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Pabiben Rabera Inspirational Story Will Gives You Courage
कभी घरों में पानी भरकर करती थीं गुजारा, आज हैं करोड़ों की मालकिन
Updated Fri, 10 Nov 2017 08:40 PM IST
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Pabiben
- फोटो : Pabiben.com
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विस्तार
सही नीयत के साथ काम किया जाए तो सफलता सिर झुकाकर आपके सामने खड़ी हो जाएगी। ऐसे तमाम उदाहरण हमारे सामने हैं जहां कठिनाइयों को पार करते हुए लोगों ने सफलता का स्वाद चखा है। कुछ इसी तरह की शख्सियत हैं पाबिबेन रबारी… गुजरात के कच्छ के एक छोटे से गांव भदरोई की रहने वाली पाबिबेन अपनी एक वेबसाइट चलाती हैं। वेबसाइट के जरिए हाथ से बने हुए खास तरह के प्रोडक्ट्स बेचे जाते हैं। अपने इस काम की वजह से वो न सिर्फ कला के क्षेत्र में जाना माना नाम हो चुकी है, बल्कि उनकी वेबसाइट अच्छी खासी कमाई भी करती है।
पाबिबेन के सिर से पिता का साया 5 साल की उम्र में ही उठ गया था। जब पिता की मौत हुई थी तो पाबिबेन की मां गर्भवती थीं। आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी इसलिए मां को घर घर जाकर काम करना पड़ता था। तब पाबिबेन अपनी मां के साथ घरों के लिए पानी भरा करती थी। पूरे दिन काम करने के बाद पाबिबेन को 1 रुपया मेहनताना मिल पाता था। परिवार की आर्थिक हालत खराब थी लिहाजा पाबिबेन को सिर्फ चौथी क्लास तक ही पढ़ने का मौका मिला।
दरअसल जिस समुदाय से पाबिबेन आती हैं वो गुजरात का आदिवासी समुदाय ‘रबारी’ कहलाता है। यहां की एक खासियत थी कि घर की बेटी अपने ससुराल के लिए अपने हाथों से बने कपड़े लेकर जाएगी। इसी प्रथा की वजह से वहां एक खास तरह की पारंपरिक कढ़ाई-बुनाई की जाती है। पाबिबेन ने बचपन में ही अपनी मां से इस कला को सीखा। इस कढ़ाई-बुनाई में काफी बारीक काम है, उन दिनों एक पीस तैयार करने में एक से दो महीने का वक्त लग जाता था। बुजुर्गों ने इस प्रथा को खत्म कर दिया लेकिन पाबिबेन को इस काम से प्यार था।
पाबिबेन चाहती थीं कि रबारी समुदाय की ये कला खत्म न हो। 1998 में उन्हें एक NGO में काम करने का मौका मिला, जहां इसी तरह की कला के लिए फंडिंग की जा रही थी। तब से पाबिबेन ने इस कला को बचाने के लिए एक कोशिश शुरू की। सबसे पहले उन्होंने ट्रिम और रिबन पर कढ़ाई करने के लिए एक एप्लीकेशन की शुरुआत की। जिसका नाम हरी-जरी रखा। पाबिबेन ने इस संस्था में काफी दिनों तक काम किया, उन्हें 300 रुपये की तनख्वाह भी मिलती थी, साथ ही काम भी सीखने का मौका मिला।
पाबिबेन अपने रास्ते पर चलना शुरू ही कर रही थीं कि तभी उनकी जिंदगी में एक मोड़ आ गया। उनकी शादी हो गई। पाबिबेन की शादी में कुछ विदेशी भी आए, जिन्हें हाथ से बनाए खास तरह के बैग गिफ्ट में दिए गए। विदेशियों को पाबिबेन के बैग बहुत पसंद आए और उन्होंने पाबिबेन को पाबिबैग का नाम दे दिया। विदेशियों की ऐसी तारीफ देखकर पाबिबेन को उनके ससुराल का समर्थन मिला और यहीं से पाबिबेन ने अपना काम शुरू किया।
गांव की महिलाओं के साथ पाबिबेन ने अपनी फर्म बनाई, जिसका नाम रखा पाबिबेन डॉट कॉम। उनको पहला ऑर्डर 70 हजार रुपये का मिला जिसे पाबिबेन ने तय समय पर पूरा कर दिया। उनके इस काम की तारीफ गुजरात की सरकार ने भी की। आज पाबिबेन डॉट कॉम, कला की दुनिया में जाना पहचाना नाम है। वो 60 महिलाओं को रोजगार भी देती हैं और कंपनी का सालाना टर्न ओवर 20 लाख रुपये तक पहुंच चुका है। अब पाबिबेन की डिजाइनों को फिल्मी पर्दे पर भी जगह मिलती है। ग्रामीण आंत्रेप्रेन्योर की कैटेगरी में पाबिबेन को जानकी देवी बजाज पुरस्कार से साल 2016 में सम्मानित किया जा चुका है।
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