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वतन पर मर मिटने की तमन्ना के साथ देश के जवान उस वर्दी को पहनते हैं जो उन्हें 'देश के रक्षक' की पहचान देती है। जिस तरह से एक वैज्ञानिक अपने अविष्कार के साकार होने का सपना देखता है। एक सच्चा जननेता देश के बदल जाने का सपना देखता है। ठीक उसी तरह एक सैनिक की भी हसरत होती है देश के लिए मर मिटने की। 21 तोपों की सलामी और तिरंगे में लिपटे अपने ही पार्थिव शरीर को सपने में देखकर उसका सीना चौड़ा हो जाता है।
लेकिन कैसा लगेगा जब आपको यह पता चले कि एक सैनिक की शहादत को अपनी पहचान मिलने में 100 साल का वक्त लग गया। जी हां, ऐसा हुआ है। फ्रांस में दो भारतीय जवानों का अंतिम संस्कार 100 साल बाद साथ हुआ। लेकिन सवाल ये पैदा होता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि सैनिकों के अंतिम अनुष्ठान में 100 साल का वक्त लग गया।
जिन दो शहीदों का अंतिम संस्कार फ्रांस में हुआ, दरअसल वे पहले विश्वयुद्ध में के भारतीय सैनिक थे। इन शहीदों के अवशेष पिछले साल हुए एक उत्खनन के दौरान मिले। वर्दी पर मिले चिन्हों से उनकी पहचान हो पाई। सैनिक 39वीं गढ़वाल राइफल्स के थे। ये रेजीमेंट आज भी मौजूद है। रविवार को पूरे सम्मान के साथ पेरिस से 230 किलोमीटर दूर रिचेरबर्ग के कब्रिस्तान में उनका अंतिम संस्कार किया गया।
शहीदों को ये सम्मान दिलाने में अहम भूमिका निभाई वीरों की कब्रों की देखरेख करने वाले कामनवेल्थ वार ग्रेव्स कमीशन ने। जैसे ही इन्हें भारतीय जवानों के शव मिलने की जानकारी मिली इन्होंने तुरंत इस बारे में फ्रांस के अधिकारियों और भारत के दूतावास को इस बारे में अवगत कराया। जिसके बाद इन दोनों शवों को लावेन्टी के कब्रिस्तान में दफन करने में रजामंदी मिली। लावेन्टी में उन भारतीय सैनिकों के लिए स्मारक बनाया गया है जो फ्रांस में शहीद हुए थे। यहां उनके नाम लिखे गए हैं।
मामला सिर्फ शहीदों को सम्मान देने भर का नहीं है। उस सवाल के जवाब का भी है जो दुनिया भारत के खिलाफ उठाती है। अक्सर ऐसा कहा जाता है कि भारत ने प्रथम विश्वयुद्ध में कोई योगदान नहीं दिया। जबकि सच्चाई ये है कि भारतीय सैनिकों ने ब्रिटेन की तरफ से लड़ाई लड़ी थी। भारी संख्या में भारतीय जवान ब्रिटेन की तरफ से लड़े थे। आज जब ये सच्चाई सामने आई तो सिर्फ शहीदों को सम्मान नहीं मिला बल्कि उस सवाल का जवाब भी मिल गया है जो देश पर उठाए जाते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस खास कार्यक्रम के लिए भारत की तरफ से एक छोटी सी टीम भेजी गई थी। गढ़वाल रेजिमेंट के कमांडेंट ब्रिगेडियर इंद्रजीत चटर्जी भी मौजूद थे। साथ ही गढ़वाल रैजीमेंट के दो बैगपाइपपर्स भी पहुंचे थे जिन्होंने अंतिम संस्कार के दौरान औपचारिक धुन बजाकर उनको अंतिम विदाई दी।