ज्वालामुखी जब अपना रौद्र रूप धारण करता है तो आस-पास के लोगों को इलाका छोड़कर दूर पनाह लेनी पड़ती है। लेकिन इंडोनेशिया का कावा ईजेन ऐसा ज्वालामुखी है जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं और आएं भी क्यों न, ये ज्वालामुखी बहुत खास है। इस ज्वालामुखी से लाल धधकती लपटें नहीं निकलतीं, बल्कि गहरी नीली लपटें निकलती हैं। रात के समय इसे देखने का अपना ही मजा है। स्थानीय लोगों के अनुसार इस ज्वालामुखी से सल्फर निकलता है, जो रात में बेहद खूबसूरत लगता है। सल्फर एक किमती धातु है जिसका इस्तेमाल बहुत-सी चीजों को बनाने में होता है। इसे जावा, इंडोनेशिया की फैक्ट्रियों की लाइफलाइन माना जाता है। ज्वालामुखी में खास तरह की धातु से बने पाइप फिट किए गए हैं, जिनके जरिए सल्फर बाहर बहता है और ठंडा होकर सोने जैसा हो जाता है।
इन खादानों में काम करने वाले इसे 'डेविल्स गोल्ड' कहते हैं। इसकी वजह से यहां के लोगों का रोजगार चलता है। लेकिन इसे हासिल करने के लिए लोगों को भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है। 'डेविल्स गोल्ड' जमा करने के लिए मजदूरों का सफर आधी रात से शुरू होता है। मजदूर मोटर साइकिलों पर सवार होकर ज्वालामुखी के नजदीक पहुंचते हैं। फिर यहां से करीब 2800 मीटर ऊंचाई पर जाकर जमे हुए सल्फर को टुकड़ों में तोड़कर बांस की टोकरियों में कंधे पर लादकर नीचे लाते हैं।
कावा ईजेन दुनिया के उन चंद ज्वालामुखियों में से एक है, जहां आज भी सल्फर की खुदाई का काम, हाथों से ही किया जाता है। पहाड़ पर चढ़ाई के बाद सल्फर को टुकड़ों में तोड़ना जितना मुश्किल है, उससे ज्यादा मुश्किल है इन्हें नीचे उतार कर लाना। मजदूरों के कंधों पर उनके अपने शरीर से कहीं ज्यादा भार होता है। इस वजन की वजह से न सिर्फ इनके कंधों में तकलीफ होती है, बल्कि पैर और जोड़ों पर भी असर पड़ता है। साथ ही जब सल्फर हवा और पानी के साथ रिएक्ट करता है, तो उससे जहरीली गैस निकलती है जो हवा में मिलकर उसे खतरनाक बना देती है। मजदूर जितनी देर काम करते हैं उनकी आंखों से पानी बहता रहता है।
यहां काम करने वाले ज्यादातर मजदूरों को सांस की परेशानी होती है। उनका सांस लेना मुश्किल होता है और वो हर समय खांसते रहते हैं। कंधों पर बहुत ज्यादा वजन लादने के कारण वो छिल जाते हैं और कंधों पर धब्बे पड़ जाते हैं। बहुत से खदान मजदूर समय से पहले काम छोड़ कर अस्पताल की लाइनों में लगने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जबकि बहुत से मजदूर गरीबी की वजह से अपना इलाज ही नहीं करा पाते।
लेकिन जोखिम उठाने वाले इन मजदूरों को अपनी सेहत दांव पर लगाने के बाद भी गुजारे भर की मजदूरी भी नहीं मिल पाती। हर मजदूर को एक दिन की मजदूरी 10-15 अमरीकी डॉलर मिलती है।जावा के दूर दराज इलाकों में रोजगार के बहुत कम मौके हैं। ऐसे में इन मजदूरों के पास कोई और विकल्प नहीं है। पहले खेती में रोजगार की कुछ संभावना हुआ करती थीं। लेकिन, उसमें मजदूरी और भी कम थी। लिहाजा लोगों ने सेहत को दांव पर लगाकर भी खादान में मजदूरी करना ही ज्यादा बेहतर समझा।
दुनिया के अन्य हिस्सों में भी ज्वालामुखी वाले इलाकों में सल्फर की खुदाई का काम होता है। लेकिन वहां ये काम मशीनों से होता है। साथ ही वहां मजदूरों की सुरक्षा का बंदोबस्त भी रहता है। लेकिन ईजेन ज्वालामुखी के नजदीकी इलाकों में ऐसा इंतजाम नहीं है। यहां काम करने वाले मजदूरों का कहना है कि वो इतना पैसा कमाना चाहते हैं कि उनकी आने वाली नस्लों को इन खदानों में जिंदगी न गुजारनी पड़े।