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हिन्दुस्तान में हर गांव-कस्बे और शहर में बुनियादी जरूरतों का अभाव होता ही है, लेकिन शर्मा जी के दोस्तों की कमी कहीं नहीं रहती। जिस जगह शर्मा जी बसते हैं वहां उनके दोस्त पहले बस जाते हैं। इससे शर्मा जी को तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, लेकिन शर्मियानियों... मतलब श्रीमतियों का पारा एकदम चढ़ा रहता है। उनकी खातिरदारी जो गाहे-बगाहे करनी पड़ती है। कानपुर वाले शर्मा जी के दोस्त जब उनके घर गए तो उनकी श्रीमती जी ने उन्हें दरवाजे पर ही कूट दिया। शर्मा जी के दोस्त को शायद इसकी आदत थी, इसलिए बदन झाड़-बुहार कर लपककर अंदर पहुंच गए।