भी अपनी कमीज के मामले में बेखबर हूं, उसका कंधा अपनी सिलन छोड़कर पीठ पर झूल गया था। सड़क पर जहां बस रुकी थी, उसके किनारे एक दवाखाना था, जिस पर किन्हीं डॉ. अंसारी का नाम लिखा था। विज्ञापन पट्टी पर ए.ए.यू.पी., पी.एम.पी.एम.डी जैसी डिग्रियां लिखी थीं। एम.डी. से मेरा मन मुदित हो गया, क्योंकि यह डॉक्टरों के खिलाफ इस इल्जाम का जवाब था कि ऊंची डिग्री लेने के बाद वे शहर छोड़कर देहात नहीं जाना चाहते।
पर पट्टी पर दोबारा निगाह पड़ते ही मैंने देखा, एम.डी. के नीचे कोष्ठकों के भीतर उर्दू, यानी फारसी लिपि में लिखा है, 'मैनेजिंग डाइरेक्टर अंसारी क्लीनिक'। यह तो हुआ एम.डी.। अब मैंने ए.ए. यू.पी. और पी.एम.पी. के तिलिस्म को तोड़ना चाहा। पी.एम.पी का गुर आसान था: प्राइवेट मेडिकल प्रैक्टिशनर। ए.ए.यू.पी. का गुर दूसरे दिन पकड़ में आया। दवाखाने में एक ऊंघता हुआ बुड्ढा, हजारों मक्खियां। उसके सामने सड़क के किनारे दो तख्तों पर छह-सात लोग भिन्न-भिन्न आसनों में बैठे बात करते हुए, पर एक भी आसान ऐसा नहीं, जिससे जल्दी उठने का आभास हो रहा हो। जहां तक बात की बात है, बात सिर्फ एक आदमी कर रहा था, बाकी सिर्फ उसकी बात जोर-जोर से सुन रहे थे।

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