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आज दुनिया जिस दौर से गुजर रही है वहां सरहदें ही सबकुछ बयां करती है। इंसानियत अपनाने के बजाय ज्यादातर लोग धर्म, जाति और देश के नामों में उलझे हुए हैं। रोहिंग्या मुसलमानों का मामला कुछ ऐसा ही है, धरती के कुछ लोग जिनके लिए पृथ्वी पर एक भी कोना नहीं बना। दुनिया के इस दस्तूर से अलग धरती पर एक ऐसा गांव हैं जो इंसानी नियमों से अलग अपनी ही दुनिया में रहता है। यहां का राजा खाना म्यांमार में खाता है और सोने के लिए भारत आता है।
हिंदुस्तान के उत्तर पूर्व में नागालैंड के अंतर्गत एक मोन नाम का जिला आता है। इस जिले का एक गांव हैं लोंगवा। लोंगवा की खास बात ये है कि ये आधा गांव भारत में आता है और बाकी का आधा हिस्सा म्यांमार में बसा है। गांव के घरों के बीच में से भारत और म्यांमार की सीमा रेखा गुजरी है। इसलिए वो कहते हैं कि वो खाते म्यामांर में हैं तो सोते भारत में हैं।
लोंगवा गांव नागालैंड की राजधानी कोहिमा से करीब 400 किमी दूर है। गांव में कोन्याक जनजाति के राजा का नाम नगोवांग है। उनके हिस्से में कुल 75 गांव आते हैं। कुछ गांव म्यांमार में आते हैं, कुछ नागालैंड और कुछ अरुणाचल प्रदेश में। लोंगवा गांव के राजा की फैमिली काफी बड़ी होती है। उनके परिवार में 60 बीवियां हैं।
इस देश के लोगों को दोहरी नागरिकता मिली हुई है। भारत से म्यांमार और म्यांमार से भारत आने जाने के लिए न तो इन्हें वीजा लेना पड़ता और न ही पासपोर्ट की जरूरत पड़ती है। इस गांव की जनजाति के लोगों को हेड हंटर्स के नाम से जाना जाता है। बताते हैं कि पहले यहां के लोग इंसानों को मारकर उनकी खोपड़ी को अपने साथ ले जाते थे। हालांकि अब ऐसा नहीं होता है, लेकिन इन लोगों के घरों में पुश्तैनी खोपड़ियां टंगी हुई हैं जिनको देखकर आप डर भी सकते हैं।