विस्तार
योग के बारे में यह जानकारी व्हॉट्सएप के माध्यम से प्राप्त हुई है, लेकिन है बहुत ही दमदार और चमत्कारिक। इसलिए हम इसे पाठकों से साझा कर रहे हैं।
जिसे योग कहा जा रहा है क्या वह योग है? आप अगर महर्षि पतंजलि मुनि के "योगदर्शन" को देखेंगे तो लगता है, पूरे देश के कुओं में भांग घुली है और योग के बारे में कोई कुछ नहीं जानता। दुनिया में योग के नाम पर भ्रम फैलाए जा रहे हैं।
भारतीय दर्शन की कुछ तथ्यात्मक बातें आपसे इस मौके पर साझा करना चाहता हूं। हालांकि यह तय कि बहुत से लोग इसे अनावश्यक और सिर्फ़ आलोचना का विषय समझेंगे।
अगर कोई एक पत्ते को पेड़, एक पन्ने को पुस्तक और एक ईंट को मकान कहने लगे तो आप उसे क्या कहेंगे? अज्ञानी या अबोध ही न! अज्ञान किस तरह सिर चढ़कर बोलता है, उसका उदाहरण आज का दिन है। हमने सिर्फ आसनों को ही योग का नाम दे दिया है। आसन सिखाने वाला हर व्यक्ति अपने आपको योग गुुरु घोषित कर रहा है आैर मुझे लगता है कि यह न केवल गलत है, बल्कि भारतीय मनीषा की मानव-समाज को सबसे बड़ी देन का यह उपहास और अवमूल्यन है और यह नाकाबिले-बर्दाश्त भी।
सच बात ये है कि योगदर्शन में महर्षि पतंजलि ने यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि सहित आठ अंगों की एक व्यापक प्रक्रिया को योग कहा है।
वे योग दर्शन के साधन पाद अध्याय दो में कहते हैं : यमनियमआसनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयो$ष्टावंगानि।।29/80
और इस योग का मतलब उष्ट्रासन या पद्मासन भर नहीं है। न ही आंखें मींचकर उन पर हाथ रख लेना और लंबी-लंबी श्वासें लेना-छोड़ना है, जैसा कि अज्ञान का एक सामूहिक वैश्विक प्रदर्शन इन दिनों हो रहा है।
असल में योग के आठ अंगों की व्याख्या भौत्तिक विज्ञान के किसी गहन अध्याय का सा मामला है। हर चीज की एक परिभाषा है और उसे मनमर्जी से नहीं बदला जा सकता।
यम क्या है?
योग का पहला चरण यम हैं। यम जाति, देश, काल और समय से परे हैं। इन्हें सार्वभौम महाव्रत भी कहा गया है। यम यानी आप हिंसा न करने का संकल्प लेंगे। सत्य ही बोलेंगे। अस्तेय यानी चोरी, भ्रष्टाचार या अनैतिकता से कतई दूर रहेंगे। ब्रह्चर्य का पूर्ण पालन करेंगे और अपरिग्रह को अपने जीवन में उतारेंगे। पतंजलि कहते हैं : अहिंसासत्यास्तेयब्रह्चर्यापरिग्रहा यमा:।।30/80
नियम क्या है?
अब योग का दूसरा चरण है नियम। आप शौच का पालन करेंगे यानी शारीरिक, मानसिक और अाध्यात्मिक रूप से पवित्र रहेंगे। ये शौच वो एफएम वाली विद्या बालन वाला नहीं है, जो दिन भर ऐसे लोगों में शौचालयों का प्रचार करती है, जिनके घरों में विद्या बालन के दादाजी के पैदा होने से पहले के शौचालय बने हुए हैं। यहां शौच कुछ और है। शौच पॉटी नहीं है। शौच यानी पवित्रता। तन, मन और बुद्धि की। हृदय और मस्तिष्क की।
इस शौच के अंग हैं : संतोष, तप, स्वाध्याय और प्रणिधान। यहां संतोष का अर्थ न्यूनतम साधनाें और संसाधनों में जीवन यापन है, न कि जो मिल गया उस पर संतोष कर लेना। तप यानी अपने देश और काल में जो सबसे न्यूनतम सुविधाओं के साथ जीवन यापन कर रहा है, आप सदैव उसके स्तर पर रहने का अभ्यास करें। इसी तरह स्वाध्याय और प्रणिधान के अर्थ हैं।
आसन क्या है?
