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भारत को त्यौंहारों का देश कहा जाता है। हाल ही में मध्यप्रदेश के उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ आयोजित किया जा रहा है। देश भर से तमाम अखाड़ों से साधु-संत यहां आ रहें। इसके अलावा पूरे देश से लोग आकर इस उत्सव का में धर्मलाभ ले रहे हैं।
लेकिन हमारे कुछ उत्सव ऐसे भी हैं जो अपने आप में बेहद ही खास हैं। माने या नहीं लेकिन ये परंपराएं मानी और मनाई जाती हैं। इन्हें सुन कर भले ही मन में कुछ सवाल खड़े हों पर हर सवाल का जवाब हो, ऐसा जरूरी भी नहीं।
बानी फेस्टिवल (आंध्र प्रदेश)
आंध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले के देवारगट्टू मंदिर में ‘बानी’ का आयोजन किया जाता है। हर साल दशहरे पर हजारों लाठी चलाने वाले श्रद्धालु कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से यहाँ आते हैं और मध्यरात्रि एक दुसरे पर लाठियां बरसाते हैं। खून से लथपथ ये लोग सूर्योदय तक लाठियां बरसाते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव ने माला मलेश्वर नाम के राक्षस का वध किया था। यह त्यौंहार 100 से भी अधिक सालों से मनाया जा रहा है। पहले इसमें भाला-कुल्हाड़ी का प्रयोग होता था।
पुली काली (केरल)
यह मुख्य रूप से केरल के त्रिस्सुर जिले में मनाया जाता है। ओनम के चौथे दिन मनाए जाने वाले इस त्यौंहार में ट्रेंड कलाकार अपनी शक्ति और ऊर्जा दिखाते हैं। लाल, पीले, काले रंगो में खुद को रंग कर कलाकार सड़कों पर लोक नृत्य करते हैं। यह नजारा अद्भुत होता है।
तीमिथी (तमिल नाडु)
तथ्य और कल्पना में फर्क सिर्फ वास्विकता का है। तमिल नाडु के साथ तीमिथी श्रीलंका, सिंगापुर और दक्षिण अफ्रीका में भी मनाया जाता है। ढाई महीने तक चलने वाले इस उत्सव में लोग ईश्वर से अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए जलते अंगारों पर चलते हैं। माना जाता है कि पंडावों की जीत पर द्रौपदी ने भी ऐसा ही किया था।
शिशुओं को छत से उछालना (कर्नाटक और महाराष्ट्र)
बच्चे उछालने की यह परंपरा सालों से चलती आ रही है। हिंदु हो या मुस्लिम, शोलापुर, महाराष्ट्र के नजदीक बाबा उमर दरगाह पर शिशुओं को 50 फुट की ऊंचाई से उछाला जाता है। इन्हें पकड़ने के लिए नीचे लोग सफेद रंग का कपड़ा लेकर खड़े रहते हैं। माना जाता है कि इससे परिवार में खुशहाली आती है। कर्नाटक के इंडी के पास श्री संतेश्वर मंदिर में भी इसे मनाया जाता है।
मदेय स्नान (कर्नाटक)
जातिवाद भारत की एक बेहद गंभीर समस्या है। अनेक प्रयत्नों के बाद भी समाज में भेदभाव बसा हुआ है। कुक्के सुब्रह्मणिया मंदिर में एक अजीब से सदियों पुरानी प्रथा है, जिसमें तथाकथित नीची जाति के लोग ब्राह्मणों के केले के पत्ते पर छोड़े झूठे भोजन के उपर लोटते हैं। ऐसा करने से माना जाता है कि उनकी दुख कम होते हैं। हालांकि कुछ नेताओं के विरोध के बाद इस पर पाबंदी लगा दी गई लेकिन कुछ जातियों ने इसे जारी रखा।
अघोरी जीवन (वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
वाराणसी के अघोरी साधुओं को आप आसानी से पहचान सकते हैं। लंबे उल्झे बाल और राख से सना बदन उन्हें और भयवाह दिखाता है। इन अद्वैत साधुओं का मानना है कि त्याग के द्वारा ही इस बुरे संसार में पवित्र बना जा सकता है। कहा जाता है कि यह लोग मानव शेषों का खातें है और लाशों के साथ संभोग करते हैं। माना जाता है कि इनके पास भयानक तांत्रिक शक्तिया होती हैं।
गोवर्धन पूजा (महाराष्ट्र)
