जब तुम घर जाना तो उन्हें हमारे बारे में बताना और कहना कि 'तुम्हारे आने वाले कल के लिए हमने अपना आज कुर्बान कर दिया' यह पक्तियां कोहिमा के कोहिमा युद्ध स्मारक पर पत्थरों पर खुदी हुई हैं जो इस स्मारक में प्रवेश करते ही पर्यटकों को दिख जाएंगी। यह पंक्तियां कोहिमा के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि देकर लिखी गई है।
1947 में देश को अंग्रजों से आजादी मिल गई थी, तभी से ही पूरे देश पर भारत सरकार का ही राज है। भारतीय संविधान हमें देश में कहीं भी आने-जाने और बसने की आजादी प्रदान करता है। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि देश में कुछ जगह ऐसी भी हैं, जहां आजादी के 72 साल बाद भी ब्रिटिश सरकार की हुकूमत चलती है।
हम ब्रिटिश एंबेसी की बात नहीं कर रहे, जहां अंतरराष्ट्रीय कानून के चलते कुछ भी करने के लिए ब्रिटिश सरकार की अनुमति लेनी पड़ती है। हम बात कर रहे हैं उस जगह की, जो भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में होते हुए भी नहीं है।
ये जगह है नागालैंड की राजधानी कोहिमा में। इसे पूरी दुनिया में कोहिमा वॉर सिमेट्री के नाम से जाना जाता है। यहां पर दूसरे विश्वयुद्ध में शहीद हुए 2700 ब्रिटिश सैनिकों की कब्र हैं। यहीं पर चिंडविन नदी के किनारे जापान की सेना ने आजाद हिंद फौज के साथ मिलकर और ब्रिटिश सरकार पर हमला किया था।
इसे इतिहास में कोहिमा युद्ध के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिश सरकार ने अपने सैनिकों की याद में ये स्मारक बनवाया था, चूंकी उस समय दुनिया के अधिकतर राज्यों में ब्रिटेन की हुक़ूमत थी इसलिए ऐसे कई स्मारक दूसरे देशों में भी हैं। इनमें से ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और भारत का नाम भी शामिल है।
इन सभी स्मारकों (कब्रगाहों) की देख-रेख कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव कमीशन करता है, इसलिए ऐसी जगहों पर भारतीयों को फोटो खींचने से लेकर रख-रखाव के काम तक को करने के लिए भी ब्रिटिश सरकार से इजाजत लेनी पड़ती है।
ऐसी जगहों को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने का आग्रह करने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस संस्था के पदाधिकारी तमाल सान्याल, यहां की सरकार से बात कर रहे हैं, क्योंकि पिछले साल इस सिमेट्री के पास की सड़क को चौड़ा करने का प्रस्ताव दिया गया था, जिसे ब्रिटिश सरकार ने खारिज कर दिया था।
कोहिमा की लड़ाई के दौरान मेजर ऐजरा रोड सहित छह सैनिक एक टैंक में सवार थे।चारों तरफ से फायरिंग हो रही थी।टैंक पहाड़ी पर चढ़ गया।इससे पहले कि वे आगे बढ़ते, टैंक पीछे की ओर लुढ़क गया।यह घटना छह मई 1944 की है।जिस जगह पर वह टैंक गिरा, वहां किसी वस्तु के बोझ से मशीन गन का ट्रिगर दब गया।मशीन गन घूमते हुए फायरिंग करती रही।इसी कवर फायर की मदद से टैंक में मौजूद सभी सैनिक सुरक्षित बाहर निकल गए।