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7 महीने की भांजी नहीं रही, बीमारी ने उसकी जान ले ली। जिस सरकारी अस्पताल में मासूम ने आखिरी सांस ली, उसकी एंबुलेंस उस नन्हीं जान की लाश का भार न ढो सकी, मजबूर मामा ने बच्ची की लाश को एक हाथ से पकड़कर कंधे से लगाया और एक हाथ साइकिल का हैंडल साधा और ले गया। जब ऐसे ही दिन देखना है तो करोड़ों के खर्च से शुरू की गई एंबुलेंस की व्यवस्था सही है या व्यर्थ? खैर हम और आप यह फैसला भले ही न कर पाएं लेकिन इतना तय है कि इस धर्मसंकट का फैसला ऊपर वाला तो कर ही देगा।
बेहद चौंकाने वाला मामला यूपी के कौशांबी का है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अनंत कुमार नाम के शख्स की 7 महीने की बच्ची पूनम को उल्टी-दस्त की शिकायत होने पर उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अनंतकुमार को बच्ची के इलाज के लिए पैसों का इंतजाम करना था इसलिए उसने बच्ची की देखभाल की जिम्मेदारी अपने साले बृजमोहन को सौंपी और पैसों की खातिर इलाहाबाद के लिए रवाना हो गया। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। यमराज को भी नन्हीं बच्ची पर तरस नहीं आया और बाद में इंसानी जाहिलों को भी!
बृजमोहन की मानें तो उन्होंने कई दफा एंबिलेंस के लिए फोन किया लेकिन उन्हें मायूसी हाथ लगी। एंबुलेंस मुहैया नहीं कराई गई। मामला मीडिया में आने के बाद अस्पताल के सीएमओ एस.के. उपाध्याय अब जांच कराने की बात कर रहे हैं।
इस देश में ही ऐसा हो सकता है कि कभी पत्नी की लाश पति अपने कंधे पर मीलों तक ढोता है... दाना मांझी तो याद ही होगा आपको। अभी हाल ही में बिहार में एक शख्स अपनी पत्नी की लाश मोटरसाइकिल पर ढोकर ले गया था। ऐसी घटनाएं झकझोरने वाली है और इन्हें देखकर लगता है कि सरकार को सभी सरकारी अस्पतालों में मनावता का पाठ सिखाने के लिए एक मुहिम चलानी चाहिए। आप क्या कहते हैं?