सऊदी अरब में मंगलवार को ईद का चांद दिख गया था, जिसके बाद बुधवार को भारत में ईद-उल-फितर मनाया जा रहा है। वैसे तो रमजान का ये पाक महीना 30 दिनों तक चलता है, लेकिन इस बार यह सिर्फ 29 दिन का ही है। पिछले साल भारत में 16 जून को ईद मनाई गई थी।
ये तो सब जानते हैं कि चांद के दीदार होने पर ही ईद मनाई जाती है। मुस्लिम समुदाय के लोग इस त्योहार को बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि रमजान के महीने में ही पाक कुरान इस धरती पर आई थी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर चांद देखकर ही ईद क्यों मनाई जाती है और सबसे पहले यह त्योहार कब मनाया गया था?
कहते हैं कि ईद अल्लाह से इनाम लेने का दिन होता है। यह त्योहार मनाने से पहले एक परंपरा निभाई जाती है, जिसे फितरा कहा जाता है। इसके तहत ईद मनाने वाले हर मुस्लिम को अपने पास से गरीबों को कुछ अनाज देना जरूरी होता है, जिससे वह भी खुशी से ईद मना सके।
ईद संयम और शांति का त्योहार है, लेकिन कुछ नियम भी हैं जिनका पालन इस दिन करना जरूरी होता है। ईद वाले दिन की शुरुआत सुबह जल्दी उठकर फजर की नमाज अदा करने से होती है। उसके बाद खुद की सफाई जैसे, गुस्ल और मिस्वाक करना। इसके बाद साफ कपड़े पहनना, फिर उन पर इत्र लगाना और कुछ खाकर ईदगाह जाना। नमाज से पहले फिकरा करना भी जरूरी होता है।
ईद की नमाज खुले में ही अदा की जाती है। सबसे खास बात ये है कि ईदगाह आने और जाने के लिए अलग-अलग रास्तों का इस्तेमाल किया जाता है।
कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि ईद के मौके पर नये कपड़े ही पहनने चाहिए। हालांकि यह जरूरी नहीं है। ईद पर साफ कपड़े पहनने जरूरी होते हैं, नये नहीं। साफ भी वो जो सबसे साफ हों, नये कपड़े पहनने की कोई बाध्यता नहीं होती है। इसी तरह कपड़ों पर इत्र लगाना भी जरूरी नहीं होता है।
ईद का चांद से बड़ा गहरा संबंध है। ईद-उल-फितर हिजरी कैलेंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाई जाती है और इस कैलेंडर में नया महीना चांद देखकर ही शुरू होता है। ईद भी रमजान के बाद नये महीने की शुरुआत के रूप में मनाई जाती है, जिसे शव्वाल कहा जाता है। जब तक चांद न दिखे, रमजान खत्म नहीं होता और शव्वाल शुरू नहीं हो सकता। वैसे इसका संबंध एक ऐतिहासिक घटना से भी है। कहा जाता है कि इसी दिन हजरत मुहम्मद मक्का शहर से मदीना के लिए निकले थे।
इस्लाम में माना जाता है कि पहली ईद हजरत मुहम्मद पैगंबर ने सन् 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद मनाई थी। यह कुछ-कुछ हिंदुओं के दीपावली की तरह है, जब भगवान राम के लंका विजय के बाद पहली बार दीपोत्सव की शुरुआत हुई थी, जो बाद में दीपावली के रूप में मनाया जाने लगा।