विस्तार
आज की दुनिया में मुफ्त में मदद मिल जाती है। राह चलते किसी से रास्ता पूछो तो तुरंत आदमी आपको रास्ता बताने लगता है। आप कोई सामान लेकर चल रहे हैं और गलती से वह सामान आपके हाथ से फिसल जाता है तो आसपास खड़े लोग खुद-ब-खुद मदद को हाथ आगे बढ़ा देते हैं। अगर सर्वे किया जाए तो ये बात साफ हो जाएगी कि मुफ्त में मिल रही मदद को ज्यादातर लोग न नहीं कहते। ये बात सत्य है कि लोगों को मुफ्तखोरी की आदत पड़ चुकी है। यकीनन इस मामले में भारतीय अव्वल आएंगे, क्योंकि यहां एक-दूजे की मदद करना परम-धर्म समझा जाता है। इसलिए लोग खुशी-खुशी इस कर्तव्य को निभाते हैं।
मगर कितने दिन और...? भैया जितनी तेजी से जमाना बदल रहा है न उतनी ही तेजी से लोगों का व्यवहार भी बदल रहा है। इस बात का जवाब आपको अतीत में झांकने पर मिल ही जाएगा। चलिए एक उदाहरण देते हैं... क्या कभी किसी ने सोचा था कि 'जल' जिस पर पूरी दुनिया आश्रित है वह कभी छोटे-छोटे पैकेट और बोतल में भरकर बाजार में बिकेगा..? शायद नहीं। अतीत में लोगों का सोचना था कि प्रकृति की हर वस्तूू पर इस धरती के हर प्राणी का बराबर अधिकार है। लेकिन समय ने इस विचार को कहीं पीछे छोड़ दिया। अधिकार की चीजों ने उत्पाद का रूप ले लिया। हालांकि कुछ दूरदर्शी बहुत पहले ही उस दौर में इस बात को समझ चुके थे। ऐसे ही आज के जमाने में कुछ दूरदर्शी आने वाले वक्त को भांप जाते हैं जैसे कि इस वीडियो को बनाने वाले ने समझा।