Home Panchayat Drought Hit Maharashtra Village Looks To Water Wives To Quench Thirst

महाराष्ट्र के इस गांव मर्द करते हैं कई शादियां ताकि औरत पानी ढो सके!

shweta pandey/firkee.in Updated Tue, 29 Nov 2016 10:22 AM IST
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कई शादियां करने का हक़ बस आदमी को ही मिला है क्या? क्या औरत का जन्म बस पानी ढोने और खाना बनाने के लिए ही होता है?  शायद यही कारण है कि आज की जनरेशन खास तौर से लड़कियां शादी ही नहीं करना चाहती हैं। 'जीने के लिए शादी करना बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं है' इस बात की पुष्टि करने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। अरब में लोग अपने धन और प्रभुत्त्व को दिखाने के लिए एक से ज़्यादा शादियां करते हैं, तो इस्लाम में लोग परम्परा को रखते हुए करते हैं।

आदिवासी अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए बहुविवाह करते हैं। लेकिन महाराष्ट्र में एक ऐसी जगह है, जहां लोग एक से ज़्यादा शादी करते हैं, ताकि घर में पानी की कमी न हो। महाराष्ट्र के ठाणे जिले में एक गांव है डेंगलमल। ये गांव महाराष्ट्र के सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में शामिल है। 

सबसे बड़ी बात तो ये कि जिस देश की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में से है। उस देश में आज भी सूखा से प्रभावित क्षेत्र है। ख़ैर ये वही देश है जहां टीवी में विज्ञापन करके लोगों को बताना पड़ता है कि शौच कहां जाना है। उस देश में सूखा होना भी आम बात है, लेकिन पानी भरवाने के लिए कई शादियां करना ये ग़लत बात है।

महाराष्ट्र के इस गांव में पानी पीने का एक ही स्त्रोत है जो कि गांव से दूर पहाड़ियों के नीचे है। वहां से पानी ले आने में करीब 10 घंटे लगते हैं। इस वजह से यहां के मर्द एक से अधिक शादियां करते हैं। ताकि एक पत्नी घर का काम करे दूसरी पानी भरे, बच्चे भी पैदा करे और बच्चों को भी सम्हाले। शुरूआत में तो इन्हे कई शादियां करना एक मजबूरी की तरह लगा होगा लेकिन अब ये इनका शौक बन चुका है। अगर चाहें तो मर्द खुद भी पानी भरने जा सकते हैं।

किसी संविधान में यह नहीं लिखा गया है कि 'पानी भरना औरत का जन्म सिद्ध अधिकार है'।इतनी घनी आबादी वाले इस देश में आज भी कोई गांव बस सूखे से प्रभावित होकर कई शादियां करता है तो उस देश के हर नागरिक के लिए यह बात शर्मनाक है। 

सखाराम भगत की तीन शादियां हो चुकी हैं। तीनों पत्नियां एक ही घर में साथ-साथ रहती हैं। इनकी पहली पत्नी से छह बच्चे हैं। अगर इनकी पत्नी का सारा समय बच्चों की देखभाल और घर के अन्य कामों में ही बीत जाए, तो पानी कैसे आएगा? इसी कारण से सखाराम ने दूसरी शादी की। एक औरत 15 लीटर पानी ही ला पाती है, जो 9 लोगों के परिवार में कम पड़ जाता था, इस कारण सखाराम ने तीसरी शादी भी कर ली। मतलब कुल मिलाकर देखा जाए तो 'डिजिटल इंडिया' के जमाने में यहां औरतें मशीन की तरह हैं। पानी भी ढोती हैं बच्चे भी पैदा करती हैं और घर भी सम्हालती हैं।

हांलाकि कई शादियां करने से कई तलाकशुदा औरतों को एक औरत होने का दर्ज़ा मिला है। उन्हे नया परिवार मिला है। उनके ख़ुद के समाज में सम्मान मिला है। जिन औरतों के पति छोड़ दिए या उनका तलाक हो गया उनकी शादियां यहां आसानी से हो जाती हैं। लेकिन ऐसी शादी का क्या फायदा जहां औरत को एक मशीन बना के रखा जाता हो। देश के लोगों की ये मानसिकता आज भी बनी हुई है कि पत्नी ही बस घर का काम करेगी। इस तरह की मानसिकता पह भी बैन लग जाए तब जाकर देश कहीं सुधरेगा। 

खैर, विकास की कहानी गढ़ने वाली सरकार को अगर देश का ये पिछड़ापन दिखाई नहीं देता, तो डिजिटल इंडिया और ऐसी सारी योजनायें बेकार हैं। पानी के लिए अगर ऐसे ही शादी करते रहेंगे तो पानी तो आ ही जाएगा, साथ ही साथ जनसंख्या में भी बाढ़ आ जाएगी... है कि नहीं? 

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