वैसे तो गोवर्धन पूजा पूरे भारत में मनाई जाती है, लेकिन महाराष्ट्र के भिव्डावाद गांव में इसे मनाने का तरीका ही अलग है। गायों को फूलों, रंगो और मेहंदी से सजाकर लोग उनके सामने लेट जाते हैं, ताकि गाय उन्हें रौद कर निकल सके। इससे पहले पांच दिन तक उपवास किया जाता है। माना जाता है कि इससे भगवान प्रसन्न होंगें और उनकी कामना जल्द सुन ली जाती है।
जैन साधुओं का केश लोचन (संपूर्ण भारत)
लगभग हर धर्म में मोक्ष को मुक्ति का अंतिम द्वार माना गया है। जैन धर्म में बालों को भ्रम, अज्ञान, मोह और अभिमान का प्रतीक माना गया है। जैन साधु-साध्वियां खुद ही अपने हाथों से पकड़ कर अपने बालों को निकालते हैं। इसे लोचन कहते हैं। इसे होने वाले घावों को मेहंदी लगा कर ठीक किया जाता है।
ढींग गावर (जोधपुर, राजस्थान)
सुनने में शायद यह आपको अजीब लगे, लेकिन यह बेहद मनोरंजक और आकर्षक है। राजस्थान के गणगौर त्यौंहार को हिस्सा, ढींग गावर केवल जोधपुर में ही मनाया जाता है। शिव-पार्वती के प्रति श्रद्धा के रूप में ढींग गावर की 11 मूर्तियां, 30 किलो सोने से सजा कर अलग-अलग जगहों पर छुपाई जाती हैं। प्रसाद के रूप में भांग दी जाती है। अलग-अलग वेशभूषाओं में सज कर औरतें लाठी पकड़ कर मूर्तियों की रक्षा करती हैं। माना जाता है कि यदि कोई भी कुंवारा लड़का इन औरतों के नजदीक जाकर लाठी से मार खा ले तो उसका विवाह जल्द हो जाता है।
आदि उत्सव (तमिल नाडु)
हर साल, आदि नाम के तमिल महीने के 18वें में हजारों श्रद्धालु करूर जिले के महालक्ष्मी मंदिर में पूजा करने जाते हैं। लेकिन पूजा में मंदिर के पुजारी उनके सिर पर नारियल फोड़ते हैं। इसे सेहत और भाग्य का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि मंदिर के निर्माण के समय जमीन से 187 नारियल के आकार के पत्थर निकले थे। अंग्रेज शासन में यहां रेल्वे पटरी बिछाने का हुक्म आया लेकिन गांववालों के विरोध के चलते ऐसा हुआ नहीं। गांववालों की श्रद्धा की जांच करने के लिए अंग्रजो नें उन पत्थरों को सिर से फोड़ने को कहा। गांववालों ने ऐसा कर दिखाया। तब से लेकर आज तक इस प्रथा को माना जाता रहा है।
मुहर्रम का शोक (संपूर्ण भारत)
मुहर्रम का मतलब होता है- निषिध या वर्जित। यूँ तो इसे पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह शोक का पाक महीना माना जाता है। शोक महीने के पहले दिन शुरू होता है, उसके बाद 10 दिन का उपवास किया जा है और अशुरा (दसवें) के दिन खत्म होता है, जब शिया मुस्लिम बड़े पैमाने पर खुद को जिस्मानी सजा देते हैं। इसे पैगंबर मोहम्मद के पोते हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है। आदमी बेरहमी से अपने जिस्म पर चेन और ब्लेड को कोड़े बरसाते हैं जब तक वे खून से लथपथ न हो जाएं।
अंबुबाची मेला (गुवहाटी, आसाम)
गुवहाटी के कामख्या मंदिर में देवी माँ की योनि की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि अपने पति शिव का अपमान न सहन कर पाने के कारण देवी ने खुद को अग्नि में समर्पित कर दिया। इसके क्रोधित होकर शिव ने उनके मृत शरीर को उठा कर तांडव किया। शरीर के टुकड़े धरती पर गिरे और वहां शक्तिपीठ का निर्माण हुआ। कमख्या के स्थान पर यानि गिरी थी। हर साल जून के पास आर्तवचक्र का प्रारंभ माना जाता है। मंदिर तीन दिन तक बंद रहता है और माना जाता है कि यह लाल हो जाता है। इस समय में अंबुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में तांत्रिक, अघोरी, साधु आदि अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। इस समय लाल रंग वर्जित रहता है।