Home Panchayat History Of Holi In Uttar Pradesh

होली और उत्तर प्रदेश का एक बहुत पुराना रिश्ता है!

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Wed, 01 Mar 2017 02:23 PM IST
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s - फोटो : google
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उत्तर प्रदेश में चुनाव लगभग ख़त्म हो गए हैं और जल्द ही चुनाव के परिणाम भी आने वाले हैं। प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि इन परिणामों के बाद पूरा उत्तर प्रदेश होली के रंग में रंग जाएगा। ज़ाहिर है कि वो अपनी जीत की होली की बात कर रहे थे। अब कौन जीतेगा ये तो वक़्त ही बताएगा लेकिन एक बात तो तय है कि इस होली से पहले प्रदेश का माहौल थोड़ा खराब ज़रूर हुआ है।

इसका कारण चुनाव ही हैं। माहौल भले ही खराब न हुआ हो लेकिन एक बात तो तय है कि लोगों के दिमाग में टेंशन ज़रूर पैदा हुई है। लेकिन जब होली की बात हो रही है तो उत्तर प्रदेश की होली शायद दुनिया भर में मशहूर है। इस दिन क्या हिन्दू क्या मुसलमान, हर कोई इस त्यौहार को ऐसे मनाता है जैसे उसका मकसद सिर्फ़ प्यार फैलाना ही हो।
 

ब्रज की लट्ठ मार होली के बारे में तो आप सभी जानते होंगे लेकिन क्या आप जानते हैं कि मथुरा के पास एक ऐसी जगह भी है जहां मुसलमान भाई भी हिन्दुओं के साथ मिलकर होली खेलते हैं? मथुरा के भरतपुर नामक गांव में मुसलमान चौपाई गाते हैं और नाचते हुए गांव में होली मनाते हैं। इस जगह को राधा नगरी कहा जाता है और यहां के लोग सदियों से ऐसे ही होली खेलते आ रहे हैं। 

मान्यता है कि भरतपुर जिले के काम्यवन में भोजन थाली नामक स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण गाय चराने जाया करते थे। बरसाना से श्री राधा रानी उनके लिए खाना लेकर जाती थी। रास्ते में नदी के किनारे बैठकर वो एक-दूसरे से मिला करते थे। यहां भगवान ने राधा के साथ रंगों की होली भी खेली थी। तभी से इस गांव का नाम राधानगरी पड़ा।
 

अगर हम लखनऊ की तरफ़ बढ़ें तो ये शहर नवाबों के समय से ही अपनी गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए मशहूर है। दुनिया में चाहे कहीं भी दो समुदाय विशेष के लोगों के बीच लड़ाई हो जाए लेकिन इस शहर पर उसका असर कतई नहीं होता है। नवाब आसफ्फुद्दौला ने खुद इस शहर में होली खेलने की प्रथा को मुसलामानों के बीच मशहूर करवाया था। वो खुद भी बड़े मन से होली खेला करते थे। आज इतने सालों बाद भी ये प्रथा चलती आ रही है। 

यहां हर साल चौक इलाके में होली की बारात निकलती है। मुसलमान भी इसमें शामिल होते हैं और हिंदुओं के साथ गुझिया और पापड़ का स्वाद चखते हैं। ये प्रथा यहां नवाबों के समय से ही प्रचलित है। नवाब तो चले गए लेकिन वो अपने पीछे सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने का एक मज़बूत ज़रिया छोड़ गए।
 

वहीं पड़ोसी शहर कानपुर की भी कुछ यही कहानी है। यहां पर भी मुसलमान व्यापारी हर साल होलिका दहन के लिए होलिका सजाते हैं और फिर इस कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा भी लेते हैं। ऐसा करने के पीछे सिर्फ़ त्यौहार मनाने का ही मकसद नहीं है बल्कि हर वर्ष यहां होलिका के साथ एक ख़ास मकसद को जोड़ दिया जाता है। ऐसे में होलिका दहन के साथ 'गुरैया बचाओ' और 'बेटी पढ़ाओ' जैसे सन्देश जुड़े रहते हैं।

कुलमिलाकर बात ये है कि चुनाव के सिलसिले में लोग चाहे जितनी भी नफ़रत फैलाने की कोशिश क्यों न करें, यहां लोग हर बार नेताओं के विष भरे भाषणों को गलत साबित कर देते हैं। उम्मीद है हर बार की तरह इस बार भी उत्तर प्रदेश के हर गांव और शहर की होली बेहद रंगीन होगी और लोगों को एक दूसरे के और ज़्यादा करीब लाने का काम करेगी। 
 

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