Home Bollywood Do You Know In The Film Mughal E Azam Prithviraj Kapoor Got This Much Money

क्या आप जानते हैं 'मुगले आजम' में पृथ्वी राज कपूर को कितनी फीस मिली थी

टीम फिरकी, नई दिल्ली Updated Sat, 03 Nov 2018 07:24 PM IST
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- फोटो : YouTube
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सिनेमा ने हमारे काल्पनिक किरदारों को जिंदा रखा, जो लोग हमारे आने से बहुत पहले इतिहास की गोद में सो गए, उनका खयाल हमेशा हमारे दिमाग में घूमता रहता है। हम सोचते हैं कि वो दिखने में कैसा रहा होगा, उसकी चाल ढाल बोलने का तरीका कैसा होगा। सिनेमा ने हमारी ये मुश्किल बहुत हद तक आसान कर दी। किरदारों ने ऐसा अभिनय किया कि पात्र हमारे जहन में जी उठे। 

बॉलीवुड के मुगल-ए-आजम और 'पापाजी' पृथ्वीराज कपूर का जन्म 3 नवंबर, 1906 को पाकिस्तान के लायलपुर की तहसील समुंद्री में हुआ था। तीन साल की उम्र में उनसे उनकी मां की गोद छिन गयी। पिता पुलिस में थे, इसीलिए उन्होंने वकालत करना सही समझा। लेकिन उन्हें वकील साहब थोड़े ना बनना था, उनके लिए तो सिनेमाई सल्तनत का सिंहासन इंतजार कर रहा था। सिनेमा तक जाने की राह उन्होंने आठ साल की उम्र में तब खोज ली जब उन्होंने पहली बार स्कूल के नाटक में हिस्सा लिया। इसके बाद पेशावर के एडवर्ड कॉलेज से वकालत करने लगे, यहीं पर इनका नाटकों के प्रति और लगाव बढ़ा। रंगमंच में काम करने के उदेश्य से वे लाहौर भी गए लेकिन उन्हें काम नहीं मिला जिसका कारण था उनका पढ़ा लिखा होना।

रंगमंच प्रेम के चलते लाहौर आए लेकिन किसी नाटक मंडली में काम नहीं मिला। वजह बेहद दिलचस्प थी- वे पढ़े लिखे थे। सितंबर, 1929 को काम की तलाश में बंबई आ गए और इंपीरियल फिल्म कंपनी में बिना वेतन के एक्स्ट्रा कलाकार बन गए। लेकिन उन्हें बॉलीवुड का शहंशाह बनना था। भारत की पहली बोलती फिल्म आलमआरा में 1931 में 24 साल की उम्र में अलग-अलग आठ दाढ़ियां लगाकर जवानी से बुढ़ापे तक की भूमिका निभाकर अपने अभिनय की लाजवाब मिसाल पेश की।

दस साल बाद 1941 में, सोहराब मोदी के 'सिकंदर' फिल्म में सिकंदर की बेमिसाल भूमिका उन्होंने निभाई। 1960 में मुगले आजम में अकबर के किरदार के साथ उन्होंने अभिनय का ऐसा शाहकार रचा जिसकी आज भी मिसाल दी जाती है। इस फिल्म की स्टार कास्ट में पृथ्वीराज कपूर का नाम दिलीप कुमार और मधुबाला से पहले आता है। इसको लेकर दिलीप कुमार और मधुबाला में एक तरह से नाराजगी भी थी।

इस नाराजगी का जिक्र पृथ्वी थिएटर में काम करने वाले योगराज टंडन ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रकाशित 'थिएटर के सरताज पृथ्वीराज' में किया है। मुगले आजम बनने में काफी विलंब हो रहा था, कई वजहें थी, जिसकी चर्चा होती रहती थी। एक वजह ये भी थी कि फिल्म में स्टारकास्ट में पृथ्वीराज का नाम पहले आने वाला था।

इस बारे में पृथ्वीराज ने के आसिफ को कहा, "क्यों छोटे मोटे झगड़ों में फंसकर फिल्म लटका रहे हो। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, इन दोनों के नाम मुझसे पहले और बड़े अक्षरों में लिख दो।" आसिफ ने कहा था, "दीवानजी, मैं मुगले आजम बना रहा हूं, सलीम-अनारकली नहीं। यह बात इन दोनों में से किसी को समझ नहीं आती। मेरी इस फिल्म का केवल एक हीरो है और वो है अकबर दी ग्रेट।"

