जांबाज विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान, हिंदुस्तान की सरजमीं पर वापस लौट चुके हैं। उन्होंने अपने मिग-21 से न सिर्फ पाकिस्तान के जंगी विमान एफ-16 से लोहा लिया बल्कि उसे मार भी गिराया। लेकिन, इस लड़ाई में उनका मिग विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और वो पाक अधिकृत कश्मीर के भीतर में जा गिरा था। फिलहाल पूरा देश इस बात की खुशी मना रहा है कि देश का वीर जवान सकुशल देश वापस लौट आया है। बात जब आईएएफ पायलट की हो रही है तो आपको याद दिला दें कि इससे पहले भी ऐसा हुआ है जब मिग-21 के दुर्घटनाग्रस्त होने की वजह से जवान शहीद हुए हैं। जिनमें से एक जवान के माता-पिता ने इंसाफ के लिए आवाज उठाई और अपने बेटे की याद में देश के युवाओं को पायलट बना रहे हैं।
साल 2001 में राजस्थान के सूतागढ़ में भारतीय वायुसेना का 'मिग-21' दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस दुर्घटना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट अभिजीत गडगिल शहीद हो गए थे। इस घटना से पायलट का परिवार सदमे में था, लेकिन अभिजीत के माता-पिता को उस वक्त बड़ा झटका लगा जब उनके बेटे को ही इस दुर्घटना के लिए दोषी ठहरा दिया गया।
दरअसल, उन दिनों 'मिग-21' लगातार दुर्घटनाग्रस्त हो रहे थे। बावजूद इसके भारतीय वायुसेना लगातार इन विमानों का इस्तेमाल कर रही थी। जिस कारण इन फाइटर जेट्स को 'फ्लाइंग कॉफिन' तक कहा जाने लगा था। 27 वर्षीय जवान बेटे को खो के बाद रिटायर्ड कैप्टन अनिल गडगिल और कविता गडगिल ने न केवल अपने बेटे के लिए, बल्कि उन सभी पायलटों के लिए लड़ने का फैसला किया, जिन्होंने विमान में तकनीकी खराबी के चलते अपनी जान गंवा दी थी।
बेटे के लिए न्याय की मांग करते हुए दंपति ने तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से भी मुलाकात की थी। जिसके बाद राष्ट्रपति ने उन्हें आश्वस्त किया कि 'मिग-21' उड़ान भरने वाले पायलटों को सुरक्षा प्रदान की जाएगी। अनिल और कविता के इन्हीं प्रयासों के चलते आखिरकार भारतीय वायुसेना ने एक पत्र भेजकर स्वीकार किया कि 'मिग-21' में तकनीकी खराबी के कारण ही फ्लाइट लेफ्टिनेंट अभिजीत गडगिल शहीद हुए थे।
अपने बेटे को न्याय दिलाने के बाद साल 2006 में रिटायर्ड कैप्टन अनिल गडगिल ने वैज्ञानिक डॉ. आरए माशेलकर और पत्रकार कुमार केतकर के साथ मिलकर पुणे में खडकवासला बांध के पास 'जीत एयरोस्पेस इंस्टीट्यूट' (जेएआई) की स्थापना की। ताकि यहां पर भारतीय वायुसेना में पायलट बनने का सपना देखने वाले युवाओं को प्रशिक्षित किया जा सके। युवा पायलटों को प्रशिक्षित करने के लिए उन्होंने एक मोबाइल ट्विन-जेट सिम्युलेटर डिजाइन किया गया है। अनिल और कविता ने इस नेक प्रयास के लिए अपनी जिंदगी भर की पूंजी लगा दी है। इस पूरी प्रकिया में करीब 2 करोड़ रुपये का खर्चा आया।