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पानीपत के वाटरलू में लोकतंत्र को पैरटफ्लू

यतीन्द्र लवानिया Published by: Pankhuri Singh Updated Tue, 12 Feb 2019 03:18 PM IST
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whenever democracy comes in danger politicians and social worker starts strike protest
- फोटो : nytimes
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लोकतंत्र खतरे में है। यह खबर जैसे ही लीक हुई, लोकतंत्र के यार-दोस्त और रिश्तेदार फौरन लोकतंत्र की रक्षार्थ धरने के लिए रवाना हो लिए। कुछ ने तो लोकतंत्र के प्राणों की खातिर कहीं आना-जाना भी मुफीद न समझा और जहां थे, तहां ही धरनास्थ हो गए।  लोकतंत्र के रिश्तेदारों का कहना है कि लोकतंत्र को बचाने के लिए चाहे पानीपत और वाटरलू एक करना पड़े, हम करेंगे।

वहीं लोकतंत्र की कुंवारी बुआ के भतीजे लोकतंत्र के प्राणों को नाभि से निकालकर घुटनों में ट्रांसप्लांट करवाने की तैयारी पूरी कर चुके हैं। जहां तक पारंपरिक इलाज की बात है, तो कई शोध और प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि लोकतंत्र की सेहत अगर नासाज होने लगे, तो धरना और प्रदर्शन का प्रयोग किया जाना चाहिए।

यह दोनों लोकतंत्र के लिए ग्लूकोज, मल्टीविटामिन, एंटीबायोटिक और तमाम तरह की दवाओं के पैकेज का काम करते हैं। मसलन, दुनिया में कहीं भी और कभी भी लोकतंत्र को कोई भी बीमारी हो जाए, उसे दो ढक्कन धरना और चार चम्मच प्रदर्शन की फक्की लगवा दो। लोकतंत्र तुरंत अरबी घोड़ों की तरह हिनहिनाता नजर आएगा।

आमतौर पर लोकतंत्र की सेहत चुस्त ही रहती है, क्योंकि समय-समय पर उदारवाद का च्यवनप्राश चाटता रहता है। लेकिन मौसम भी कोई चीज होती है। बड़े-बड़े पहलवानों को मौसमी बुखार पटक लेता है। फिर लोकतंत्र की राह में तो आम चुनाव जैसी महामारियां आती रहती हैं। ऐसे में लोकतंत्र का चित पड़ जाना कोई हैरत की बात नहीं है।

लेकिन लोकतंत्र की सेहत भी तो कोई मामूली चीज नहीं, जिसे हल्के बयानों के गर्म पानी टाइप गरारों से ठीक किया जा सके। खासतौर पर जब पैरटफ्लू जैसी गंभीर बीमारी लोकतंत्र को लगी हो, तो इसकी सेहत को ठीक करने के लिए स्थानीय बाहुबली नेताओं के खास प्रशिक्षण में तैयार हुई काबिल ठुल्लों की टीम से इनवेसिव सर्जरी करवाना जरूरी हो जाता है।  

इस सर्जरी के लिए लोकतंत्र को बेहोश करना जरूरी होता है। इसके लिए लुटियंस के बौद्धिक लेखकों की टीम खासतौर पर अनिस्थीसिया देने के लिए लगाई जाती है। लोकतंत्र को बेहोश करने के लिए अक्सर इसके सिर पर अवॉर्ड वापसी की चोट करनी पड़ती है। जब लोकतंत्र बेहोश हो जाता है, तो असहिष्णुता  के धारदार सीजर्स से लोकतंत्र के मृतप्राय शरीर से पैरटफ्लू निकाल फेंका जाता है।
 

पैरटफ्लू के लक्षण  सिर्फ विपक्ष नाम के चश्मे पर अंध विरोध नाम की कोटिंग करवाने पर ही दिखाई देते हैं। शुक्र है, हमारे देश में लोकतंत्र की चिंता करने वाला सक्षम और चौकन्ना विपक्ष मौजूद है। वर्ना लोगों को पता ही नहीं चलता और पैरटफ्लू से पीड़ित लोकतंत्र बंगाल की खाड़ी में जीवित समाधि ले चुका होता।
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