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इन लोगों की एक अलग दुनिया है, जो रोमांचक तो है पर साथ ही खतरनाक भी है। अपना पूरा जीवन समुद्र के बीच में बिताना कोई आसान बात नहीं है, लेकिन मलेशिया, इंडोनेशिया और फिलिपिंस के आसपास के समुद्र में रहने वाले 'समा बजाऊ' आदिवासी जाति के लोग कुछ ऐसे ही जीते हैं। ये लोग जीने के लिए पूरी तरह से समुद्र पर ही निर्भर हैं। अगर आपको भी ऐसे रहने का मौका मिले तो सोचिए कैसी होगी आपकी जिंदगी।
कभी भी ज़मीन पर नहीं आते
और आना भी क्यों है भाई, जब इनका पूरा संसार ही सुमुद्र में है। ये लोग समुंद्र के बीचों-बीच रहते हैं, कभी-कभी ही ज़मीन पर आते हैं, जब कोई ज़रूरी काम होता है। देखा इन लोगों को कितना प्यार है इस सुमुद्र से।
समा-बजाऊ
ये लोग एक दूसरे को सम, समा, समल आदि नामों से बुलाते हैं, तथा बाहर के लोग इन्हें बजाऊ, बजाह, बडजाऊ आदि नामों से जानते हैं इसलिए इन लोगों को समा-बजाऊ कहां जाता है। अरे आगे और जानिए क्या खास है इन लोगों के बारे में।
आखिर हैं कहां के ये लोग
इन लोगों के पास किसी भी देश की नागरिकता नहीं है। मने कि इस प्रजाती के कुछ लोग फिलिपिंस,मलेशिया और कुछ इंडोनेशिया में पाए जाते हैं। और समुद्र पर क्या सरकार और क्या लोकतंत्र.. तो इनके पास नागरिकता का कोई प्रमाण नहीं होने पर भी ये इन देशों के नागरिक माने जाते हैं।
पानी तो है, लेकिन रहने के लिए घर?
इन लोगों का कोई स्थायी निवास तो होता नही है, ये लोग अपने स्थान यहां से वहां बदलते रहते हैं। लेकिन चाहे कुछ भी हो जाए रहना इनको पानी में ही है।
जीवन-यापन का क्या है तरीका
ये लोग न ही किसी मुद्रा का उपयोग करते हैं और न ही इनके पास किसी प्रकार की कोई धन-सम्पदा है, मने कि मज़े की जिंदगी न कोई स्यापा और न ही कोई लोचा ..आराम और मस्त की जिंदगी। वैसे ये लोग समुद्र में सब्जियां उगाते हैं और मछलियों का शिकार भी कर लेते हैं।
बिना ऑक्सीज़न टैंक
अब आपको कोई बोले कि समुंद्र में कूद जाओ और वो भी बिना किसी ऑक्सीजन टैंक के ..तो आप बोलेंगे कि पगला गए हो क्या, लेकिन ये लोग पानी में ही रहते हैं और वो भी बिना किसी ऑक्सीजन टैंक के। अरे भाई इनके बच्चे तो खेलते ही पानी में हैं ..अब बोलो।
मछलियों का शिकार
मछलियों का शिकार बिना किसी आधुनिक हथियार के हाथों से ही करते हैं। बड़े ही नहीं यहां के छोटे-छोटे बच्चे ही बिना किसी हथियार के बड़ी-बड़ी मच्छलियों को पकड़ लेते हैं, मानो ये उनके बाएं हाथ का खेल हो।
त्यौहार
इन लोगों के त्यौहार भी अनोखे होते हैं। और इस त्यौहार में ये लोग अपनी नावों को सज़ा-धज़ा कर और खुद भी अच्छे-अच्छे कपड़े पहन कर निकल लेते हैं झुंड में और करते क्या हैं ये तो हमें भी नहीं पता।
जीने का अंदाज़
साइंस में एक शब्द है - एम्फीबिएंस। मतलब समझते हैं इसका? मतलब वो जो ज़मीन और पानी दोनों जगह रह सकता हो। पर हुज़ूर को तो पानी में ही रहना है। भले ही बने ज़मीन पर रहने के लिए हों। इनके जीने का अंदाज़ गज़ब का है।