भारत में आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं जिनका कोई ओर-छोर समझ में नहीं आता है। इन घटनाओं के बारे में सुन कर ही ये एहसास हो जाता है कि भारत के कुछ हिस्से कैसे अभी भी समय से बहुत पीछे चल रहे हैं। अधिकतर लोग भले ही धीरे-धीरे साक्षर हो रहे हैं लेकिन वो शिक्षित नहीं हैं। लोग जाति और धर्म में ऐसे जकड़े हुए हैं जैसे उनकी जिंदगी वो वही निर्धारित करते हों। इसका सबसे बड़ा उदाहरण वो जाति पंचायतें हैं जो एक से एक अजीबो-गरीब फरमान सुनाती रहती हैं और लोग भी उसे आंख मूंद कर मान जाते हैं।
जो कोई इनके खिलाफ जाने की कोशिश करता है उसे गांव या बिरादरी से निकाल दिए जाने की धमकी मिलती है। यही वजह होती है कि लोगों को न चाहते हुए भी इन्हें मानना पड़ता है। लोग इनके प्रति इतने ज्यादा वफादार होते हैं कि पुलिस के दखल दिए जाने पर भी नहीं मानते। उनके लिए देश की न्यायपालिका का कोई मतलब नहीं है क्योंकि उन्हें उसके बारे में कुछ पता ही नहीं है। हाल में में मध्य प्रदेश में एक पंचायत ने एक शर्मनाक फैसला दिया है जो चर्चा का विषय बन गया है।
मध्य प्रदेश के गुना जिले में तारापुर गांव की घटना सुर्खियों में है। ये एक तीन साल पुराना केस है। जगदीश बंजारा ने खेत में चरते हुए एक बछड़े पर पत्थर मार दिया था जिस वजह से उसकी मौत हो गई थी। तभी से गौ हत्या का आरोप लगाकर पूरे गांव ने उन्हें बेदखल कर दिया था। उन्हें गंगा में स्नान करना पड़ा जिससे उनके पाप धुले और पूरे गांव को खाना भी खिलाना पड़ा। लेकिन सजा मिलनी अभी बाकी थी।
पंचायत ने तीन साल पुराने इस मामले में एक नया फैसला सुनाया जिसे सुनकर किसी को भी गुस्सा आ सकता है लेकिन क्योंकि ये भारत है इसलिए यहां कुछ भी हो सकता है। एएनआई के मुताबिक़ जगदीश से कहा गया है कि सजा के तौर पर उनको अपनी पांच साल की बेटी की शादी गांव के ही एक 8 साल के लड़के से करनी होगी। इसके लिए ये लॉजिक दिया गया कि उस बछड़े की मौत के बाद से गांव में कोई भी अच्छा मौका या शादी-ब्याह नहीं पड़ा है। तो इस बुरे वक्त को खत्म करने के लिए ही जगदीश को ऐसा करना होगा। इसके लिए जगदीश से 1 लाख रुपए का दहेज भी मांगा गया।
ये घटना तब सामने आई जब बच्ची की मां ने इस फैसले के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। एस डी एम नीरज शर्मा ने बताया कि इस संबंध में जांच के आदेश दे दिए गए हैं और जांच टीम को गांव भेज दिया गया है। ऐसा कहा जा रहा है कि इसके बावजूद गांव वाले बच्ची की शादी करवाने पर तुले हुए हैं। इसके बाद एक बात दिमाग में जरूर आती है कि भला ये लोग इस तरह के बेतुके फैसलों को मानते ही क्यों हैं। यहां मसला गांव की संस्कृति, लोगों की आर्थिक स्थिति और शिक्षा की कमी का है।
गांव के अधिकतर लोग आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं। उनके पास थोड़ी जमीन होती है। वो अपना घर-बार छोड़कर कहीं और नहीं जा सकते क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं होता। अगर उन्हें गांव में रहना है तो सबकी बात माननी ही पड़ती है। आम लोग पुलिस और कोर्ट कचहरी से इतना घबराते हैं कि वो इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहते। जरूरत है कि प्रशासन इस संबंध में लोगों को जागरूक करने का काम करे और लोगों में ऐसी पंचायतों में हिस्सा न लेने को कहे। ऐसे अजीबो-गरीब फैसले सुनाने वाले लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिलती चाहिए।
ऐसे लोगों में कानून के प्रति डर पैदा करने की जरूरत है। अगर इसी तरह चलता रहा तो न जाने कितने मासूम लोग इन फैसलों के शिकार बनेंगे। शिक्षा का प्रचार-प्रसार करके ही लोगों में जागरूकता फैलाई जा सकती है। एक तरफ भारत मंगल पर पहुंचने को तैयार है तो दूसरी तरफ लोग अपने अधिकार तक नहीं जानते।
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