पिछले साल की बात है। कोई नवंबर या दिसम्बर के महीने की। कभी-कभार जब एफ.एम. के विज्ञापन से मन उकता जाता तो हम यू ट्यूब की सैर पर निकल लेते। ऐसे ही एक शाम एफ.एम. सुन रहा था। गाने नए-पुराने चल रहे थे। और ऐड का ब्रेक आ गया। सच कह रहा हूं, पता नहीं आप मानें न मानें। आपको लगता होगा, एफ.एम. बड़ा सही है यार। दिन भर कुछ न कुछ मज़ेदार होता ही रहता है।
लेकिन जब दिल्ली-नॉएडा वाले एफ. एम. चैनल पर एक सुर में घर बन रहा है, घर खरीदिए.. फलाना मॉल में ऑफर है जाइए जूता खरीद लीजिए टाइप बकना शुरू करते हैं न, उस टाइम आपको अपना फोन तोड़ देने का मन करेगा। ख़ैर ये तो अपना दर्द है। बात मुद्दे की..
तो जब हमने इन सब से परेशान हो कर यू ट्यूब खोला और कुछ 80 और 90 के दशक के गाने ढूंढने लगे। तभी एक गाने को ऐसे ही प्ले कर दिया। शुरू में थोड़ी देर की शांति फिर जब गाने को पूरे ध्यान से सुना तो उस दिन इस गाने को लगातार 10 बार सुना। इस गाने की सबसे ख़ास बात है, आप जितनी बार सुनेंगे उतनी बार कुछ नए शब्द आपके कानों को छुएंगे। आप पहले इस गाने को सुनिए। फिर इसके पीछे का एक मस्त-सा किस्सा बताएंगे। आप भी चौंक जाएंगे।
गाना है: मेरा कुछ सामान
फिल्म का नाम है: इजाज़त(1987)
लिरिक्स: गुलज़ार साहब के लिखे हुए हैं
संगीत है: पंचम दा यानी आर.डी.बर्मन साहब का
इस फिल्म का निर्देशन(डायरेक्टर): ये भी गुलज़ार साहब ने ही किया था
इस गाने के पीछे एक बेहद ही रोचक किस्सा है। गुलज़ार साहब यों तो उम्र में आर.डी. बर्मन से बड़े थे। लेकिन बचपन से दोनों का साथ-साथ मिलना होता था। तो रिश्ता बड़े-छोटे से ज्यादा दोस्त जैसी थी। गुलज़ार साहब बिमल रॉय के असिस्टेंट थे और पंचम अपने पापा के यानी एस.डी.बर्मन साहब के।
जब इजाज़त फिल्म बन रही थी, इसके म्यूज़िक पर काम चल रहा था। तब पंचम और गुलज़ार इस फिल्म में एक साथ काम कर रहे थे। गुलज़ार साहब जहां फिल्म के गीत लिख रहे थे और इसके निर्देशन की तैयारी में थे। पंचम इस फिल्म को संगीत देने में लगे थे। मतलब फिल्म के लिए म्यूजिक तैयार करने का काम, इनके जिम्मे था।
एक दिन ऐसे ही पंचम और आशा जी अपने काम की तैयारी में बैठे थे। तभी गुलज़ार साहब ने उन्हें इस गाने की लिरिक्स पकड़ाई। अब आर.डी. बर्मन (पंचम) ने लिरिक्स को हाथ में लिया। उसे देखा, पढ़ा। और फिर उसे ऐसे उड़ा दिया।
और कहते हैं, "क्या है ये! कुछ भी लिख के ले आओगे और कहोगे इसे गाना बना दो! कल टाइम्स ऑफ़ इंडिया की हेडलाइन उठा के कहोगे इसे गाना बना दो!"
लेकिन वहां बैठीं आशा जी ने वो परचा उठाया। और उसे यूंही गुनगुनाने लगीं। पंचम दा का दिमाग ठनका, उन्होंने गाने को पकड़ लिया। और फिर ये गाना तैयार हुआ। बात यहीं खत्म नहीं होती। सबसे मज़ेदार बात, इसी गाने की लिरिक्स के लिए गुलज़ार साहब को पहला नेशनल अवॉर्ड मिला था। और आशा जी को भी इस गाने के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला था। है न .. मज़ेदार!