विस्तार
सत्य और अहिंसा के दम पर पूरे राष्ट्र को एकजुट करने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पुत्र समान थे पंडित जवाहर लाल नेहरू। नेहरू परिवार पर गांधी के विचारों की छाप उनका सरनेम बनकर उभरी। लेकिन नेहरू के ही नाम पर देश के शीर्ष विश्वविद्यालयों में से एक दिल्ली के जेएनयू में अब देशभक्ति के लिए तोप मांगी जा रही है!
विश्वविद्यालय में करगिल दिवस के मौके पर कार्यक्रम हुआ, जिसमें केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और वीके सिंह भी पहुंचे थे। कुलपति साहब जगदीश कुमार छात्रों में देश भक्ति की अलख जगा हे थे। मंत्री जी की तरफ निगाहें इनायत करते हुए कहने लगे कि हमें विश्वविद्यालय के प्रांगण में एक टैंक रखना चाहिए, ताकि छात्रों में देश भक्ति स्थापित की जा सके।
वीसी साहब के इस बयान को इतिहास से जोड़े तो मामला और गंभीर हो जाता है। इस हिसाब से 1857 की क्रांति में बंदूक में गोलियों की जगह अगर तोपों में बारुद भरने का मसला होता तो हमें 1947 तक का इंतजार नहीं करना पड़ता। क्योंकि तोपों से देशभक्ति ज्यादा पैदा होती और आजादी मिलने में इतना वक्त नहीं लगता। वीसी साहब के बयान को ही सच मान लें तो महात्मा गांधी का सत्य और अंहिसा का मार्ग उतना वजनदार नहीं था, जितना वजन तोपों की देशभक्ति में होता है।
जेएनयू के कुलपति के इस बयान ने एक नए शोध के विषय को जन्म दे दिया, कि आखिर देशभक्ति पैदा कहां से होती है, कैसे होती है, क्या तोपों और बंदूकों की नुमाईश से लोगों के दिलों में देश के प्रति भक्ति की भावना पैदा की जा सकेगी? फिलहाल तो ये शोध तोप की नली में ही फंसा हुआ है।