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मिस्वाक का नाम आप लोगों ने जरूर सुना होगा और इसके बारे में सबसे पहले शायद आपको तब पता चला होगा जब आपने टीवी पर मिस्वाक टूथपेस्ट का विज्ञापन देखा होगा। अगर आपने मिस्वाक इस्तेमाल किया है तो समझ लीजिए कि आप प्रकृति के बहुत करीब हैं। इसे आप नीम की दातून की तरह समझ सकते हैं। ये अरब और अफ्रीकी देशों में मशहूर है। कुरआन में भी इसके इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। भारत में ये शायद आपको फ्री में मिल जाए लेकिन एक चेक कंपनी इसे 300 रुपए में बेच रही है।
यह बात कल्पना से परे लगती है, लेकिन सच है। भारत में अगर आप इसी दाम में किसी को बेचेने चले जाएं तो शायद वो आपको मारने को दौड़ेगा, लेकिन पश्चिमी देश एक-एक करके पूरब की प्राकृतिक चिकित्सा की तरफ अपना झुकाव लगातार दिखा रहे हैं और उसे नए रूप में ढालकर अपने बाजार में बेच भी रहे हैं।
इसे योनी नाम की एक चेक कंपनी 'नेचुरल रॉ टूथब्रश' के रूप में बेच रही है। इस कंपनी ने अपने प्रोडक्ट को कुछ इस तरह से पेश किया है कि जैसे वो हनुमान जी की तरह कोई संजीवनी बूटी ढूंढ़ लाए हैं।
हकीकत तो यह है कि मानव 7000 सालों से इस लकड़ी का इस्तेमाल करता आ रहा है। इस दातून को रखने के लिए कंपनी वाले प्लास्टिक का एक कंटेनर भी देते हैं। उनके तौर-तरीकों से लगता है कि दातून बेहद बेशकीमती चीज है और उसे नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।
इसे इस्तेमाल करते हुए लोग इस विज्ञापन में काफी हास्यास्पद लग रहे हैं। उनके लिए जैसे ये बिल्कुल नई खोज है। इसमें कोई शक नहीं कि इस दातून के ढेरों फायदे हैं, शायद तभी डाबर ने बहुत पहले इससे टूथपेस्ट बना लिया था। इस टूथपेस्ट की बात की जाए तो इसका स्वाद कुछ-कुछ सौंफ जैसा लगता है और इसकी खुशबू भी काफी अलग होती है। पश्चिमी देश एक-एक करके एशिया के खजाने को इस तरह से पेश कर रहे हैं जैसे कि ये उनकी खोज हों।
कभी हल्दी तो कभी तुलसी, अमेरिका ने बहुत बार भारत के मसालों और जड़ी-बूटियों को पेटेंट करवाने की कोशिश की है। इसके बाद असल में होता ये है कि केवल पेटेंट लेने वाला देश ही उस मसाले आदि को उगा सकता है और उसका व्यापार कर सकता है। बाबा रामदेव भी अपने एक विज्ञापन में कहते हैं कि पहले तो इन विदेशी कंपनियों ने भारतीय जड़ी बूटियों का मजाक उड़ाया और अब ये इन्हीं को वापस अपनाकर अपना बाजार चमका रही हैं।