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व्यंग्यकार के पी सक्सेना बता रहे हैं, ‘चोरों का कोड ऑफ कंडक्ट’

Updated Wed, 15 Nov 2017 03:04 PM IST
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K P Saxena
K P Saxena
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विस्तार

महान व्यंग्यकार के पी सक्सेना की बारीक नजर वो देख लेती थी जो आम आदमी आसानी से नहीं देख सकता है। 'चोरों का कोड ऑफ कंडक्ट 'खुद चोरी करने वालों को नहीं पता होगा। उन्होंने ये लेख 20 अक्टूबर 2013 को लिखा था। जिसे हू-ब-हू वैसा ही प्रस्तुत किया जा रहा है।  
                                                            

खुदा जाने तफ्तीश हुई कि न हुई, मगर मिर्जा के घर से चोरी गए दो हंडे और एक बेहद बड़ा पानदान बरामद न हुआ। मिर्जा तोंद पर छपकियां मार-मारकर ऐन-गैन हुए जा रहे थे। बोले-लल्ला, यह जाने बेगम को  40 साल पहले क्या हुआ था कि दहेज में हंडे-परातें ले आईं और दिमाग वहीं छोड़ आर्ईं। अब कोई पूछे भला कि इस कमर तोड़ महंगाई के दौर में चार अदद शलजमें पकाने के तईं कोई बारातभर का हंडा यूज करेगा। अच्छा हुआ चोर ले गए। अब मेरे पीछे पड़ी है कि पुलिस से कह-सुनकर मेरे मायके के हंडे ढूंढ निकलवाओ। वही मसला कि तेली रोए तेल को, तंबोली रोए चूने को। मुल्क से तिड़ी हो चुकी अरबों-खरबों की रकम से चवन्नी वापस न मिल सकी, इनका पानदान वापस होगा। पानदान भी मरा मनों वजन का गोया बरतानिया की तोप धरी हो। कहते हैं हमारे मरहूम खुसर (ससुर) साहब इस पानदान को खच्चरों पर लदवाकर लाए थे। खुदा जाने चोर कौन से ट्रक में ले गए होंगे। कहते हैं कि नवाबी दौर में उस पानदान में छह सेर कत्था एक बार में घुलता था। वाह रे मेरी लखनऊ की अजमत। वह जमाना ही इल्ले-तिल्ले हो गया....।

अपनी बेकाबू तोंद को कुर्ते से ढांपने की नाकाम कोशिश करते हुए मिर्जा बोले-लो और सुनो लल्ला। इधर इंडिया में लखनऊ से मिर्जा के हंडे चोरी हुए, उधर अगादीर से साबिक (भूतपूर्व) खस्ताहाल महारानी का इकलौता हीरों का हार तिड़ी हो गया। खुदा जाने यह अगादीर किस मुल्क में है, मगर चोरों का एक कोड ऑफ कंडक्ट होता है। मिर्जा हो या महारानी, सबको एक आंख से देखते हैं। माल से मतलब, माल हो या हंडे, हाथ साफ होना चाहिए। मैं इनकी ईमानदारी का कायल हूं। अमीर-गरीब में फर्क नहीं करते। मेन चीज माल है। मरदूद नेता थोड़े ही हैं कि जिस पार्टी में थोड़ी हरी घास ज्यादा दिखी उधर ही लुढ़क लिए। जो पार्टी जरा पतली दिखी उसे लात मार गए। चोर की निगाह में सब बराबर। चड्ढी मिले या चेस्टर, ले भागने से मतलब। जहां जैसा हाथ लगे लपेट लो।

अपनी बकची सी शॉर्ट दाढ़ी में कंघी घुमाकर मिर्जा बोले-अपने ही मुल्क में ऊंचे दर्जे के चोरोंं को ले लो। अरबों-खरबों का माल तोंद में दाखिल करने वालों का एक उसूल है। टेलीफोन की दलाली से आए या बिल्डिंग की। कोयले से आए या क्रिकेट से। चारे से आए या चंडू अफीम से। कफन से आए या कॉफिन से। गड्डियां समेटों।चोरों का यह वन प्वाइंट फॉर्मूला मुझे बेहद पसंद है। अब मियां, आपकी किसी पुलिस वाले से साठगांठ हो तो बेगम के हंडे और पानदान वापस दिलवा दो। चाय-पानी का खर्च मेरे जिम्मे। लोगों का कहना है कि ऐसी कोई चोरी नहीं जिसकी डोर का दूसरा सिरा पुलिस के हाथ में न हो। गुनताड़ा लगाना आपका काम है। मैं पानदान और हंडों की वापसी का इंतजार करूंगा। थैंक यू, लल्ला। 

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