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देश में जब कन्या भ्रूण हत्या जैसी खबरें सुनाई देती हैं तो अंदाजा लग जाता है कि हम किस गर्त की ओर जा रहे हैं। लोग बेटे की चाह में बेटियों की निर्मम हत्या कर देते हैं। जहां आज तक लड़कियों को एक अभिशाप की तरह देखा जाता रहा है वहीं एक सर्वे की ऐसी रिपोर्ट आयी है जो देश के बड़ते हुए अच्छे कदमों की ओर इशारा कर रही है। हाल में जारी हुए नेशनल हेल्थ सर्वे के आंकड़ों से पता चला है कि देश के करीब 80 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि घर में कम से कम एक बेटी होने ही चाहिए।
इसमें जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है वो यह है कि शहरी और पढ़े-लिखे लोगों की तुलना में ग्रामीण लोग बेटियों की चाह अधिक रखते हैं। सर्वे के अनुसार 81 फीसदी ग्रामीण महिलाएं बेटी चाहती हैं जबकि 75 प्रतिशत शहरी महिलाएं ही घर में बेटी की चाह रखती हैं। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मुस्लिम, ग्रामीण लोग और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोग भी बेटी को ज्यादा चाहते हैं।
इसके पहले साल 2005-06 में हुए सर्वे में 74 फीसदी महिलाओं और 65 फीसदी पुरुषों का यह कहना था कि घर में कम से एक बेटी होनी चाहिए।
हालांकि कुछ लोगों ने लड़कों को ही प्राथमिकता देने की बात की। सर्वे के अनुसार बिहार में सबसे ज्यादा 37 फीसदी और उसके बाद यूपी में 31 फीसदी महिलाएं यह मानती हैं कि बेटियों से ज्यादा बेटे होने चाहिए। ऐसा कहने वालों का प्रतिशत कम ही है और उम्मीद है कि आने वाले समय में यह प्रतिशत और भी कम हो जाएगा।
बेटी बचाओ बेटी पढाओ, सेल्फी विद डॉटर, मेरी बेटी मेरा अभिमान जैसे कार्यक्रम बेटियों के प्रति जागरूकता के लिए चलाए गए हैं। बेटियां किसी से कम नहीं होतीं और हर क्षेत्र में अपने नाम रोशन कर रही हैं। और इस सर्वे का परिणाम और यह सोच कि 'बेटी घर में जरुर होनी चाहिए' देश को बदल देगी और प्रगति के रास्ते पर लेकर जाएगी।