भारत के इस मंदिर में होते हैं साक्षात् भगवान के दर्शन, पूरी दुनिया देखने पहुंचती है चमत्कार
फिरकी टीम, नई दिल्ली
Published by:
Pankhuri Singh
Updated Thu, 20 Dec 2018 02:26 PM IST
संस्कृति और विरासत से संबंधित भारत में निर्मित हर ईमारत या मंदिर प्रभावित नहीं कर पाता है।लेकिन भारत में एक ऐसा भी अद्भुत मंदिर है जिसके गर्भगृह में स्थापित सूर्य भगवान को आप साक्षात देख सकते हैं।भारत के इस प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर को यूनेस्को ने विश्व-धरोहर के रूप में संजोया है।कोणार्क का अर्थ है कोना और आर्क शब्द सूर्य से लिया गया है। यह पूर्वोत्तर से जुड़े पुरी या चक्रक्षेत्र, ओडिशा में स्थित है।
यह भारत का एकमात्र भव्य सूर्य मंदिर है।चूंकि सूर्य स्वयं साक्षात देव हैं, जिनके बिना इस सृष्टि का संचालन नहीं हो सकता।इस मंदिर में स्थापित भगवान के हम साक्षात दर्शन करते हैं। प्राचीन वास्तुकला की विशेषताओं से भरपूर ओडिशा में स्थित कोणार्क का सूर्य मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहरों में से एक स्थल है।
कहा जाता है की सूर्य मन्दिर के शिखर पर 52 टन का चुम्बकीय पत्थर लगा था। मंदिर इस चुंबक की वजह से समुद्र की कठोर परिस्थितियों को सहन कर पाता था।पहले, मुख्य चुंबक के साथ अन्य चुंबकों की अनूठी व्यवस्था से मंदिर की मुख्य मूर्ति हवा में तैरती रहती थी। इसके प्रभाव से, कोणार्क के समुद्र से गुजरने वाले जहाज इस ओर खिंचे चले आते हैं, जिससे उन्हें भारी क्षति हो जाती है इसलिए अंग्रेज इस पत्थर को निकाल ले गये। इस पत्थर के कारण दीवारों के सभी पत्थर संतुलन में थे। इसके हटने के कारण, मंदिर की दीवारों का संतुलन खो गया और वे गिर पड़ीं।
गंगा साम्राज्य के सबसे बेहतरीन राजा नरसिंहदेवा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।13 वीं शताब्दी में 1200 से अधिक कलाकारों की मदद से इस भव्य मंदिर का निर्माण हुआ साथ ही इस बनने में कुल 12 साल का लंबा समय लगा था।
मंदिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं, बाल्यावस्था-उदित सूर्य- जिसकी ऊंचाई 8 फीट है, युवावस्था जिसे मध्याह्न सूर्य कहा जाता है, इसकी ऊंचाई 9.5 फीट है, जबकि तीसरी अवस्था है प्रौढ़ावस्था, जिसे अस्त सूर्य भी कहा जाता है, जिसकी ऊंचाई 3.5 फीट है।
इस मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है. रथ में बारह जोड़े विशाल पहिए लगे हैं और इसे सात शक्तिशाली घोड़े तेजी से खींच रहे हैं। 7 घोड़े सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं।12 जोड़ी पहिए दिन के चौबीस घंटे दर्शाते हैं, वहीं इनमें लगी 8 तीलियां दिन के आठों प्रहर की प्रतीक स्वरूप हैं। कुछ लोगों का मानना है कि 12 जोड़ी पहिए साल के बारह महीनों को दर्शाते हैं।पूरे मंदिर में पत्थरों पर कई विषयों और दृश्यों पर मूर्तियां बनाई गई हैं।
कोणार्क मंदिर समुद्र तट पर बनाया गया था लेकिन अब समुद्र पीछे चला गया है और मंदिर अब समुद्र तट से थोड़ी दूरी पर है। इसे काले रंग की वजह से "ब्लैक पगोडा" कहा जाता है और ओडिशा के प्राचीन नाविकों द्वारा नौसेना के आकर्षण के रूप में उपयोग किया जाता था।
कोणार्क का मुख्य आकर्षण मंदिर के आधार पर स्थित 12 जोड़े पहिये हैं। ये पहिये सामान्य पहियों नहीं हैं बल्कि समय दिखाते हैं पहियों की डंडियां एक सूर्यघड़ी बनाती हैं। आप इन डंडियों द्वारा छाया को देखकर दिन के सही समय का अंदाजा लगा सकते हैं।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस मंदिर की कहानी सीधे भगवान श्री कृष्ण से जुड़ती है। दरअसल, यह मंदिर सूर्यदेव (अर्क) को समर्पित था, जिन्हें स्थानीय लोग बिरंचि-नारायण कहते थे। यह जिस क्षेत्र में स्थित था, उसे अर्क-क्षेत्र या पद्म-क्षेत्र कहा जाता था।
मंदिर अपनी विशालता, निर्माण, वास्तु और मूर्तिकला के समन्वय के लिए अद्वितीय है और उड़ीसा की वास्तु और मूर्तिकलाओं की चरम सीमा प्रदर्शित करता है।एक शब्द में यह भारतीय स्थापत्य की महत्तम विभूतियों में है।