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'पीरियड' के वो चार दिन जिसे बस लड़कियां ही समझ सकती हैं!

shweta pandey/firkee.in Updated Mon, 02 Jan 2017 06:35 PM IST
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पीरियड्स
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'पीरियड्स' नाम सुन कर ही डर लग जाता है। महीने के 4 दिन कितने कष्टदायी होते हैं ये हम लड़कियों को ही पता है। ये ऐसा दर्द है जिसे हर महीने ही झेलना पड़ता है। पेन किलर खाना भी खतरे से खाली नहीं है। अब इन दिनों में हम करें तो क्या करें। एक लड़की हूं इसलिए ये दर्द शेयर कर सकती हूं। इन 4 दिनो में हम जी नहीं पाते हैं अधमरे हो जाते हैं। मरा हुआ बेशक अधमरे से अच्छा होता है। पीरियड लीव जैसा कदम जो कि अभी हाल में ही उठाया गया है इसे सालों पहले ही उठा लिया जाना चाहिए था। 

इन चार दिनो में शरीर की जो हालत हो जाती है वो हम साल भर कठिन काम करके खुद को रगड़ लें तब भी नहीं होगा। गुस्सा, चिड़चिड़ापन अपने आप आ जाता है। कितने भी जिंदादिल क्यूं न हों लेकिन ये चार दिन मारने वाला होता है। लड़कियां सहनशील होती हैं, धैर्यवान होती हैं, लेकिन सारी सहनशीलता चार दिन के लिए खत्म हो जाती है।

एक लड़की की ज़िदगी इस पीरियड की वजह से वाकई थोड़ी सी कष्टदायी तो हो ही जाती है। सारा दुख, दर्द एक तरफ और पीरियड का दर्द एक तरफ। हर लड़की की जिंदगी में ये पीरियड नाम की बला आती ही है, चाहे क्रिकेटर हो या एक्ट्रेस। एक लड़की ही इतने खतरनाक दर्द को झेल कर, सह कर खुद को और सहनशील और मजबूत बना सकती है। 

ये ऐसा दर्द है जिसमें कमर से नीचे का हिस्सा टूट सा जाता है। चिल्लाने को जी करता है। चीख-चीख कर जान दे देने को जी करता है। न खाने को मन करता न बात करने को। एक गर्म लोहे से जांघों पर वार करने को जी करता है। इन चार दिनो में हंसना भूल जाते हैं। खून की एक बूंद टपकती है तो लोगों की जान निकल जाती है, हम लड़कियों को हर महीने खून से होली खेलनी पड़ती है। हर तरफ लालिमा रहती है फिर भी आंखों के आगे अंधेरा। 

एक डर रहता है कि कहीं हमारे कपड़े न गीले हो जाएं, कहीं हमारे बिस्तर पर कोई दाग न लगे। हमें दर्द झेलने के आलावा लाख बातों का ध्यान भी रखना पड़ता है। कितना दर्द भर दिया है भगवान ने एक स्त्री के जीवन में, उसे बस और बस एक लड़की ही समझ सकती है। पीरियड होने का सीधा मतलब मां बनने से होता है। एक औरत तभी एक पूर्ण औरत कहलाती है जब वो मां बनती है।
ऐसा हम नहीं मानते लेकिन जमाना यही मानता है। 


पहले यह प्रथा थी कि औरत अपने पीरियड्स के दौरान कोई काम नहीं करेगी, लेकिन आज ये प्रथा खत्म हो चली है। जिस दिन औरत काम न करे उस दिन दुनिया धीमी चाल से चलने लगे। अब काम भी करना है और दर्द भी सहना है। मात्र औरत होना ही अपने आप में एक गर्व की बात है। औरत का दर्द ही उसे सहनशील बनाता है, मजबूत बनाता है। जिंदगी चार दिन की है, इसलिए हंस के दर्द सह के हमें पीरियड के चार दिन बिताना ही है। और ये ऐसा दर्द है जो केवल लड़कियो को ही मिला है। इसलिए इसे पुरूष वर्ग कभी नहीं समझेगा...

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