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हमारे समाज में बड़े-बड़े समाज सुधारक हुए हैं, किसी ने सतीप्रथा बंद करवाई तो किसी ने पर्दाप्रथा के खिलाफ आवाज उठाई। वक्त के साथ हुए इन बदलावों को समाज ने अपनाया और सुधार किया। लेकिन अब भी ऐसी कई व्यवस्थाएं और समस्याएं हैं जिन्हें बात करने में हिचकिचाहट बाकी है। उनमें से एक विधवा-पुनर्विवाह भी है, वो भी ऐसी स्थिति में जब उम्र 50 के पार हो चुकी है। उस अवस्था में समाज की निगाहें सम्मान से नहीं उठती। इसलिए अक्सर विधवाओं को हालत से समझौता कर जीना पड़ता है।
लेकिन किसी को तो आवाज बुलंद करनी ही पड़ती है, कहीं से तो बदलाव की शुरुआत होती है। और ऐसे ही एक बदलाव की शुरुआत की संहिता अग्रवाल ने, जिन्होंने 52 साल के अपने पिता को खो दिया। ये दुर्घटना उनके और उनके परिवार के सभी सदस्यों के लिए तोड़ देने वाली थी। समय के साथ सब ठीक होने की उम्मीद के साथ सब आगे बढ़ते रहे।
लेकिन कई महीनों तक ये जख्म नहीं भरा जा सका बल्कि और गहरा होने लगा। संहिता का कहना है कि."उनकी मां अक्सर उनके पिता की फोटो के आगे बैठ कर रोया करती थीं, नींदों में उनका नाम बुलाया करती थीं और उनके बारे में पूछा करती थीं"।
इस बीच संहिता को जॉब के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा। उनके बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी इसलिए उनकी मां घर पर अकेली रहती थीं। वीकेंड पर जब भी संहिता उनकी मां से मिलने जातीं तो वो कहती थीं कि वो ठीक हैं लेकिन संहिता को ये अंदाजा था कि उनकी मां किस दौर से गुजर रही हैं।
तीन महीने बाद संहिता ने सोच लिया कि उन्हें अपनी मां के अकेलेन के लिए कोई कदम उठाया ही है, और फिर उन्होंने जो कदम उठाया वो वाकई बहुत हिम्मत वाला और काबिल-ए-तारीफ है। उन्होंने अपनी मां की दोबारा शादी करवाने की ठान ली।
संहिता ने शादी की वेबसाइट पर जाकर अपनी मां की तस्वीर के साथ उनके जीवन की कहानी भी डाल दी। वो एक ऐसा मैच चाहती थीं जो उनकी मां की तकलीफों को समझ सके और जिसके साथ उनकी मां भी अपनी तकलीफों को बांट सकें। लेकिन इसके लिए मां की मंजूरी होनी जरुरी थी, और स्वाभाविक तौर पर उनकी मां ने इससे इंकार कर दिया। यह सोच कर कि अगर वो इस उम्र में दोबारा शादी करेंगी तो समाज क्या सोचेगा।
इस पर संहिता ने उन्हें समझाते हुए कहा कि,"सबको अपनी मर्जी की जिंदगी जीने का हक है ये सोचे बिना कि समाज का क्या सोचेगा, क्योंकि 80 की उम्र में जब आप अकेले होंगे तब ये समाज आपसे बात करने नहीं आएगा। यहां तक कि आपके परिवार वाले भी आपका फोन उठाना बंद कर देंगे। लेकिन आपका लाइफ पार्टनर आपका साथ देगा, बच्चों के होने पर भी आपको एक ऐसे शख्स की जरुरत है जिसके साथ आप अपनी बात शेयर कर सको। और पापा के चले जाने में आपकी कोई गलती नहीं है, नहीं अब आपकी गलती है जब आप अपनी जिंदगी को एक और मौका नहीं देंगी, सोचिए।"
आखिर में उनकी मां राजी हो गयीं। संहिता को एक ऐसा मैच मिल गया जो उन्हें समझदार और उनकी मां के लिए परफेक्ट लगे। कुछ ही दिन पहले दोनों की शादी हुई है। इस शादी को करवाने के बाद संहिता का कहना है कि, "पहले उनकी मां कहा करती थीं की वो अपना ख्याल रख रही हैं, लेकिन अब वो कहती हैं कि अब उनका ख्याल रखने के लिए कोई उनके साथ है।"
संहिता को अपने इस कदम पर गर्व है, साथ ही उन्होंने जब ये कहानी Quora पर शेयर की तो उन्हें इसके लिए बहुत सराहना भी मिली। लेकिन उन्होंने सोचा कि उनका ये कदम समाज के लिए इतना अचंभित करने वाला क्यों है। संहिता ने कहा कि,"ये कदम इस देश में आम क्यों नहीं है? जो माता-पिता अपनी जवानी का सारा समय अपने बच्चों की देखभाल में लगा देते हैं, उनका बुढ़ापे में अकेले जीवन काटना उचित नहीं है। हम कैसे उन्हें किस्मत के भरोसे अकेले जीवन काटने के लिए कह सकते हैं।"
संहिता को अपने इस काम में कुछ भी असाधारण नजर नहीं आता, उनके अनुसार किसी भी विधवा महिला को यह कहने में झिझकना नहीं चाहिए कि वो दोबारा शादी करना चाहती है। मां-बाप से दूर रह रहे बच्चों के लिए उनका कहना है कि, ऐसे बच्चों को अपने व्यस्त शेड्यूल में से थोड़ा समय निकाल कर अपने मां-बाप को देखना चाहिए कि कहीं वो अकेले तो नहीं हैं। क्योंकि मां-बाप कभी नहीं कहेंगे कि वो बीमार हैं या उन्हें आपकी जरुरत है, लेकिन ये आपका फर्ज है ये देखना कि वो खुश हैं या नहीं।
संहिता के ये विचार और बातें आज के सन्दर्भ में बहुत सटीक और प्रेरणादायक हैं। उनके पिता को भी उन पर आज गर्व होगा।