और आसन ये उलटे-सीधे क्रियाकलाप नहीं हैं। कहा गया है : स्थिरसुखमासनम्।। यानी जिसके स्थिर होने पर सुख का अनुभव होता है यही आसन है। पद्मासन ही नहीं, वीरासन, भद्रासन, दंडासन और स्वस्तिकासन में दिन भर रहना भी आसन है।
प्राणायाम क्या है?
प्राणायाम कुंभक और रेचक ही नहीं है। यह प्राणों पर नियंत्रण की क्रिया है और इसके लिए आपको पर्वतों, नदियों, झीलों, पक्षी कलरव और न जाने कैसे-कैसे प्रकृति की रक्षा करनी होगी। प्राणायाम सांसों को ऊपर नीचे करना या एक समय कपाल-भाति करना और अगले ही क्षण सलवार पहनकर दौड़ पड़ना नहीं है। योग को कारोबार बना देना और उसे मुनि पतंजलि के नाम से बेचना भारतीय मनीषा के आदर्शाें के हिसाब से घनघोर पाप है।
आप अगर योग कर रहे हैं तो आप किसी नीलगाय को मारने, लोगों पर टैक्सों की भरमार करके उनके जीवन को संकटापन्न करने, स्कूलों को पूरे संसाधन मुहैया नहीं करवाने, देश भर के अस्पतालों को बदहाल बनाए रखने और आए दिन सड़कों पर लोगों को कुत्तों की तरह कुचलने की छूट देने जैसे घनघोर अपराध करने पर आपको आत्मग्लानि जरूर होगी, लेकिन आप योग नहीं, आप आसन कर रहे हैं, लेकिन आपकी आत्मा में आम जीवन के प्रति क्षणिक भी संवेदना नहीं रहती। यह आसन और योग का फर्क है।
प्रत्याहार क्या है?
मुनि पतंजलि कहते हैं : योग का पांचवां अंग प्रत्याहार है। प्रत्याहार यानी समस्त अंग-प्रत्यंग में ज्ञानवृत्तियों काे चेतनशीलता से नहलाना और उनमें ज्ञानवृत्तियां जगाना। यह बहुत लंबी व्याख्या है, जिसे यहां मुझ अल्पज्ञ व्यक्ति, जो भारतीय योगशास्त्र के बारे में बहुत उथली सी जानकारियां रखता है, बता पाना नामुमकिन है। इसे योगदर्शन का कोई योग्य विद्वान ही बता सकता है।
धारणा क्या है?
योग के छहवें चरण पर मुनि पतंजलि कहते हैं : धारणासु च योग्यता मनस:।। 53/104 यानी मुनष्य को धारणाओं के अनुष्ठान करने होते हैं। ये कोई कर्मकांड नहीं है। यह शुद्ध रूप से मानसिक क्रियाकलाप है।
ध्यान क्या है?
आचार्य पतंजलि का कहना है : तत्र प्रत्ययैकतानताध्यानम्। 2/108
यानी अपनी स्वयं की काया और चित्त के साथ साथ समूचे देश और काल को ध्यानस्थ कर देने की यह मुद्रा सातवां योगांग है।
समाधि क्या है?
और आठवां योगांग समाधि है : तदेवार्थमात्रनिर्भाससं स्वरूपशून्यमिव समाधि।। लेकिन यह समाधि भी वह समाधि नहीं है, जो प्रचारित की जाती है। यह समाधि बहुत सूक्ष्म क्रिया है और इसके बिना योग कभी भी पूरा नहीं होता। समाधि यानी पूरे वातावरण को चैतन्य से परिपूर्ण करके त्रयमेकत्र संयमों का पालन, प्रज्ञालोक में अवतरण और भूमि विनियोग के निर्वैचार्य से परिपूर्ण होना।
योग का पथ, मानवता का रथ!
योग दया, करुणा और विनम्रता की उपासना का पथ है। घृणाओं और हिंसक प्रवृत्तियों के दमन की राह है। योग रक्त-पिपासा की कल्पना तक से मुक्ति का नाम है। हिंसा, युद्ध, बर्बरता और भीषण अशांति रचने के दुु:स्वप्नों से दूरी बनाने का नाम है। सामाजिक विषमताओं के उन्मूलन करने के राजपथ का नाम योग है। योग दान देने, बांट कर खाने, संचित नहीं करने और विशाल हृदयता का नाम है। योग काया के भीतरी ही नहीं, अपने आसपास के समस्त द्वंद्वाें को मिटाने का नाम है। योग इस काया को ही नहीं, इस समूची धरती को ब्रह्मपुरी बनाने का नाम है।