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सयाली – नाम सुनने में थोड़ा अजीब-सा लगे, मगर ये कोई साधारण नाम नहीं है। पिता एक मोची है और बेटी ने नंगे पैर 3000 मीटर की दौड़ में गोल्ड मेडल जीता।
सपने की दौड़ जीतने के लिए सिर्फ़ हूनर का हौसला मांगता है।
अब हम 2016 ओलंपिक्स की तैयारियां कर रहे हैं। ओलंपिक खेल हर प्लेयर का सपना होता है। 207 देशों के इस महाकुंभ को दुनिया भर में खूब पसंद किया जाता है।
एक सच यह भी है कि हमारे देश से ओलंपिक खेलों के लिए बहुत ही कम खिलाड़ी क्वालिफाई कर पाते हैं। इस देश में खेलों का इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं का हाल बेहाल है। खिलाड़ियों को सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं मिलता। ऐसा नहीं है कि हमार पास टैलेंट की कमी है, मगर यहां बुनियाद ही कच्ची है। मैरीकॉम, सुशील कुमार, मिल्खा सिंह की कहानियां तो हमारे पास हैं, मगर उन्हें बार-बार दोहराना हमारे लिए मुश्किल होता जा रहा है।
14 साल की सयाली म्हाईस्धुने ने 3000 मीटर की दौड़ में गोल्ड मेडल जीता। इस रेस में सयाली नंगे पांव गर्म कॉन्क्रीट पर दौड़ी। इस जीत से उनके ज़ख्म का दर्द तो कम ज़रूर हुआ होगा। सयाली के पिता एक मोची हैं।
एक विज्ञापन के ज़रिए ही सही, मगर कुछ लोग शायद सयाली जैसे टैलेंट की मदद तो ज़रूर करेंगे क्योंकि हूनर को उड़ने के लिए सिर्फ़ आसमान चाहिए:
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