विस्तार
बेंगलुरु में पिछले दिनों जो घटना घटी उसकी भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में भारी निंदा हुई। मास मोलेस्टेशन की इस घटना ने देश की सुरक्षा व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए। इसके अलावा उन लोगों के लिए भी ये शर्म की बात है जो उस समय वहां मौजूद थे लेकिन बस मूक दर्शक बने रहे। अच्छे लोग अक्सर ही बुरे लोगों से डर जाते हैं, ऐसे में एक बुरा व्यक्ति भी भीड़ पर भारी पड़ जाता है।
आए दिन ऐसे अपराध देखने में आते हैं जहां आस-पास मौजूद लोगों ने पीड़ित व्यक्ति की मदद करने की कोशिश नहीं की। ये बेहद शर्म की बात है। हमें आत्ममंथन करने की ज़रुरत है कि हम महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों को अपने स्तर पर कैसे रोक सकते हैं। कुछ दिनों पहले भी बेंगलुरु से एक बेहद डरा देने वाली घटना सामने आई थी। लेकिन इस बार ये लड़की हिम्मत दिखाते हुए अपराधी के चंगुल से बच निकली।
ये घटना जुलाई 2015 की है लेकिन हमें इस घटना से सबक लेना चाहिए। नेहा अग्रवाल ऑटो से बीटीएम सर्किल की तरफ़ ऑटो से जा रही थीं। तभी उन्हें अचानक लगा कि ऑटो के पिछले हिस्से में कोई है। उन्होंने पहले तो कोई हरकत नहीं की लेकिन फिर मौका पाते ही वो चलते ऑटो से कूद गईं। पीछे से आती एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी लेकिन क्योंकि कार धीमी चल रही थी इसलिए उन्हें चोट नहीं आई।
ये सब होता देख ट्रैफिक रुक गया और पास खड़ा एक पुलिस वाला भी वहां आ गया। नेहा डर से कांप रही थीं और उन्होंने सिपाही से ऑटो की पिछली सीट चेक करने को कहा। जब उसे चेक किया गया तो पता चला कि वहां एक लड़का चाकू लिए बैठा है। पहले तो उसने पुलिस वाले पर भी हमला कर दिया लेकिन भीड़ ने उसपर काबू पा लिया।
इसके बाद नेहा दूसरा ऑटो करके घर चली गईं। ये अपनी तरह की कोई अकेली घटना नहीं है। नेहा को ये तो पता नहीं चल पाया कि उस व्यक्ति का इरादा आखिर क्या था। इसके बाद उन्होंने अपने एफ़बी पोस्ट में बेंगलुरु पुलिस को धन्यवाद दिया।
अब सोचने वाली बात ये है कि अगर समय रहते नेहा ऑटो से बाहर न आतीं तो उनके साथ क्या होता? इसके अलावा वो बुरी तरह घायल भी हो सकती थीं या उन्हें अपनी जान भी गंवानी पड़ सकती थी। क्या उस ऑटो चालाक की कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती है?
जब भी हम किसी की सेवा लेते हैं, फिर चाहे वो बस हो या ऑटो/कैब। हम उस व्यक्ति पर पूरा भरोसा करते हैं। हम इस बात में विश्वास रखते हैं कि वो व्यक्ति इस काम को पूरी शिद्दत से करता है और हमारी सुरक्षा उसका कर्त्तव्य है। वैसे ज़्यादातर लोग अच्छे ही हैं तभी हम आज अपने घरों से निकल पा रहे हैं। लेकिन कुछ विकृत मानसिकता वाले लोगों की वजह से ही समाज में डर का एक माहौल कायम है।
इस घटना से हमें ये सीखना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति को फिर चाहे वो महिला हो या पुरुष किसी बुरी परिस्थिति में हार नहीं माननी चाहिए।
महिलाओं को सेल्फ़ डिफेन्स ज़रूर सीखना चाहिए। इससे उन्हें ऐसे लोगों से निपटने में मदद मिलेगी। साथ ही हम लोगों का भी ये फ़र्ज़ बनता है कि हम मुश्किल में फंसे व्यक्ति की झट से मदद करें। अगर लोग सही समय पर सही ढंग से बर्ताव करेंगे तो यकीन मानिए कई तरह के अपराधों में कमी आएगी।
इसके अलावा जिस दिन से हमारे यहां महिलाओं को इंसान समझा जाने लगेगा, उसी दिन से महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध शायद काफ़ी हद तक कम हो जाएंगे।