वैसे इस फिल्म में पृथ्वीराज के जुड़ने से जुड़ा भी बेहद दिलचस्प किस्सा है। के. आसिफ ने उन्हें अनुबंध के तौर पर लिफाफे में चेक दिया था, जो कोरा था। इसका जिक्र योगराज टंडन ने लिखा है। उन्होंने लिखा है, "जहां इतना कुछ लिखा है, वहां रकम भी लिख देते- पृथ्वीराज कपूर ने मजा लेते हुए चुटकी ली। आसिफ जी बोले- पहले तो यह बताइए इसमे कुल रकम कितनी लिखूं।"

योगराज टंडन ने लिखा है कि पृथ्वीराज कपूर के सहायक के तौर पर इस बातचीत के दौरान वहां मौजूद थे। पृथ्वीराज जी ने कहा, "क्या तुम नहीं जानते।" के. आसिफ ने कहा, "जानता तो पूछता नहीं।" पृथ्वीराज कपूर ने कहा, "अच्छा तो फिर कोई रकम लिख लो, मुझे मंजूर होगा।" के. आसिफ ने कहा, "नहीं दीवानजी, ऐसा मत कहिए। सबने अपनी कीमत लगाई। दिलीप कुमार, मधुबाला, दुर्गा खोटे फिर आप क्यों।।?" "नहीं मेरी कीमत तुम खुद लगाओगे।" "ये धृष्टता मैं नहीं कर सकता, दीवानजी।" "मैं भी तो अभी तक अपनी कीमत नहीं लगा पाया।" "अच्छा आप यह तो बता सकते हैं- राज ने आवारा में आपको क्या दिया।" "पचास हजार।" "तो मैं पचहत्तर हजार लिख दूं।"
"जैसा तुम ठीक समझो।" बात यहीं खत्म नहीं होती। मेहनताना तय हो गया था लेकिन के। आसिफ कांट्रैक्ट के बदले में एडवांस रकम देना चाहते थे।

के. आसिफ ने जब पृथ्वीराज को चेक पर एडंवास की रकम लिखने को कहा तो पृथ्वीराज कपूर ने केवल एक रूपये लिखा। के. आसिफ भावुक हो गए तो पृथ्वीराज ने कहा, "आसिफ, मैं आदमियों के साथ काम करता हूं, व्यापारियों या मारवाड़ियों के साथ नहीं।" ऐसे पृथ्वीराज कपूर ने भारतीय फिल्म जगत को राजकपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर जैसे सितारे दिए। बाद में रणधीर कपूर, ऋषि कपूर, करिश्मा कपूर, करीना कपूर और रणबीर कपूर जैसे सितारों ने इस विरासत को आगे बढ़ाया।

कपूर खानदान को बॉलीवुड का सबसे प्रतिष्ठित खानदान माना जाता है। राजकपूर की कामयाबी इतनी बढ़ गई थी कि फिल्मी दुनिया पृथ्वीराज कपूर को राजकपूर के पिता के तौर पर पुकारने लगी थी। राजकपूर को अपने पूरे जीवन कभी ऐसा नहीं लगा कि वे अपने पिता से ज्यादा बेहतर हो पाए। वे अपने पिता का इतना आदर करते थे कि उनके सामने कभी सिगरेट और शराब नहीं पीते। लेकिन राजकपूर के लिए अपने पिता की क्या अहमियत थी, इसका एक दिलचस्प विवरण वरिष्ठ फिल्म पत्रकार जयप्रकाश चौकसे ने राजकपूर पर लिखी अपनी किताब में किया है।

वे लिखते हैं, "कई बार आधी रात के बाद नशे में राजकपूर में अपने पिता के घर के बाहर आकर अपने पिताजी को आवाज देते, पिता जब बॉलकनी में आते तो राजकपूर कहते- आप नीचे नहीं आइए, मैं ही कोशिश करूंगा कि आपके बराबर आ सकूं।" और इतना कहते कहते उनका नशा काफूर हो जाया करता था।
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